Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ सरकार ने हसदेव अरण्य (Hasdev Aranya) को बचाने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा है. लागातार विरोध के बाद आवंटन को निरस्त करने की मांग की गई है. आंदोलन कर रहे ग्रामीण आदिवासी के लिए यह बड़ी राहत की खबर है. इसके लिए वन विभाग ने सोमवार को पत्र लिखकर खदान के लिए दी गई वन भूमि के डायवर्शन की अनुमति को निरस्त करने का आग्रह किया है.


वन विभाग ने केंद्र सरकार को लिखा पत्र
दरअसल हसदेव अरण्य को बचाने के लिए सालभर से आदिवासियों का आंदोलन चल रहा है. ग्रामीण आदिवासी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इसको ध्यान में रखते हुए वन विभाग के अवर सचिव केपी राजपूत ने सोमवार को केंद्रीय वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में वन महानिरीक्षक को पत्र लिखा है. इस पत्र में कहा गया है कि हसदेव अरण्य कोल फील्ड में व्यापक जनविरोध के कारण कानून व्यवस्था बिगड़ने की स्थिति पैदा हो गई है. ऐसे में जन विरोध, कानून व्यवस्था और व्यापक लोकहित को ध्यान में रखते हुए 842 हेक्टेयर की परसा खुली खदान परियोजना के लिए जारी वन भूमि डायवर्शन स्वीकृति को निरस्त करने का कष्ट करें.


सरकार की पहल का आंदोलनकर्मियों ने किया स्वागत
सरकार की इस पहल का हसदेव अरण्य को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे छत्तीसगढ़ बचाओ संगठन के प्रमुख आलोक शुक्ला ने स्वागत किया है. उन्होंने का कि सरकार ने जन विरोध को स्वीकार किया और केंद्र को जनता की बात मानने के लिए पत्र लिखा हम इसका स्वागत करते हैं. उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के पास वन स्वीकृति को निरस्त करने का बराबर का अधिकार है. शुक्ला ने कहा कि वन संरक्षण कानून की धारा 2 के तहत वन स्वीकृति का अंतिम आदेश राज्य का वन विभाग जारी करता है जिसे वह कभी भी वापिस ले सकता है.


विधानसभा में भी अशासकीय संकल्प किया गया था पारित


गौरतलब है कि परसा कोयला खदान से प्रभावित फतेहपुर, साल्ही और हरिहरपुर, घाटबर्रा जैसे कई गांव हसदेव अरण्य में कोयला खदान का विरोध कर रहे हैं. पिछले साल ग्रामीण आदिवासी 300 किलोमीटर की पदयात्रा कर राज्यपाल और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिले थे और हसदेव अरण्य को बचाने के लिए मांग की थी. वहीं इसके बाद हसदेव अरण्य को बचाने के लिए राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ विधानसभा में भी एक अशासकीय संकल्प का समर्थन किया था. इसमें केंद्र सरकार से कोयला खदान आवंटन को निरस्त करने की मांग की गई थी. 


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