छत्तीसगढ़ के शराब घोटाला मामले में रिटायर्ड IAS समेत 7 पर केस दर्ज, हुआ बड़ा खुलासा, जानें पूरा डिटेल
Chhattisgarh Liquor Scam: छत्तीसगढ़ में शराब घोटाले के मामले में झारखंड के एक आईएएस अधिकारी समेत सात अन्य पर केस दर्ज किया गया है. इस मामले में झारखंड सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान भी हुआ.
Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) एवं आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने झारखंड के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और छत्तीसगढ़ के एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी समेत सात लोगों के खिलाफ झारखंड में शराब नीति में बदलाव कर झारखंड सरकार के खजाने को भारी नुकसान पहुंचाने के आरोप में मामला दर्ज किया है.
एसीबी के अधिकारियों ने शुक्रवार को बताया कि झारखंड के रांची निवासी विकास कुमार की शिकायत के आधार पर सात सितंबर को आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी) और 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई.
इन लोगों के खिलाफ दर्ज हुआ मामला
पीटीआई भाषा की एक खबर के अनुसार, अधिकारियों ने बताया कि जिन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है, उनमें पूर्व आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा, व्यवसायी अनवर ढेबर, छत्तीसगढ़ राज्य विपणन निगम लिमिटेड के पूर्व प्रबंध निदेशक अरुणपति त्रिपाठी, आईएएस अधिकारी और छत्तीसगढ़ के पूर्व आबकारी आयुक्त निरंजन दास तथा अरविंद सिंह (सभी छत्तीसगढ़ के), झारखंड के पूर्व आबकारी सचिव विनय कुमार चौबे (1999 बैच के झारखंड कैडर के आईएएस) और नोएडा के व्यवसायी विधु गुप्ता शामिल हैं.
इसके अलावा मेसर्स सुमित फैसिलिटीज के निदेशक, मैनपावर एजेंसियां, शराब आपूर्तिकर्ता एजेंसियां और अन्य के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है. टुटेजा, ढेबर, त्रिपाठी, दास और सिंह छत्तीसगढ़ में कथित शराब घोटाले में भी आरोपी हैं, जिसकी जांच प्रवर्तन निदेशालय और छत्तीसगढ़ की एसीबी,ईओडब्ल्यू कर रही है. छत्तीसगढ़ में कथित शराब घोटाला राज्य की पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान सामने आया था.
2022-23 के बीच हुआ था भ्रष्टाचार
एसीबी/ईओडब्ल्यू द्वारा दर्ज इस प्राथमिकी के अनुसार टुटेजा, ढेबर, त्रिपाठी और दास ने एक सिंडिकेट बनाया और झारखंड के अधिकारियों के साथ मिलकर झारखंड की आबकारी नीति में संशोधन करने की साजिश रची तथा पड़ोसी राज्य में देशी और विदेशी शराब की आपूर्ति का टेंडर सिंडिकेट के लोगों को दे दिया, जिससे धोखाधड़ी हुई और झारखंड सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ.
एफआईआर के मुताबिक, यह भ्रष्टाचार 2022 से 2023 के बीच किया गया. उन्होंने बताया कि सिंडीकेट द्वारा प्रदेश में बिना हिसाब की नकली होलोग्राम लगी देशी मदिरा की बिक्री कर तथा अपने करीबी एजेंसियों को विदेशी मदिरा सप्लाई का काम दिलाकर उन कंपनियों से करोड़ों रुपये का अवैध कमीशन प्राप्त कर अवैध कमाई की गई.
अवैध शराब का कारोबार करना चाहता था सिंडिकेट
अधिकारियों ने बताया कि प्राथमिकी में कहा गया है कि टुटेजा और उनके सिंडिकेट का इरादा झारखंड में अवैध शराब का कारोबार करने का था और अपनी योजना के तहत ढेबर और त्रिपाठी ने जनवरी 2022 में झारखंड के तत्कालीन आबकारी सचिव और अन्य अधिकारियों से मुलाकात की. उन्होंने झारखंड में मौजूदा ठेका प्रणाली को बदलकर छत्तीसगढ़ के वितरण मॉडल को लागू करने का प्रस्ताव रखा, जिससे सिंडिकेट को अवैध धन कमाने में मदद मिली.
उन्होंने बताया कि प्राथमिकी के अनुसार इस संबंध में झारखंड और छत्तीसगढ़ के आबकारी विभाग के अधिकारियों की रायपुर में बैठक हुई तथा झारखंड में भी किस प्रकार मदिरा व्यवसाय में अवैध मुनाफा प्राप्त किया जाए, इसके लिए आपराधिक षड़यंत्र करते हुए योजना बनाई गई.
त्रिपाठी को झारखंड सरकार से मिले थे 1.25 करोड़
अधिकारियों ने बताया कि योजना के मुताबिक ढेबर, त्रिपाठी, झारखंड के तत्कालीन आबकारी सचिव विनय कुमार चौबे और तत्कालीन संयुक्त आबकारी आयुक्त गजेंद्र सिंह ने अपने वरिष्ठों को विश्वास में लेकर झारखंड में नई आबकारी नीति लागू करने की तैयारी की. इसके लिए झारखंड विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया गया और हेमंत सोरेन सरकार ने त्रिपाठी को सलाहकार के तौर पर अनुबंधित किया.
उन्होंने बताया कि त्रिपाठी ने छत्तीसगढ़ में लागू देशी और विदेशी शराब विक्रय नीति का प्रारूप तैयार कर झारखंड सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसके आधार पर झारखंड में नई आबकारी नियमावली अधिसूचित और लागू की गई. इसके लिए त्रिपाठी को झारखंड सरकार से 1.25 करोड़ रुपये मिले थे.
टेंडर आवंटित करने के लिए टेंडरिंग में हेराफेरी
अधिकारियों ने कहा कि झारखंड के तत्कालीन आबकारी सचिव विनय कुमार चौबे और तत्कालीन आबकारी संयुक्त आयुक्त गजेंद्र सिंह के संरक्षण में झारखंड के आबकारी एवं मद्य निषेध विभाग के अधिकारियों ने ढेबर और उसके सिंडिकेट की शराब आपूर्ति और प्लेसमेंट एजेंसियों के लिए टेंडर आवंटित करने के लिए टेंडरिंग में हेराफेरी की.
उन्होंने बताया कि साथ ही शराब थोक विक्रेता लाइसेंस देने की अनिवार्य पात्रता शर्तों में लगातार दो वित्तीय वर्षों के लिए न्यूनतम 100 करोड़ रुपये का टर्नओवर होने की शर्त जोड़ दी. उन्होंने बताया कि झारखंड में पूर्व में ठेकेदारी प्रथा होने के फलस्वरूप इस शर्त को पूर्ण करने वाली कोई भी फर्म नहीं थी.
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