Chhattisgarh High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बच्चे की कस्टडी को लेकर दायर की गई एक याचिका पर फैसला सुनाया है. हाइकोर्ट ने कहा कि यदि पत्नी, पति की इच्छा अनुरूप स्वयं को नहीं ढालती है, तब यह बच्चे की कस्टडी से उसे वंचित करने का निर्णायक कारक नहीं होगा. हाईकोर्ट ने पारिवारिक अदालत के आदेश को रद्द करते हुए मां को बच्चे की कस्टडी सौंपने का फैसला दिया है. वकील सुनील साहू (Advocate Sunil Sahu) ने बताया कि जस्टिस गौतम भादुड़ी (Justice Gautam Bhaduri) और जस्टिस संजय एस अग्रवाल (Justice Sanjay S Agarwal) की युगल पीठ ने महासमुंद (Mahasamund) जिले की पारिवारिक अदालत के आदेश को रद्द करते हुए मां को बच्चे की कस्टडी सौंपने का फैसला सुनाया.

 

हाईकोर्ट की युगल पीठ ने याचिका के निर्णय में टिप्पणी करते हुए कहा है कि जींस, टी-शर्ट पहनने और पुरुष सहयोगियों के साथ नौकरी के सिलसिले में बाहर जाने से किसी भी महिला का चरित्र तय नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि इस तरह की सोच से महिलाओं के अधिकार और स्वतंत्रता के लिए चल रही लड़ाई लंबी और कठिन हो जाएगी. उसका कहना था कि ऐसी शुतरमुर्ग की तरह की मानसिकता रखने वाले समाज के कुछ लोगों के प्रमाण-पत्र से किसी महिला का चरित्र निर्धारित नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में यदि पत्नी, पति की इच्छा अनुरूप स्वयं को नहीं ढालती है, तो यह बच्चे की कस्टडी से उसे वंचित करने का निर्णायक कारक नहीं होगा.

 

2013 में हुआ था तलाक

 

वकील सुनील साहू ने बताया कि महासमुंद निवासी एक दंपती की शादी साल 2007 में हुई थी. इसी साल दिसंबर में उनका एक बेटा पैदा हुआ. शादी के पांच साल बाद साल 2013 में दोनों ने आपसी सहमति से तलाक ले लिया. दोनों में आपसी सहमति बनी कि बच्चा अपनी मां के पास रहेगा. इसके बाद बच्चे की मां महासमुंद में ही एक निजी संस्थान में ऑफिस असिस्टेंट की नौकरी करने लगी. लेकिन तलाक के बाद 2014 में बच्चे के पिता ने महासमुंद की पारिवारिक अदालत में आवेदन देकर बेटे को उसे सौंपने की मांग की. पारिवारिक अदालत में बच्चे के पिता ने बताया कि उसकी पत्नी अपने संस्थान के पुरुष सहयोगियों के साथ बाहर आना-जाना करती है, वह जींस-टी शर्ट पहनती है, उसका चरित्र भी अच्छा नहीं है, इसलिए उसके साथ रहने से बच्चे पर गलत असर पड़ेगा.

 

हाईकोर्ट ने बच्चे के पिता को उससे मिलने की दी सुविधा

 

वकील सुनील साहू के अनुसार गवाहों के बयान के आधार पर फैमिली कोर्ट ने 2016 में बच्चे की कस्टडी मां के स्थान पर पिता को सौंप दी थी. बच्चे की मां ने फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया कि दूसरों के बयान के आधार पर कोर्ट का यह निष्कर्ष निकालना गलत है कि पिता ही बच्चे की उचित देखभाल कर सकता है. साहू ने बताया कि कोर्ट ने बच्चे को उसकी मां को सौंपने का फैसला देने के साथ यह माना है कि बच्चे को अपने माता-पिता का समान रूप से प्यार और स्नेह पाने का अधिकार है. हाईकोर्ट ने बच्चे के पिता को उससे मिलने और संपर्क करने की सुविधा भी दी है.

 

ये भी पढ़ें-