CM Bhupesh Baghel Dream Project: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में मौजूद सरकारी डेनेक्स गारमेंट्स फैक्ट्री में काम कर रहे स्थानीय महिला स्व सहायता समूह ने पिछले कुछ दिनों से फैक्ट्री में काम पूरी तरह बंद कर दिया है. दरअसल यह महिलाएं अपनी मानदेय बढ़ाने के लिए लगातार प्रशासन से गुहार लगा रही हैं, लेकिन इनकी कोई सुनवाई नहीं होता देख फेक्ट्री में काम करने वाली करीब 750 महिलाओं ने दंतेवाड़ा के चार जगहों पर संचालित डेनेक्स गारमेंट फैक्ट्री में काम बंद कर दिया और फैक्ट्री के सामने धरना पर बैठ गए हैं और जब तक मानदेय नहीं बढ़ाया जाता तब तक दोबारा काम शुरू नहीं करने की बात कही है.
वहीं बीजेपी ने भी महिलाओं के इस मांग का समर्थन किया है और उनके साथ धरना प्रदर्शन में खड़े हो गये हैं. छत्तीसगढ़ के पूर्व वन मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता महेश गागड़ा ने सीएम भूपेश के ड्रीम प्रोजेक्ट में मनरेगा से भी कम मानदेय इन महिला कर्मचारियों को देने का आरोप लगाया है.
2 सालों से नहीं बढ़ाया गया मानदेय
गारमेंट फैक्ट्री में काम कर रहीं महिला कर्मचारियों का कहना है कि बस्तर के नक्सल पीड़ित महिलाओं और ग्रामीण महिलाओं को रोजगार देने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने दंतेवाड़ा जिले के कुल 4 जगहों पर डेनेक्स गारमेंट फैक्ट्री की स्थापना की है और यहां करीब स्थानीय और अन्य जिलों के करीब 750 महिलाएं काम कर रही है, इसमें कई महिलाएं नक्सल पीड़ित भी है जो कपड़ा सिलाई और बुनाई का काम करते हैं. सभी महिलाएं पिछले 2 सालों से कपड़ा फैक्ट्री में काम कर रही हैं.
सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक महिलाएं यहां काम करती हैं और यहां तैयार किए गए कपड़े तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और अन्य बड़े ऑनलाइन शॉपिंग मार्किट में भी बिक्री किए जाते हैं. कपड़ा तैयार करने वाली महिलाओं को हर महीने मानदेय दिया जाता है, और सभी महिला कर्मचारियों को तीन श्रेणी में बांटा गया है, जिसमें ए श्रेणी की महिलाओं को 6500 बी श्रेणी की महिलाओं को 4500 और C श्रेणी की महिलाओं को 3 हजार मानदेय दिया जाता है और केवल महीने में दो अवकाश ही मिलता है.
महिलाओं का कहना है कि उनकी मजदूरी दर मनरेगा की मजदूरी दर से भी काफी कम है, 3 हजार मानदेय मिलने वाले महिलाओं को रोजी 135 रुपये दिए जाते हैं और पिछले 2 सालों से यही मानदेय मिलता आ रहा है, बल्कि कंपनी के अधिकारियों ने हर 6 महीने में मानदेय बढ़ाने का वादा किया था, आज 2 साल बीत जाने के बाद भी उसी मानदेय में महिलाएं काम कर रही है, जिससे महंगाई के दौर में घर चलाना और अपने परिवार को पालना काफी मुश्किल हो गया है.
महिलाओं ने मांग की है कि उन्हें न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 के तहत इस फैक्ट्री में काम कर रहे महिला कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन प्रदान किया जाए और जब तक उनकी मांग पूरी नहीं हो जाती और प्रशासन की ओर से लिखित में वेतन बढ़ाने के लिए आदेश नहीं हो जाता तब तक वे इस फैक्ट्री में अपना काम बंद रखने की बात कही है.
बीजेपी नेता का आरोप- महिलाओं का हो रहा शोषण
वहीं महिलाओं की जायज मांग को लेकर बीजेपी ने भी इसका समर्थन किया है. छत्तीसगढ़ के पूर्व वन मंत्री महेश गागड़ा का कहना है कि एक तरफ भूपेश सरकार राज्य के लोगों के लिए रोजगार के साधन खोलने की बड़ी बड़ी बात कहती है और जनकल्याण के बड़े-बड़े दावे कर रही है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ गरीब आदिवासी ग्रामीण महिलाओं को रोजगार देने के नाम पर उनका शोषण किया जा रहा है.
मनरेगा से भी कम मानदेय में इन महिलाओं से पूरे 8 घंटे ड्यूटी करवाई जा रही हैं ,और 135 रुपये की दर से इन महिलाओं को भुगतान किया जा रहा है जो कि काफी कम है. कलेक्टर दर से भी कम भुगतान किया जा रहा है, इस कंपनी का जिम्मा संभाल रहे बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के सदस्यों को पता ही नही इन महिलाओं को कितना मानदेय दिया जा रहा है, बीजेपी नेता ने आरोप लगाया है कि प्रशासन के अधिकारी गरीबो के हक के पैसे में डाका डाल रहे है, और जमकर भ्रष्टाचार कर रहे हैं.
मानदेय बढ़ाने को लेकर चल रही बात
इधर दंतेवाड़ा के कलेक्टर विनीत नंदनवार का कहना है कि जिले के चार जगहों में हारम, बारसूर, कारली औऱ कटेकल्याण में संचालित हो रहे डनेक्स गारमेंट्स फैक्ट्री में 750 महिला कर्मचारी काम कर रहे है, और इन महिला कर्मचारियों को तीन श्रेणी में बांटा गया है, सभी के अलग अलग मानदेय है, और इनकी मांग को देखते हुए मानदेय बढ़ाने के लिए बोर्ड ऑफ डायरेक्टर से बात चल रही है, और महिलाओ को भी दोबारा काम शुरू करने को कहा जा रहा है.
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