Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ का बस्तर अपनी प्राकृतिक सौंदर्य  के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. यहां की वॉटरफॉल्स, घने जंगल और नैसर्गिक गुफाएं अद्भुत हैं. दरअसल दंडकारण्य क्षेत्र बस्तर को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है. आदिकाल से यहां के रहवासी भगवान शिव के उपासक रहे हैं. यही वजह है कि बस्तर में भगवान शिव के सैकड़ों मंदिर हैं और उनमें से एक प्रसिद्ध  स्थल है "कैलाश गुफा" जिसे छत्तीसगढ़ का पाताल लोक भी कहा जाता है. यहां प्राकृतिक रूप से भगवान शिव की लिंग स्थापित हैं.



पुरानी मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान इसी कैलाश गुफा में कई दिनों तक भगवान शिव की उपासना की थी. इस वजह से यह जगह काफी प्रसिद्ध है. कांगेर वैली नेशनल पार्क में मौजूद कैलाश गुफा यहां देश दुनिया से पहुंचने वाले पर्यटकों के लिए भी मुख्य आकर्षण का केंद्र रहती है, लेकिन वही बस्तर के रहवासियों के लिए यह गुफा भगवान शिव के प्रति आस्था का प्रतीक है. इस वजह से महाशिवरात्रि के मौके पर सैकड़ों की संख्या में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है.

भगवान श्रीराम ने कैलाश गुफा में की थी पूजा अर्चना
बस्तर के जानकार विजय भारत बताते हैं कि बस्तर में आदिकाल से ही यहां के आदिवासी भगवान शिव के उपासक रहे हैं. सदियों से उनकी पूजा करते आ रहे हैं. पूरे बस्तर संभाग में हजारों की संख्या में भगवान शिव का मंदिर है. बस्तर के आदिवासियों की भगवान शिव के प्रति काफी गहरी आस्था है. यहीं वजह है कि यहां जितने भी प्राकृतिक रूप से शिवलिंग है. वहां की देखरेख स्थानीय आदिवासी करते हैं और भगवान शिव को बस्तर में बूढ़ादेव के नाम से भी जाना जाता है. कैलाश गुफा का नाम भगवान शिव लिंग के वजह से पड़ा.

इस वजह से कैलाश गुफा के नाम से जाना जाता है
इस गुफा में सैकड़ों साल पुराने  प्राकृतिक रूप से बने कई शिवलिंग है. जिसकी ग्रामवासी पूजा अर्चना करते हैं. खासकर महाशिवरात्रि के मौके पर कांगेर वैली पार्क में मौजूद कोटोमसर गुफा, दंडक गुफा और कैलाश गुफा में सैकड़ों की संख्या में भगवान शिव के दर्शन के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं. ऐसी भी मान्यता है कि भगवान श्री राम अपने वनवास के दौरान जब बस्तर जो आदिकाल से दंडकारण्य के नाम से प्रसिद्ध है. यहां श्री राम चित्रकोट से तेलंगाना के भद्राचलम के लिए निकले थे. तब उन्होंने दरभा के घने जंगल में मौजूद कैलाश गुफा में कई दिनों तक भगवान शिव की आराधना की थी. इस वजह से इस गुफा का नाम भी कैलाश गुफा के नाम से जाना जाता है. इसे छत्तीसगढ़ का पाताल लोक भी कहते हैं.

सन 1993 में फॉरेस्ट रेंजर ने की थी इस गुफा की खोज
कांगेर वैली नेशनल पार्क के संचालक गणवीर धम्मशिल बताते हैं कि कैलाश गुफा कांगेर वैली नेशनल पार्क के भीतर ही मौजूद है. यह पार्क के अंदर मौजूद चार गुफाओं में से एक है. तुलसी डोंगरी पहाड़ी में स्थित इस गुफा की खोज 22 मार्च 1993 को पार्क परिक्षेत्र अधिकारी रोशन लाल साहू ने किया था. उन्होंने बताया कि कैलाश गुफा की लंबाई 250 मीटर और गहराई 35 मीटर है, गुफा के अंदर कई सारे शिवलिंग बने हुए हैं, इसलिए इसे कैलाश गुफा कहा जाता है. गुफा में प्रवेश करते समय एक व्यक्ति ही अंदर जा सकता है और अंदर जाने के बाद गुफा में कई लोग एक साथ देखे जा सकते हैं.

सैकड़ों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं
गुफा के अंदर स्लेटमाइट और स्लेटराइट के स्तंभ बने हुए हैं, जो गुफा की शोभा बढ़ाते हैं, यह स्तंभ देखने में चमकदार और कई आकृति में बने हुए हैं. गुफा के अंदर तीन हॉल हैं जिसके अंदर एक साथ सैकड़ों लोग आ सकते हैं. खास बात यह है कि इस गुफा के अंदर एक कक्ष में स्लेटमाइट  पत्थर से संगीत की आवाज आती है जो पर्यटकों को  अचंभित करने जैसा है. नैसर्गिक रूप से मौजूद इस गुफा में किसी तरह की छेड़खानी नहीं की गई है और यह गुफा पूरी तरह से कांगेर वैली नेशनल पार्क प्रबंधन के निगरानी में रहती है. हर साल खासकर ठंड और गर्मी के मौसम में इस गुफा को देखने और शिवलिंग के दर्शन करने सैकड़ों की संख्या में देश-दुनिया से पर्यटक पहुंचते हैं.


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