छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या को सबसे बड़ी समस्या मानी जाती है. क्योंकि इससे विकास की रफ्तार धीमी हो रही है. इसके बाद दूसरी सबसे बड़ी समस्या कुपोषण को माना जाता है. इसकी चपेट में प्रदेश के लाखों बच्चे हैं. खासकर ट्राइबल इलाकों के बच्चे ज्यादातर कुपोषित हैं. राज्य में वर्तमान में 17 फीसदी  से अधिक बच्चे कुपोषण के श्रेणी में आते हैं. जिनकी संख्या लाखों में है. वहीं कुपोषण दूर करने के लिए राज्य सरकार मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान अभियान चला रही है. चलिए जानते हैं क्या है छत्तीसगढ़ में कुपोषण की स्थिति?


86 हजार से अधिक बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित


दरअसल राज्य की महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा वजन त्यौहार 2022 के आंकड़े जारी कर दिए गए हैं. इसके अनुसार प्रदेश में इस साल 17.76 फीसदी  बच्चे कुपोषित हैं. इस साल प्रदेश में अगस्त में वजन त्यौहार का आयोजन किया गया था. इस दौरान प्रदेश के 33 जिलों के 23 लाख 79 हजार 29 बच्चों का वजन लिया गया. इनमें 19 लाख 56 हजार 616 बच्चे सामान्य पाए गए, जबकि 04 लाख 22 हजार 413 बच्चों में कुपोषण की स्थिति देखी गई.


इनमें 86 हजार 751 बच्चे गंभीर कुपोषण और 03 लाख 35 हजार 662 बच्चे मध्यम कुपोषित मिले. इसी प्रकार बच्चों की ऊंचाई के आधार पर बौने बच्चों का भी आंकलन किया गया है. इन आंकड़ों को जिलेवार, परियोजनावार, पंचायत और आंगनबाड़ीवार अलग - अलग जुटाए गए हैं. महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि इन आंकड़ों का विश्लेषण कर उचित कार्ययोजना के साथ सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ा जा सके. इन परिणामों को सभी कलेक्टरों को भी भेजा गया है.


छत्तीसगढ़ के 17 फीसदी  बच्चे कुपोषित


पिछले 3 सालों के आंकड़े देखें तो ये अब तक का सबसे कम कुपोषण दर है. लेकिन आज भी राज्य में लाखों बच्चे कुपोषित हैं. चलिए पिछले 3 सालों के आंकड़े पर नजर डालते हैं. साल 2019 में छत्तीसगढ़ में बच्चों में कुपोषण 23.37 फीसदी  था, जो वर्ष 2021 में घटकर 19.86 फीसदी  रह गया और 2022 में घटकर 17.76 फीसदी  पर आ गया है. इस प्रकार पिछले तीन सालों में कुपोषण की दर में 5.61 फीसदी  की कमी आई है. वहीं पिछले एक साल में कुपोषण के दर में 2.1 फीसदी  की कमी आई है.


5 साल में 6.4 फीसदी  कुपोषण दर में कमी आई


राज्य सरकार कुपोषण दर में आई कमी को बड़ी सफलता मान रही है. क्योंकि 2 अक्टूबर 2019 से प्रदेश में कुपोषण मुक्ति के लिए मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान शुरू किया गया है. इससे प्रदेश के लगभग 02 लाख 11 हजार बच्चे कुपोषण के चक्र से बाहर आ गए हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के 2020-21 में जारी रिपोर्ट के आंकड़े देखे जाएं, तो प्रदेश में 5 वर्ष तक बच्चों के वजन के आधार पर कुपोषण की दर 6.4 फीसदी  कम होकर 31.3 फीसदी  हो गई है। यह दर कुपोषण की राष्ट्रीय दर 32.1 फीसदी  से भी कम है.


क्या है वजह त्यौहार


गौरतलब है कि राज्य में बच्चों में कुपोषण दर के आंकलन के लिए हर साल वजन त्यौहार का आयोजन किया जाता है. वजन त्यौहार के दौरान प्रदेश के आंगनबाड़ियों में अभियान चलाकर बच्चों का वजन, ऊंचाई मापकर उनकी उम्र के आधार पर कुपोषण का आंकलन किया जाता है. इस दौरान बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण भी किया जाता है. जुटाए गए आंकड़ों की ऑनलाइन सॉफ्टवेयर में एंट्री किया जाता है.


क्या है मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान ?


मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर मुख्यमंत्री सुपोषण योजना के माध्यम से कुपोषण मुक्ति के लिए प्रदेशव्यापी अभियान चलाया जा रहा है. इस योजना के तहत कुपोषित महिलाओं, गर्भवती और शिशुवती माताओं के साथ बच्चों को गरम भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है. राशन में आयरन और विटामिन युक्त फोर्टीफाइड चावल और गुड़ देकर लोगों के दैनिक आहार में विटामिन्स और मिनरल्स की कमी को दूर करने का प्रयास किया गया है.


इसके साथ ही गुणवत्तापूर्ण पौष्टिक रेडी टू ईट और स्थानीय उपलब्धता के आधार पर पौष्टिक आहार देने की भी व्यवस्था की गई है. महिलाओं और बच्चों को फल, सब्जियों सहित सोया और मूंगफली की चिक्की, पौष्टिक लड्डू, अण्डा सहित मिलेट्स के बिस्कुट और स्वादिष्ठ पौष्टिक आहार के रूप में दिया जा जा रहा है.


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