Chhattisgarh Tourism: प्रकृति और आस्था का संगम है छत्तीसगढ़, इन जगहों पर मिलेगी मन की शांति!
Dongargarh News: पर्यटन की दृष्टि से छत्तीसगढ़ सौन्दर्य से भरपूर है. यहां प्राचीन गुफाएं, मंदिर, ऐतिहासिक दुर्ग, समाधि और मकबरे, धार्मिक तीर्थस्थल, प्राकृतिक स्थल और राष्ट्रीय उद्यान हैं.
Chhattisgarh Tourist Place: पर्यटन की दृष्टि से छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) सौन्दर्य से भरपूर है. यहां प्राचीन गुफाएं, मंदिर, ऐतिहासिक दुर्ग, समाधि और मकबरे, धार्मिक तीर्थस्थल, प्राकृतिक स्थल और राष्ट्रीय उद्यान हैं. कुछ जगहें ऐसी हैं जो अभी भी पर्यटकों से अनटच्ड हैं. हर साल लाखों की तादाद में लोग छत्तीसगढ़ के विभिन्न जगहों पर घूमने आते हैं. ऐसे ही पर्यटक स्थलों की जानकारी हम दे रहे हैं, जहां आप भी अपने परिवार और दोस्तों के साथ घुमने जा सकते हैं.
राजिम
राजिम रायपुर से 48 किमी दूर महानदी, पैरी और सोंदुल नदियों के संगम पर स्थित है. इसे 'छत्तीसगढ़ का प्रयाग' 'महातीर्थ' और 'छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी' भी कहा जाता है. इसका प्राचीन नाम कमल क्षेत्र या पदमपुर था. यहां भगवान राजीव लोचन का प्राचीन मंदिर है. यह छत्तीसगढ़ के प्रमुख मंदिरों में शामिल है.
डोंगरगढ़
डोंगरगढ़ हावड़ा-मुम्बई रेलवे मार्ग पर स्थित राजनांद गांव जिले से 59 किमी दूर है. यहां पहाड़ी के ऊपर मां बम्लेश्वरी का विशाल मंदिर है. नवरात्रि के समय यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं. इस मंदिर का निर्माण राजा कामसेन ने करवाया था.
रतनपुर
बिलासपुर से 25 किलोमीटर दूर रतनपुर एक धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है. रतनपुर कलचुरि और मराठों की प्राचीन राजधानी रही है. यहां प्रमुख दर्शनीय स्थल महामाया मंदिर, किला और रामटेक मंदिर हैं. महामाया मंदिर का निर्माण कलचुरि राजा रत्नसेन ने करवाया था. रामटेक मंदिर मराठा शासक विम्बाजी भोसले द्वारा बनवाया गया. पहाड़ी पर स्थित राम का मंदिर और पास ही किले का भग्नावशेष है जिसे बादल महल के नाम से जाना जाता है. खंडोबा तुलजा भवानी का मंदिर, वृद्धेश्वरनाथ महादेव और अन्य मंदिर दर्शनीय हैं. कलिंग राजा के पुत्र रत्नदेव ने रतनपुर की नींव डाली थी. यहां 126 तालाब थे जिसमें से अधिकांश आज भी मौजूद हैं. रतनपुर को तालाबों की नगरी भी कहा जाता है.
चम्पारण्य
रायपुर से 60 किलोमीटर दूर चम्पारण्य वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक वल्लभाचार्यजी की जन्मस्थली होने के कारण यह उनके अनुयायियों का प्रमुख दर्शनीय स्थल है. यहां चंपकेश्वर महादेव का पुराना मंदिर है. इस मंदिर के शिवलिंग के मध्य रेखाएं हैं. जिससे शिवलिंग तीन भागों में बंट गया है जो क्रमशः गणेश, पार्वती और स्वयं शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं.
सिरपुर
महासमुंद से 36 किमी दूर ऐतिहासिक नगरी सिरपुर 5वीं से 8वीं शताब्दी के मध्य दक्षिण कोसल की राजधानी रहा है. 6वीं से 10वीं शताब्दी के मध्य तक यह नगरी बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण केन्द्र था. ईंटों से बना लक्ष्मण मंदिर और बौद्धों का आनन्द प्रभु कुटीर विहार यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं. लक्ष्मण मंदिर विष्णु को समर्पित सोमवंशी राजा हर्षगुप्त की विधवा रानी वासटा द्वारा बनवाया गया था. पूरे छत्तीसगढ़ में अपने ढंग का यह अद्वितीय मन्दिर है. इसके अलावा यहां सोमवंशी राजाओं की वंशावली दर्शाने वाले गंधेश्वर महादेव मंदिर, राधाकृष्ण मंदिर, स्वास्तिक विहार, चंडी मंदिर आदि दर्शनीय हैं. सिरपुर में शैव, वैष्णव, जैन और बौद्ध धर्म की प्रतिमाएं एक साथ प्राप्त हुई हैं. प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग भी यहां आए ये.
आरंग
छत्तीसगढ़ में आरंग को मन्दिरों का नगर कहते हैं. रायपुर से 36 किलोमीटर दूर बसी इस प्राचीन नगरी का उल्लेख महाभारत में मिलता है. भांडदेव मंदिर (11 वीं 12वीं शताब्दी में निर्मित) महामाया मन्दिर और बाघ देवल यहां के प्रमुख मन्दिर हैं. मांडदेवल मन्दिर में जैन तीर्थंकर नेमीनाथ, अजीतनाथ तथा श्रेयांश की सात फुट ऊंची विराट काले पत्थरों से बनी मूर्तियां हैं. महामाया मन्दिर में एक पत्थर फलक पर 24 जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं उकेरी गई हैं. अन्य मन्दिरों में दन्तेश्वरी मन्दिर, चंडी मन्दिर, पंचमुखी महादेव व पंचमुखी हनुमान मंदिर प्रमुख हैं.
भिलाई
दुर्ग से 10 किमी दूर भिलाई एक औद्योगिक नगरी है. देश का पहला सार्वजनिक इस्पात कारखाना अपनी उन्नत तकनीकी, कौशल और उपकरणों के कारण विशेष दर्शनीय है. भिलाई में 100 एकड़ में एक अत्यन्त सुन्दर उद्यान और चिड़िया घर मैत्रीवाग पर्यटकों को रोमांचित करता है.
भोरमदेव
रायपुर जबलपुर सड़क मार्ग पर कवर्धा से 18 किलोमीटर दूर भोरमदेव स्थित है. यह भोरमदेव के प्राचीन मन्दिर इतिहास, पुरातत्व और धार्मिक महत्व की जगह है. चारों ओर से सुंदर पहाड़, नदी और वनस्थली की प्राकृतिक शोभा के बीच स्थित यह मन्दिर अगाधि शान्ति का केन्द्र है. यह मन्दिर 11वीं शताब्दी का चंदेल शैली में बना है. इसका निर्माण नागवंशी राजा रामचन्द्र ने कराया था. भोरमदेव मन्दिर को उत्कृष्ट कला शिल्प और भव्यता के कारण छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है.