Bastar News: छत्तीसगढ़ के बस्तर में गर्मी का मौसम आते ही हरा सोना की पैदावार शुरू हो जाती है और इस हरा सोना से बस्तर के आदिवासियों की अच्छी खासी आमदनी भी होती है. साथ ही राज्य सरकार को भी करोड़ों रुपये का मुनाफा होता है. यह हरा सोना और कुछ नहीं बल्कि बस्तर और छत्तीसगढ़ के अन्य जगहों पर मिलने वाला तेंदूपत्ता है. तेंदूपत्ता की तोड़ाई से ग्रामीणों को अच्छी खासी कमाई होने के साथ बोनस भी मिलता है, साथ ही राज्य सरकार भी तेंदूपत्ता खरीदी के लिए टेंडर निकालती है और  दक्षिण भारत के  अलग-अलग क्षेत्रों से पहुंचने वाले ठेकेदारों के द्वारा खरीदी की जाती है. इससे सरकार को अच्छी खासी कमाई  होती है.


अप्रैल महीने के शुरुआत से ही तेंदूपत्ते की तोड़ाई के लिए ग्रामीण जंगलों में सक्रिय हो जाते हैं और खास बात यह है कि इस तेंदूपत्ते की तोड़ाई के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में पूरा परिवार जुटता है. खासकर तेंदूपत्ता ही आदिवासियों को सबसे ज्यादा रोजगार और आर्थिक रूप से सक्षम बनाता है. तेंदूपत्ते से होने वाली आमदनी सोने चांदी के व्यापार से होने वाली आमदनी के बराबर होती है, यही वजह है कि इस तेंदूपत्ता को हरा सोना का नाम दिया गया है.


तेंदूपत्ता से तैयार होती है बीड़ी
बस्तर संभाग में हर साल अप्रैल महीने से तेंदूपत्ते की तोड़ाई शुरू हो जाती है और इन पत्तों की गड्डियां बनाकर इन्हें धूप में सुखाया जाता है. तेंदूपत्ता संग्राहको को प्रति मानक बोरा 4000 रुपये की मजदूरी मिलती है. यह पत्ते तेंदू के पेड़ से प्राप्त होते हैं जो इबेनेसी परिवार का पौधा है. दरअसल इस तेंदू पत्ते को बीड़ी बनाने के लिए सबसे ज्यादा उपयोग में लाया जाता है और इस  तेंदू के पत्ते से देश के कई राज्य में बीड़ी बनाते हैं. देश के कई हिस्सों में पलाश, साल और आदि प्रजातियों के पत्ते भी बीड़ी बनाने में उपयोग किए जाते हैं, लेकिन तेंदूपत्ता के अपनी गुणवत्ता के कारण इसकी काफी ज्यादा डिमांड है. बीड़ी उद्योग में मोटे तौर पर जिन गुणों के कारण इस पत्ते को बीड़ी बनाने के लिए चुना जाता है  इसका मुख्य कारण पत्ते का आकार और मोटापन है.


वन विभाग के द्वारा तेंदूपत्ता की ग्रामीणों से खरीदी करने के बाद इसके देखरेख और भंडारण के लिए सावधानी भी बरती जाती है, क्योंकि तेंदूपत्ता का यह कारोबार काफी संवेदनशील होता है. इसके उत्पाद के प्रक्रिया में थोड़ी सी भी गलती या लापरवाही के कारण इसकी गुणवत्ता खराब हो जाती है और यह बीड़ी बनाने के लिए उपयोग में नहीं लाई जा सकती है, इसलिए वन विभाग तीन महीनों तक तेंदूपत्ता के संग्रहण और इसके भंडारण के लिए पूरी तरह से जद्दोजहद में जुट जाता है.


तीन महीनों में 27 करोड़ से अधिक का होता है कारोबार
बस्तर संभाग के वन संरक्षक मोहम्मद शाहिद ने बताया कि तेंदूपत्ते तोड़ाई के सीजन में आदिवासी ग्रामीणों के लिए यह सबसे बड़ा रोजगार का साधन होता है और पूरा परिवार तेंदूपत्ते की तोड़ाई करता है. इसके एवज में उन्हें अच्छे पैसे भी मिलते हैं, ग्रामीणों के माध्यम से विभाग  तेंदूपत्ता खरीदता है और उन्हें पत्तों के हिसाब से पेमेंट देने के साथ बोनस भी दिया जाता है.


उन्होंने बताया कि तीन महीने में बस्तर संभाग में वन विभाग लगभग पांच लाख मानक बोरा का खरीदी करता है और लगभग 27 करोड़ रुपये का कारोबार होता है, तेंदूपत्ते के कारोबार से राज्य सरकार को मुनाफा होने के साथ ही ग्रामीणों को भी अच्छा खासा मुनाफा होता है. इस साल अप्रैल माह के तीसरे सप्ताह से तेंदूपत्ते की तोड़ाई शुरू होनी है.


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