Raigarh News Today: छत्तीसगढ़ के वित्त मंत्री और पूर्व आईएएस ओपी चौधरी की मां कौशल्या देवी की केवल चौथी कक्षा तक पढ़ पाईं. इन्होंने बहुत ही कम उम्र में अपने ऊपर दुखों का पहाड़ टूटते देखा, लेकिन अपने परिवार और बच्चों के लिए मजबूत ढाल बनकर खड़ी रहीं.


पति के अचानक देहावसान के बाद अपने बच्चों के लालन-पालन में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और उनको काफी संघर्ष के साथ उनके मुकाम तक पहुंचाया.


कौशल्या देवी की जीवन उन सभी माताओं के लिए एक मिसाल है, जिनके पैर कठिन परिस्थितियों में डगमगाने लगते हैं. कौशल्या विवाह के बाद जब महज 28 की उम्र में पहुंची थीं कि इसी दौरान उनके पति का देहांत हो गया. बमुश्किल 10 साल पति का साथ मिलने के बाद वे अकेली हो गईं. उनके सामने पहाड़ जैसा जीवन और तीन-तीन बच्चों की परवरिश की बड़ी जिम्मेदारी थी, लेकिन वे टूटी नहीं. कौशल्या एक धार्मिक महिला हैं.


बच्चों की परवरिश में लग गईं कौशल्या देवी


वे कहती हैं कि ईश्वर की आराधना खुद के अंदर होनी चाहिए. केवल पूजा पाठ से मन को संतुष्टि नहीं मिलती. वे उन दिनों को याद करते हुए भावुक हो जाती हैं और कहती हैं कि जब पति का निधन हुआ तो सास-ससुर ने उन्हें संभाला और बेटी जैसा प्यार दिया. उस दौर में जब अनुकंपा नौकरी की बात आई, तो मैंने मना कर दिया और यह बच्चों को मिले, यह कहकर उनके परवरिश में लग गईं. तब घर में तीन संतान में सबसे बड़ी बेटी हरीप्रया केवल 9 साल की थी.


दूसरे नंबर पर ओपी चौधरी 7 वर्ष और छोटा बेटा पद्मलोचन केवल तीन साल का था. ऐसे में इनकी पढ़ाई-लिखाई और परवरिश को लेकर चिंता सताने लगी. उस समय पेंशन तो मिलती थी, लेकिन वह बच्चों की परवरिश के लिए नाकाफी थी. खेती से भी बहुत ज्यादा आमदनी की संभावना नहीं थी.


बच्चों के लिए किया लगातार संघर्ष


इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और बच्चों को किसी तरह की कोई तकलीफ न हो इसके लिए लगातार संघर्ष किया. कौशल्या देवी ने बताया कि पेंशन शुरू करवाने के लिए उन्हें कई बार बस से रायगढ़ आना-जाना करना पड़ रहा था. साथ में बड़ा बेटा ओपी ही आया-जाया करता था. वहां सरकारी दफ्तर की भाग-दौड़ को वह भी देखता था. काफी समय गुजर जाने के बाद भी जब पेंशन शुरू नहीं हो पाया तो एक बार मामला वहां के कलेक्टर के पास पहुंचा.


अपने बेटे ओपी चौधरी को लेकर कौशल्या देवी बोलीं


कौशल्या देवी कुछ सोचते हुए अचानक रुक जाती हैं और उस पल को याद करते हुए भावुक होकर कहती हैं, 13 साल नौकरी करने के बाद एक दिन ओपी अचानक आकर बोला, मां मैं अब मंत्रालय में अफसर बनकर नहीं रहना चाहता. गांव आकर लोगों की सेवा करना चाहता हूं. तब एक पल के लिए तो उन्हें इस बात पर विश्वास ही नहीं हुआ. धीरे से संभलने के बाद फिर मैं भी बोली कि इतनी बड़ी नौकरी क्यों छोड़ना चाहता है.


ओपी ने कहा अब मुझे मंत्रालय में रहना पड़ेगा मां. ऐसे में मैं लोगों से जुड़कर सेवा नहीं कर पाऊंगा. मुझे आराम नहीं करना है. यह कहते हुए चुनाव लड़ने का मन बना लिया. कौशल्या बताती हैं कि पहली दफा 2018 में ओपी खरसिया से चुनाव लड़ा, लेकिन वह हार गया. तब से ओपी लोगों के बीच में ही रहकर उनकी सेवा की.


जहां जैसी जरूरत रहती, वैसी मदद करता. पांच साल बाद ओपी ने दोबारा चुनाव लड़ा और विधायक बनने के बाद आज मंत्री बन गया है. वह कहती हैं कि यह ओपी की ही जीवटता है कि एक बार असफलता हाथ लगने के बाद भी हार नहीं मानी और पांच साल तक लगातार संघर्ष करता रहा.


एक मां का संघर्ष हमेशा जारी रहा


कौशल्या देवी बताती हैं कि बेटी हरिप्रिया पढ़ाई में बहुत तेज थी. वो भी अपनी पढ़ाई पूरी कर अंग्रेजी विषय में क्लास वन की प्राध्यापिका बनी और पास के गांव मूरा में उनकी पोस्टिंग हुई. वह खुश थीं. बेटी की डोली सजाने के सपने देखने लगीं थीं कि 28 साल की उम्र में किसी बीमारी के कारण उसका निधन हो गया. पति के निधन के बाद जो दुख, जो तकलीफ हुआ था, एक बार फिर उसी गम के सागर में वह डूब गईं. छोटा बेटा पदमलोचन गांव के स्कूल में शिक्षक है.


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