Adopted Son of President: छत्तीसगढ़ को जनजातीय राज्य कहा जाता है क्योंकि राज्य की कुल जनसंख्या में 78 लाख से अधिक आदिवासी हैं. आदिवासियों का जीवन जंगलों पर निर्भर रहता है. लेकिन देखा जा रहा है कि वन्य प्राणियों के संरक्षण के नाम पर आदिवासीयों को विस्थापित किया जा रहा है. इस मामले पर बिलासपुर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई है.


छत्तीसगढ़ शासन से मांगा जवाब
दरअसल अखिल भारतीय जंगल आंदोलन मंच के छत्तीसगढ़ संयोजक देव जीत नंदी की ओर से अधिवक्ता रजनी सोरेन के माध्यम से बिलासपुर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है. याचिका पर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरूण कुमार गोस्वामी ने राज्य शासन को छह सप्ताह का नोटिस जारी करते हुये जवाब देने के लिए आदेशित किया है.


क्या कहती हैं याचिकाकर्ता
जनहित याचिका अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 एवं संशोधित अधिनियम 2012 अंतर्गत धारा 3 (1) (e) के हैबिटॉट राईट्स पर दायर की गई है. रजनी सोरेन ने दायर जनहित याचिका W.P. (PIL) No. 537/2022 के संबंध में पैरवी की. उन्होंने कहा कि PVTGS वंचित समुदायों का एक ऐतिहासिक योगदान रहा है. वनों के संरक्षण, संवर्धन एवं पर्यावरणीय जलवायु परिवर्तन को बचाये रखने में PVTGS समुदाय निर्भर है. जिनका योगदान जंगल, वन्यप्राणियों और विशेष संरक्षित खाद्य पदार्थों, जीवों के साथ रहवास में रहने से जंगल के इको सिस्टम की जानकारी रखते हैं.


किया जा रहा है विस्थापित
विशेष संरक्षित समुदाय जिन्हें राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र भी कहा जाता है. उन्हें वन्य प्राणियों के संरक्षण के नाम पर राज्य के विभिन्न अभ्यारण्य और राष्ट्रीय उद्यानों में विस्थापित किया जा रहा है. जैसे अचानकमार टाईगर रिजर्व, भोरम देव वाईल्ड लाईफ सेंचुरी, बारनवापारा वाईल्ड लाईफ सेंचुरी, उदंती सीतानदी, वाईल्ड लाईफ सेंचुरी एवं बादलखोल वाईल्ड लाईफ सेंचुरी से विस्थापित किया गया है. जो इस वन अधिकार अधिनियम के प्रस्तावना ऐतिहासिक अन्याय को ही बरकरार रखता है.


क्या है दावा
वन अधिकार अधिनियम के तहत धारा 3 (1) (e) के अंतर्गत आज तक PVTGS समुदायों को जो एक विशेष भौगोलिक परिस्थिति में निवास करते हैं तथा परम्परागत ढंग से आजीविका के लिए वनों पर निर्भर समुदाय है। जिनके लिये इस कानून में विशेष प्रावधान किये गये हैं. जिसका क्रियान्वयन आज तक उनके हक सुनिश्चित करने नहीं किया जा रहा है. ऐसा नहीं है कि समुदाय अपने इस अधिकार की दावा नहीं कर रहे है.


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