Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के नए जिले गौरेला पेंड्रा मरवाही में एक पुस्तकालय है. इस पुस्तकालय के बारे देशभर में चर्चा होती है. इसे एक आईपीएस अफसर ने अपने खुद की तैयारियों के दौरान खरीदी गई किताबों से पुस्तकालय बनाया है. इस पुस्तकालय की अहमियत को समझने के लिए आपको नए जिले की नई चुनौतियों के बीच तैयार हो रही पुस्तकालय को उसी मर्म से समझना होगा. 


क्या था उद्देशय
इस खबर में आईपीएस अफसर की भावनाएं जुड़ी है. आईपीएस सूरज सिंह परिहार दंतेवाड़ा जिले में एएसपी थे. तब उन्होंने देखा कि दंतेवाड़ा जैसे घोर नक्सल प्रभावित जिले में युवा भ्रमित होकर गलत दिशा में जा रहे है. इस कड़वे अनुभव ने आईपीएस की जिंदगी में उथल पुथल मचा दिया. उसी दिन से उन्होंने ठान लिया की युवाओं को सही दिशा देने के लिए जो भी जरूरी कदम उठाए जाने है उसे उठाया जाएगा. 


नए जिले की कमान
आईपीएस सूरज सिंह परिहार के मन में युवाओं को बेहतर दिशा देने के लिए ललक थी. इसी बीच दंतेवाड़ा से ट्रांसफर के बाद राज्य के नए जिले गौरेला पेंड्रा मरवाही का एसपी बनाया गया. नए जिले के चुनौतियों के बीच सूरज सिंह परिहार ने अपनी पत्नी से विचार विमर्श कर नि:शुल्क बुक बैंक खोलने के लिए किताब जुटना शुरू कर दिया. पत्नी और सूरज सिंह परिहार ने अपने तैयारी के दौरान खरीदी गई तमाम किताबों को इकठ्ठा किया. तब 300 किताबें मिली, ये किताबें बहुत थी. लेकिन एक पुस्तकालय के लिए संख्या कम थी. सूरज सिंह परिहार ने अपने ट्विटर अकाउंट में लोगों से किताब दान करने के लिए अपील की. इसके बाद तो देश विदेश से किताबें आने लगी हैं. पुस्तकालय को एक साल पूरे होने से पहले किताबों की संख्या तीन हजार से अधिक हो गई है.


शहीद जवान के नाम पर लाइब्रेरी
जिला एसपी कार्यालय के खाली पड़े दो कमरे को पुस्तकालय बनाया गया है. लाइब्रेरी की शुरुआत छह फरवरी 2022 को की गई. लाइब्रेरी का नाम नारायणपुर नक्सली हमले में शहीद हेड कांस्टेबल शिवनारायण बघेल के नाम पर रखा गया है. लाइब्रेरी का उद्घाटन शहीद जवान की बेटी से कराया गया. वहीं दूसरे कमरे का फीता बिलासपुर आईजी रतनलाल डांगी ने काटा. आईपीएस सूरज सिंह परिहार ने बताया कि इस पाठशाला में अबतक 662 सदस्य जुड़ चुके हैं.


इनके लिए निशुल्क
दो रूम के पुस्तकालय में एक रूम में किताबे रखी गई हैं. इसमें आईआईटी, यूपीएससी, सीजीपीएससी, नीट, एसएससी, बैंक, रेलवे, कैट-मैट, एनडीए समेत लगभग सभी बड़ी परीक्षाओं की किताबें हैं. आईपीएस सूरज सिंह परिहार ने बताया कि बड़ी परीक्षाओं की तैयारी के दौरान किताबों को लेकर काफी समस्या होती है. इसलिए पुस्तक का अभाव नहीं होना चाहिए. हमारे लाइब्रेरी में बच्चें रजिस्टर में एंट्री कर किताब वहीं बैठकर पढ़ सकते हैं. वे किताब घर ले जाने के लिए इश्यू करा सकते हैं. इसमें एससी-एसटी, ओबीसी और दिव्यांग वर्ग के छात्रों को किताब के लिए पैसे देने नहीं पड़ते. बाकी लोगों को पुस्तकालय के सदस्यता के लिए 99 रुपए वार्षिक शुल्क देना होता है.


छात्रों का मार्गदर्शन
आईपीएस सूरज सिंह परिहार वर्तमान में राजभवन में एडीसी के रूप में सेवा दे रहे हैं. साथ साथ ड्यूटी शेड्यूल के बीच समय निकालकर यूपीएससी और सीजीपीएसी के छात्रों को गाइड भी करते हैं. गौरेला पेंड्रा मरवाही में एसपी थे. तब हर सप्ताह छात्रों को तैयारियों के लिए मार्गदर्शन देते थे. उन्होंने बताया कि पिछले चार-पांच साल मार्गदर्शन करते आ रहे हैं. वेबीनार के जरिए छात्रों से अक्सर जुड़ते हैं. बच्चों के डाउट सॉल्व भी करते हैं. इसी तरह आगे भी छात्रों के परीक्षाओं की तैयारी में मदद के लिए नए नए इनोवेशन किए जाएंगे. एक और पुस्तकालय खोलने की प्लानिंग चल रही है. 

चौथे प्रयास में मिली सफलता
हर दिन कुआं खोदना और हर दिन पानी निकलना जैसे होती है यूपीएससी की तैयारी. हर बार प्रयास पहले से ज्यादा करना होता है. इसी तरह है सूरज सिंह परिहार की आईपीएस बनने की कहानी. अपने चौथे प्रयास में आईपीएस बनने को सफलता मिली है. आपको बता दें कि आईपीएस सूरज सिंह परिहार का जन्म यूपी के एक छोटे से गांव में हुआ. बचपन से ही आईपीएस बने का सपना देखते थे. घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के चलते कई प्राइवेट नौकरियां की. इसके बाद सूरज सिंह ने 2011 में पहली बार यूपीएससी दी लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. 2012 में दोबारा परीक्षा दी इस बार मेंस परीक्षा से आगे नहीं बढ़े. तीसरे बार में सफल हुए लेकिन भारतीय राजस्व सेवा में अधिकारी बने पर लक्ष्य आईपीएस का था. सूरज सिंह ने 2015 में एक फिर यानी अपने चौथे प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा दी और सफल रहे. 


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