Kondagaon Declared Naxal Free District: कोंडागांव को भारत सरकार ने नक्सल मुक्त जिला (Naxal Free District) घोषित करते हुए अति नक्सल प्रभावित जिले की सूची से हटा दिया है. अब जिले को लेफ्ट विंग एक्सटेंशन (LWE) के तहत विकास कार्यों के लिए मिलने वाली करोड़ों रुपए की राशि नहीं दी जाएगी. कोंडागांव (Kondagaon) बस्तर संभाग (Bastar Division) का अति संवेदनशील क्षेत्र से हटकर संवेदनशील क्षेत्र में होनेवाला पहला जिला बन गया है. भारत सरकार का मानना है कि विकास कार्य के लिए जिला प्रशासन सक्षम है और पिछले कुछ वर्षों से नक्सली दहशत भी पूरी तरह खत्म हो चुकी है. इसलिए, बस्तर संभाग के कोंडागांव को नक्सल मुक्त जिला बनाया गया है.
कोंडागांव नक्सल मुक्त जिला हुआ घोषित
भारत सरकार ने साल 2017 से नक्सल प्रभावित जिलों के लिए लेफ्ट विंग एक्सटेंशन शुरू किया था. भारत सरकार जिले में विकास के लिए सड़क, पुल पुलिया, सरकारी भवन, स्कूल, अस्पतालों के निर्माण के लिए हर साल करोड़ों रुपए का बजट देती है. बजट से ग्रामीण अंचलों में निर्माण कार्य किया जाता है. लेकिन अब बस्तर संभाग के कोंडागांव जिले को भारत सरकार की तरफ से राशि नहीं दी जाएगी. केंद्र सरकार का मानना है कि जिले में पिछले कुछ वर्षों से नक्सली घटनाओं में कमी आई है और जिले में नक्सली लगातार बैकफुट पर हैं.
नक्सली घटनाओं पर नजर डाली जाए तो साल 2021 में छिटपुट मामले सामने आए हैं. 2022 में अब तक कोई बड़ी नक्सली वारदात जिले में नहीं हुई है. जिले के हर क्षेत्र में प्रशासन की पहुंच है. पुलिस भी बेहतर तरीके से काम कर रही है. जिले को केवल संवेदनशील क्षेत्र की श्रेणी में रखा गया है. कोंडागांव जिले के कलेक्टर पुष्पेंद्र मीणा ने बताया कि भारत सरकार की ओर से LWE के तहत मिलने वाली राशि को साल 2022 में रोक दिया गया है. उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय की समिति ने निर्णय लिया है कि LWE में अति नक्सल प्रभावित जिलों की सूची से समिति ने कोंडागांव को अलग कर दिया है.
कैसे लाया गया नक्सलियों को बैकफुट पर?
कलेक्टर ने बताया कि नक्सल वारदातों को लेकर समिति के कुछ मापदंड होते हैं और कोंडागांव जिले को सिर्फ संवेदनशील माना गया है. जानकारों का मानना है कि नक्सली इलाकों में पुलिस कैंप और मोबाइल टॉवर की स्थापना से ग्रामीणों के हाथों में मोबाइल फोन पहुंचा है और नक्सली भी बैकफुट पर आ गए हैं. मोबाइल के जरिए लोग सोशल मीडिया से जुड़ गए हैं और विचारों का अदान-प्रदान हो रहा है. नक्सली जनाधार खोते चले गए. प्रशासन टॉवर भी नक्सल इलाकों में पुलिस कैंप या थानों में लगवा रहा है ताकि नक्सली नुकसान ना पहुंचा सकें.