Chhattisgarh Naxal Attack: कश्मीर के बाद सबसे ज्यादा अर्धसैनिक बलों की तैनाती छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बस्तर (Bastar) में की गई है. 7 जिले नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने की वजह से बस्तर संभाग में   करीब एक लाख अर्धसैनिक बलों के जवान तैनात हैं. पिछले 4 दशकों से नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में जुटे जवानों के साथ नक्सलियों को भी काफी नुकसान हुआ है. नक्सल मोर्चे पर तैनात सैकड़ों जवान शहीद और हजारों घायल हुए हैं. हालांकि पिछले कुछ वर्षों से बस्तर में तैनात अर्धसैनिक बल और राज्य पुलिस के जवानों को स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रॉसिजर (SOP) का पालन करने का फायदा हुआ है.


दंतेवाड़ा में नक्सली हमले की ग्राउंड रिपोर्ट


नक्सली जवानों को नुकसान पहुंचाने में कई जगह फेल साबित हुए हैं. लेकिन कई जगहों पर स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रॉसिजर का पालन नहीं करने से बड़ा नुकसान भी जवानों को उठाना पड़ा है. 26 अप्रैल बुधवार को दंतेवाड़ा के अरनपुर में हुए नक्सली ब्लास्ट में भी पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवानों ने ऑपरेटिंग प्रॉसिजर का पालन नहीं किया था. यही वजह है कि नक्सली बड़ी घटना को जान देने में सफल हो गए. आखिर क्या होता है एसओपी और नक्सल मोर्चे पर तैनात जवानों के लिए कितना जरूरी है? घटना में जवानों से कहां चूक हो गई? एबीपी न्यूज़ की खास रिपोर्ट में जानिए.


एसओपी जवानों की सुरक्षा के लिए बनाई गई रणनीति का एक हिस्सा है. नक्सलियों का टारगेट बनने से बचने के लिए जवानों को कई नियमों का पालन करना पड़ता है. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सली जगह-जगह बारूदी सुरंग बिछाए रखते हैं. उन जगहों पर जवानों को पैदल ही चलना पड़ता है. कई बार ऐसे जगहों पर चार पहिया वाहन या बाइक पर सवार होकर जवानों के गुजरते वक्त नक्सलियों ने ब्लास्ट की घटना को अंजाम दिया है. जवानों पर ताबड़तोड़ फायरिंग की दर्जनों घटनाएं हैं.


जवान कई बार अंदरूनी क्षेत्रों की कच्ची सड़कों पर चार पहिया वाहन में बैठकर जाने से नक्सलियों के ब्लास्ट का शिकार हुए हैं. ज्यादातर मामलों में जवानों की शहादत इसी वजह से हुई है. इसके अलावा एसओपी का पालन करते समय जवान किसी सवारी वाहन में नहीं बैठ सकते और ना ही किसी से लिफ्ट ले सकते हैं, क्योंकि नक्सली हमेशा से ही जवानों को नुकसान पहुंचाने की ताक में रहते हैं. ऐसे में जवानों के साथ साथ सिविलियन की जान का नुकसान ना हो इसलिए SOP के तहत जवानों को अंदरूनी क्षेत्रों में सवारी वाहनों की सेवा लेने की मनाही है.


जवानों के लिए एसओपी क्यों है जरूरी? 


कुछ साल पहले सुकमा और दंतेवाड़ा मार्ग पर जवानों से भरी यात्री बस को नक्सलियों ने ब्लास्ट कर उड़ाया था. घटना में कई आम लोगों की भी मौत हो गई थी. उसके बाद यात्री बसों में जवानों को खासकर दिन के वक्त बैठने की मनाही कर दी गई. कई बार जवान गश्ती के दौरान एक साथ झुंड में निकलते थे. ऐसे में नक्सली आसानी से एक साथ कई जवानों पर फायरिंग कर निशाना बनाते थे. इससे पहले कि जवान कुछ समझ पाते नक्सली जवानों पर ताबड़तोड़ फायरिंग करते थे. इसे ध्यान में रखते हुए गश्ती पर भी नए नियम लागू किए गए और जवानों की टुकड़ियों को अलग अलग कर कुछ मीटर की दूरी पर चलाया जाता है.


