Mahasamund: छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है. राज्य की भौगलिक स्थति धान के खेती लिए बेहतर मानी जाती है. लेकिन धान के लिए प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में अब रेत में सब्जियों और फलों की खेती भी मुनाफे का सौदा बनती जा रही हैं. ये खेती हर साल नदी का पानी सूखने के बाद गर्मियों में की जाती है. रेत में उपज मैदानी खेत की तुलना में डेढ़ गुना ज्यादा होती है.
महानदी के किनारे फलों और सब्जियों की हो रही खेती
बता दें कि महासमुंद जिले से महानदी गुजरती है. इसे छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा कहते है. रायपुर और महासमुंद के बॉर्डर वाले गांवों में गर्मियों के दिनों में फलों और सब्जियों की खेती की जाती है. जिले के घोड़ारी नदी मोड के पास 200 से 250 एकड़ में खीरा, तरबूज, खरबूजा, ककड़ी, कद्दू, भिंडी, बैंगन की खेती की जा रही है. इसके लिए आस पास के कई गांवों के किसान नदी के रेत को खेती के लिए बांट लेते है.
3 लाख रुपए तक हो सकता है मुनाफा
सुमित धृतलहरे अभी 25 वर्ष के है उनके पूर्वज पिछले दो तीन दशक से नदी में खेती कर रहे है. पूर्वजों की किसानी का भार अब सुमित ने उठाया है. नदी में करीब 6 एकड़ के हिस्से में सब्जी और फलों की खेती की गई है. सुमित बताते है कि जनवरी के महीने से खेती की तैयारी शुरू हो जाती है. इस वर्ष बाढ़ के कारण दो बार बीज बर्बाद हो चुके है. तीसरी बार में फसल ठीक हुई है. गर्मियों में तरबूज, खीरा और हरी सब्जियों को अच्छी कीमत मिलती है.
रेतीली जमीन में ज्यादा मुनाफा
मैदानी भूमि से रेतीली भूमि में अधिक उपज होती है. सुमित ने बताया कि 50 डिसमिल मैदानी जमीन में खीरा की खेती में रोजाना केवल 25 से 30 बोरी खीरे निकलते हैं, लेकिन रेत में 40 से 45 बोरी खीरे निकल जाते है और एक बोरी में 40 खीरे होते है.सुमित ने आगे बताया की उसने 6 एकड़ के हिस्से में खेती की है इसमें करीब 40 से 50 हजार रुपए की लागत आई है लेकिन मुनाफा ढाई से 3 लाख रुपए तक हो जाता है.
मुनाफा और फसल की लागत कितनी होती है
खीरा और खरबूजा की किलो और कैरेट में बिक्री होती है. एक कैरेट खरबूजा की कीमत 700 रुपए से 900 रुपए तक किसानों को मिल जाती है. वहीं खीरे की अभी 15 से 16 रुपए प्रति किलो के हिसाब से थोक में बिक्री हो रही है. इसी तरह तरबूज की बात करें तो तरबूज की क्विंटल में बिक्री होती है. नदी से 700 रुपए क्विंटल में तरबूज की बिक्री हो रही है.
कैसे करते है नदी में खेती
दिसंबर महीने में ही नदी का पानी सूखने लगता है. सुमित ने बताया कि पानी सूखने के बाद ग्राम पंचायत किसानों की बैठक होती है. इसमें खेती के लिए रेत में हिस्से का बंटवारा कर दिया जाता है. इसके बाद किसान अपने-अपने हिस्से में रेत में फसल के लिए लाइन बनाते हैं. वहीं फसल की सुरक्षा के लिए नदी में सैकड़ों छोटी झोपड़ी बनाई गई है. जहां दिन रात किसान फसल की निगरानी करते है.
इसके अलावा नदी को गांव से जोड़ने वाले हिस्से में पत्थरों की बाउंड्री बनाया गई है ताकि आवारा जानवरों से फसल को बचाया जा सके.
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