Chhattisgarh Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव को गिनती के दिन शेष रह गए हैं. इन बचे हुए दिनों में रोचक बातें निकलकर सामने आ रही है. शायद आपको इस बात की जानकारी न हो कि किसी कारणवश जेल में निरुद्ध बंदी के मतदान पर पाबंदी लगा दी गई है. यह नियम 1951 के जनप्रतिनिधि अधिनियम में निहित है. 


इस नियम के चलते कोरबा लोकसभा क्षेत्र में आने वाले पांच जिला और उपजेल के करीब एक हजार कैदियों को मताधिकार से वंचित होना पड़ेगा. वे चाह कर भी मताधिकार का प्रयोग नही कर सकेंगे.


मतदान की प्रक्रिया से रखा गया है पृथक 
विश्व में भारत की पहचान लोकतांत्रिक देश के रूप में की जाती है. देश के संविधान में अपना जनप्रतिनिधि चुनने का अधिकार हर उस व्यक्ति को मिला है, जो जरूरी अर्हताओं को पूरी करते हों. इनमें कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें चुनाव और मतदान की प्रक्रिया से पृथक रखा गया है, ताकि लोकतंत्र के महापर्व को पूरी तरह पारदर्शिता के साथ पूर्ण कराई जा सके. 


इसमे जाने अंजाने में हुए अपराध के बाद जेलों में निरुद्ध सजायाफ्ता कैदी व हवालाती बंदी भी शामिल हैं, जो लोकतंत्र के हवन में हिस्सा नहीं ले सकते. इसके पीछे स्थानीय निकायों के अलावा विधानसभा, लोकसभा चुनावों में पारदर्शिता को बताया जाता है.


नहीं ले सकता मतदान में हिस्सा
जानकारों की मानें तो जेलों में निरुद्ध विचाराधीन बंदी व कैदियों की मतदान मे सहभागिता संबंधी नियम लागू है. जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 62 (5) के तहत कोई भी व्यक्ति जो न्यायिक हिरासत में है या फिर सजा काट रहा है. वह मतदान में हिस्सा नहीं ले सकता. कोरबा लोकसभा की बात करें तो जिला जेल कोरबा, जिला जेल पेंड्रा, जिला जेल बैकुंठपुर के अलावा उप जेल कटघोरा व उप जेल महेंद्रगढ़ स्थित हैं. 


इन सभी जेलों में पुरुष व महिला बंदी निरूद्ध हैं, इनमें कई ऐसे बंदी है, जिनका मुकदमा कोर्ट में विचाराधीन है, जबकि कुछ सजायाफ्ता कैदी हैं, जिन्हें ढाई साल से कम की सजा हुई है. इससे अधिक सजा वाले कैदियों को सेंट्रल जेल में रखा गया है.


255 बंदी निरूद्ध हैं कोरबा जेल में
यदि आंकड़ों की बात करें तो जिला जेल कोरबा में 255 बंदी निरूद्ध हैं, जिनमें 16 महिलाएं भी शामिल हैं. वे सभी अपने मताधिकार का प्रयोग नही कर सकेंगे. इस लिहाज से औसतन तीन जिला जेल और दो उपजेल में औसतन एक हजार बंदी व कैदी बंद हैं, जो लोकतंत्र के महापर्व में शामिल नहीं हो सकेंगे.


जमानत या अनुमति के बाद कर सकते हैं वोट
लोकसभा, विधान सभा अथवा स्थानीय निकाय चुनाव के मद्देनजर पुलिस सुरक्षा व्यवस्था दुरूस्त करने में जुट जाती है. इस दौरान असामाजिक तत्वों के खिलाफ कार्रवाई भी की जाती है. कई बार असामाजिक तत्व को जेल दाखिल भी कराया जाता है. यदि बंदी की जमानत मंजूर होती है या फिर शासन से अनुमति मिलती है, तो वह अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकता है.


जिला जेल के जेलर विजय आनंद सिंह ने बताया कि जेल में निरुद्ध हवालाती और सजायाफ्ता बंदी के वोटिंग की अधिकार खत्म हो जाती है. यह प्रावधान जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 62 (5) में निहित है. जिला जेल में 16 महिला सहित 255 बंदी निरुद्ध हैं जो मतदान में हिस्सा नहीं ले सकेंगे.


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