नक्सली अगर फायरिंग करें तो आगे और पीछे चलने वाले जवान तुरंत मोर्चा संभालते हुए जवाबी कार्रवाई करते हैं. इस रणनीति को अपनाने से पहले के मुकाबले नक्सली हमलों में जवानों को काफी कम नुकसान हो रहा है. बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने एबीपी न्यूज़ को बताया कि एसओपी का पालन जवानों के लिए अनिवार्य रूप से किया जाना होता है. लेकिन कई जगहों पर इसका पालन नहीं हो पाता है. घटना के बाद इसका आंकलन लगाया जाता है कि आखिर कहां चूक हुई.


26 अप्रैल को भी हुई घटना में स्थानीय पुलिस कई बिंदुओं पर जांच कर रही है. हालांकि कई बार ऐसा होता है कि जवान लंबी दूरी पैदल नहीं चल पाते. ऐसे में रिस्क लेकर चार पहिया वाहन में सवार होना पड़ता है. नक्सली इसी का फायदा उठाकर सूचना तंत्र से घटना को अंजाम देने की ताक में रहते हैं. कुछ मामलों में नक्सलियों का मंसूबा कामयाब हो जाता है. फिलहाल दंतेवाड़ा ब्लास्ट घटना की बारीकी से जांच की जा रही है. खासकर अर्धसैनिक बलों के साथ राज्य और स्थानीय पुलिस के जवानों को अब आगे से एसओपी नियमों का पूरा पालन कराने की भी कोशिश की जाएगी.


नक्सली मंसूबे में कैसे हुए कामयाब?


26 अप्रैल को हुए नक्सली ब्लास्ट के बाद घटनास्थल पर ग्राउंड रिपोर्टिंग करने पहुंचे एबीपी न्यूज़ के सीनियर रिपोर्टर ज्ञानेंद्र तिवारी ने पड़ताल किया कि आखिर चूक कहां हुई है. जवानों से एसओपी का पालन हुआ या नहीं. पता चला कि मुख्य रूप से जवानों ने एसओपी का उल्लंघन करते हुए सरकारी वाहन की जगह निजी वाहन का इस्तेमाल किया. वहीं जवानों के वापस लौटने से पहले सड़क पर रोड ओपनिंग पार्टी नहीं लगाई गई थी. इसके अलावा उस सड़क का इस्तेमाल किया गया जहां से जवान पहले गुजर चुके थे, और जहां से दोबारा लौटते वक्त खतरे की आशंका थी.


नक्सलियों के ब्लास्ट से बचने के लिए पूरी तरह से ट्रेंड पुलिस के ड्राइवर एक निर्धारित गति से गाड़ियों को दौड़ाते हैं. कई विषम परिस्थितियों में पूरी तरह से प्रशिक्षित पुलिस के ड्राइवर इस तरह के ब्लास्ट से  जवानों की जान भी बचा  चुके हैं. लेकिन एक निजी ड्राइवर को इस बात का अंदाजा नहीं होता है कि उसे किस क्षेत्र में कितनी गति से वाहन चलाना है. इसके साथ ही जवानों के अरनपुर जाने के दौरान इलाके में नक्सलियों की मौजूदगी का पता नहीं लगाया गया.


घटना में नक्सलियों ने करीब 40 किलो एक्सप्लोसिव का इस्तेमाल किया. ऐसे में आखिर नक्सलियों को बड़ी मात्रा में विस्फोटक  कैसे पहुंच रहा है. इसके सप्लाई चेन को भी पुलिस अब तक पूरी तरह से ध्वस्त नहीं कर पाई है. बड़ी चूक की वजह से नक्सली घटना को अंजाम देने में कामयाब हो गए. हालांकि सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस के बड़े अधिकारियों का कहना है कि इस घटना से सबक लेते हुए अब रणनीति में बदलाव करने के साथ नक्सलियों के मंसूबे से बचने के लिए जल्द तोड़ निकाला जाएगा.


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