Chhattisgarh Gobar Dhan Scheme: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में गोबर से कई तरह के उत्पाद बनाए जा रहे हैं. इसके बाद अब गोबर से गौठान रौशन करने की भी योजना शुरू हो गई है. इसकी शुरुआत रायपुर (Raipur) जिले के बनचरौदा मॉडल गौठान से किया गया है. यहां रोजाना 20 यूनिट बिजली उत्पादन किया जा रहा है. दरअसल एक साल पहले छत्तीसगढ़ में गोबर खरीदने की स्कीम शुरू की गई. जिसके बाद गोबर के सदुपयोग की कई तस्वीर सामने आई है. अब गोबर से बिजली उत्पादन देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है.

 

रायपुर शहर से 40 किलोमिटर दूर आरंग क्षेत्र के बनचरौदा मॉडल गौठान में गोबर से बिजली का प्लांट लगाया गया है. यहां 500 किलो गोबर और 500 लीटर पानी से गौठान रोशन हो रहा है. गौठान में गांव की कई महिला समूह अलग-अलग प्रोडक्ट तैयार कर रही है. इसमें प्रमुख रूप से गोबर के दीए और गोमूत्र से फर्टिलाइजर बनाए जा रहे हैं. यहीं नहीं इसके अलावा गोबर से बड़ी मात्रा में जैविक खाद बनाया जा रहे हैं. महिलाओं का समूह रोजाना सुबह से शाम गौठान में काम कर रही है.

 

मशीनों को भी चलाने की हो रही है कोशिश
महिलाओं को कई बार देर शाम तक काम करना पड़ता है. ऐसे में गौठान में अंधेरा इनके लिए मुसीबत बन गई थी. लेकिन अब गोबर से बिजली उत्पादन किया जा रहा है. इससे महिलाएं देर शाम तक भी काम कर सकती हैं. इसके साथ ही बिजली से अब उत्पादों के लिए लगाई गई मशीनों को भी चलाने का प्रयास किया जा रहा है. दरअसल पहले बनचरौदा गांव की अधिकांश महिलाएं घर चलाने के लिए रोज मजदूरी के लिए जाती थी. लेकिन गौठान बनने के बाद अब घर चलाने के लिए आसानी से पैसे मिल रहे हैं.

 

'आंगनबाड़ी और स्कूल तक पहुंचाई जाए बिजली'
महिला समूह की सदस्य गीता साहू ने बताया कि गौठान में गोबर से जैविक खाद और गोमूत्र से जैविक दवाई बनाते हैं. खाद को सोसायटी के माध्यम से बेचते हैं. स्टोरेज में अभी 2 हजार बोरी जैविक खाद उपलब्ध है और खेत में कीट नियंत्रण के लिए दवाई भी बनाई जाती है. वहीं अंधेरे की समस्या भी गोबर ने ही दूर की है.

 

उन्होंने ने बताया कि पहले काम करने आते थे तो गौठान अंधेरा हो जाता था, गोबर के प्लांट से बिजली मिल गई है. अब कोई भी बाहर से आता है तो उनको परेशानी नहीं होती है. अब हम चाहते हैं कि इस बिजली को गांव के आंगनबाड़ी और स्कूल तक पहुंचाई जाए.

 

क्या है बिजली उत्पादन की प्रक्रिया?
गौठान में गोबर से बिजली बनाने के प्लांट लगाने वाले विनोद सिंह बैस ने बताया कि 2 अक्टूबर को सीएम भूपेश बघेल ने इस बायोगैस संयंत्र का उद्घाटन किया है. यहां रोजाना 20 यूनिट बिजली उत्पादन किया जा रहा है. इसकी प्रक्रिया के लिए मीथेन गैस की जरूरत होती है, जो गोबर से मिल जाती है. सबसे पहले सीमेंट से बने इनलेट चैंबर में गोबर और पानी का घोल तैयार किया जाता है. इसमें रोजाना 500 किलो गोबर और 500 लीटर पानी डाला जाता है. यह घोल लोहे से ढका हुआ और 15 फीट गहरे बायोगैस संयंत्र में जाता है.

 

20 से 25 घरों में हो सकती है बिजली की सप्लाई
उन्होंने बताया कि गोबर का मिश्रण फर्मेंटेशन होता है. वहीं इसके तकनीक के जानकार रवि राउत ने बताया कि गैस एक पाइप के जरिए बायोगैस बैलून में स्टोर होता है. गोबर गैस में मीथेन के अलाव और कई गैस होते हैं, इसलिए 3 स्क्रबर लगाया गया है. इसमें मीथेन गैस को फिल्टर कर अलग किया जाता है. इसके बाद जनरेटर की सहायता से बिजली उत्पादन किया जा रहा है. इस बायोगैस संयंत्र से 20 से 25 घरों में बिजली की सप्लाई की जा सकती है.

 

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