छत्तीसगढ़ में आदिवासी आरक्षण पर बीजेपी कांग्रेस आमने सामने, एक दूसरे पर जमकर लगा रहीं आरोप
छत्तीसगढ़ में 12 प्रतिशत आरक्षण घटाने पर आदिवासी समाज आक्रोशित है. सरकार को दोषी ठहरा रहे बीजेपी नेता एसटी-एससी कमिशन के पूर्व अध्यक्ष नंदकुमार साय ने कहा भूपेश सरकार ठोस दलील पेश नहीं कर सकी.
Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ में आदिवासियों को मिलने वाले 32% आरक्षण में से 12% आरक्षण घटा दिया गया है. अब उन्हें केवल 20% आरक्षण मिलेगा. इस फैसले के बाद छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज आक्रोशित हैं. इस पर बीजेपी कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है. इसके लिए कांग्रेसी छत्तीसगढ़ की पूर्व की रमन सरकार को दोषी ठहरा रहे है. तो वहीं बीजेपी कांग्रेस को जिम्मेदार बता रही है. आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने आरोप लगाया था कि पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह ने जानबूझकर आरक्षण की फाइल को सही समय पर नहीं भेजा. लखमा ने कहा कि जब प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने हाईकोर्ट में रिपोर्ट पेश किया तो हाईकोर्ट ने पुरानी कमेटी की रिपोर्ट को ही पेश करने का हवाला देते हुए कांग्रेस सरकार की रिपोर्ट को खारिज कर दिया.
सरकार आरक्षण वापस ले
इसके बाद अब आदिवासियों का 12% आरक्षण घटाने पर अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और बीजेपी के वरीष्ठ नेता नंदकुमार साय का बयान सामने आया है. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार की नाकामियों के कारण आदिवासियों का 12% आरक्षण कम हुआ है. उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने अच्छे वकील नहीं किए ओर ना ठोस दलील पेश कर सके. नंद कुमार साय ने भूपेश सरकार पर हमला करते हुए कहा कि अगर सरकार आरक्षण वापस नहीं लेती है तो चुनाव में यह उसके लिए सबसे बड़े विरोध का कारण बनेगी.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस की सरकार में कई सारे विधायक और मंत्री आदिवासी समाज से हैं. उनको सरकार के समक्ष अपनी बातों को रखना चाहिए. साय ने कहा की विधायक मंत्री सुस्त रवैया अपनाए हुए हैं. विधायकों और मंत्रियों की चुप्पी भी समझ से परे है, वे अपनी ही सरकार में समाज की बातों को नहीं रख पा रहे हैं. उन्हें बोलना चाहिए, उनकी नैतिक जिम्मेदारी है कि आदिवासियों को 12% आरक्षण फिर से दिया जाए.
बीजेपी ने लगाया कांग्रेस पर आरोप
इससे पहले पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा ने भी आरक्षण के मुद्दे को लेकर सरकार को दोषी ठहराया था. उन्होंने अम्बिकापुर में बीजेपी कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा था कि प्रदेश सरकार ने आदिवासियों के हितों के बारे में नहीं सोचा. इसकी वजह से हाई कोर्ट ने 19 सितंबर को आदिवासियों को मिलने वाले 32% आरक्षण में से 12% आरक्षण घटा दिया है. उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार चाहती तो अच्छा वकील रखकर बेहतर तरीके से इसकी सुनवाई कर सकती थी. सरकार आदिवासी हितैषी नहीं होने की वजह से ऐसी स्थिति बनी है.
19 सितंबर को जो फैसला आया उससे आदिवासी वर्ग में असंतोष है और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार ने कोई पहल नहीं किया. छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार इस निर्णय के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में अपील करें. छत्तीसगढ़ की जनता, आदिवासी वर्ग के लोगों के हितों का ध्यान रखा जाए.