Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के इस कृषि विश्वविद्यालय का कमाल, सुगंधित धान की पांच उन्नत किस्मों का किया विकास
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता मिली है. उन्होंने भाभा अटामिक रिसर्च सेन्टर, ट्राम्बे-मुम्बई के सहयोग से पांच म्यूटेन्ट सुगंधित धान की किस्मों का विकास किया है.
Chhattisgarh News: इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में भाभा अटामिक रिसर्च सेन्टर, ट्राम्बे-मुम्बई के सहयोग से पांच म्यूटेन्ट सुगंधित धान की किस्मों का विकास किया गया है. बीज से अब किसानों को कम समय और फसल की कम ऊंचाई के साथ अच्छी पैदावार मिलेगी. देश में कृषि और विज्ञान को साथ लाने की दशकों से कोशिश की जा रही है. उन्नत कृषि के लिए विज्ञान की जरुरत हमेशा महसूस की जाती है.
खेती किसानी के क्षेत्र में सफलता का दावा
वैज्ञानिक पद्धति से खेती किसानी की लागत कम होती है और फसल को बीमारियों से सुरक्षा में मदद मिलती है. लेकिन देखा जाता है किसानों को तकनीकी और रासायनिक खाद की जानकारी के अभाव से भारी नुकसान उठाना पड़ता है. कई बार देखा गया है कि रासायनिक खाद के अत्यधिक इस्तेमाल से फसल खराब हो जाती है. सुगंधित धान का म्यूटेन्ट बीज तैयार करने में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय का सहयोग अटामिक रिसर्च सेन्टर, ट्राम्बे-मुम्बई ने किया है. छत्तीसगढ़ की परंपरागत सुगंधित धान की प्रजातियों की म्यूटेशन ब्रीडिंग कर नए उन्नत किस्म का म्यूटेन्ट विकसित किया गया है.
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5 म्यूटेंट सुगंधित धान की किस्मों का विकास
म्यूटेन्ट किस्म के 5 बीज में ट्राम्बे छत्तीसगढ़ दुबराज म्यूटेन्ट-1, विक्रम टीसीआर, छत्तीसगढ़ जवांफूल म्यूटेन्ट, ट्राम्बे छत्तीसगढ़ विष्णुभोग म्यूटेन्ट और ट्राम्बे छत्तीसगढ़ सोनागाठी शामिल हैं. म्यूटेन्ट बीजों की खासियत है धान की फसल पकने का समय और फसल की ऊंचाई दोनों कम करना. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ गिरीश चंदेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में धान की हजारों परंपरागत किस्में पाई जाती हैं. ये अपनी सुगंध, औषधीय गुणों के लिए मशहूर हैं. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने धान की ऐसी 23 हजार 250 परंपरागत किस्मों के जनन द्रव्य का संग्रहण किया है. लेकिन देखा गया है कि धान की परंपरागत सुगंधित किस्मों से फसल में अधिक समय लगता है और फसल की ऊंचाई भी अधिक होती है. इस वजह से धीरे धीरे किसानों ने सुगंधित किस्म के धान उगाना कम कर दिया था.लेकिन अब नई किस्म के बीज से किसानों को फायदा पहुंचेगा.
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