Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ सरकार का सुपोषण अभियान (Suposhan Abhiyan) बस्तर में कमीशनखोरी (Commissioning) की भेंट चढ़ता दिखाई दे रहा है. सुपरवाइजर और जिम्मेदार अधिकारियों की कमीशन खोरी के चलते स्व सहायता समूह लाखों रुपए के कर्जे में डूब गए हैं. मामला नक्सल प्रभावित क्षेत्र सुकमा जिले के छिंदगढ़ ब्लॉक का है.


चिपुरपाल आदर्श ग्राम में सुपरवाइजर की कमीशनखोरी के चलते इंदिरा स्व सहायता समूह पर डेढ़ लाख रुपए का कर्जा हो गया है. स्व सहायता समूह की महिलाओं का आरोप है कि सुपरवाइजर और जिम्मेदार अधिकारी हर माह 10 हजार रुपये कमीशन मांगते हैं. उसके कारण स्व सहायता समूह डेढ़ लाख रुपये का कर्ज उतारने के लिए मजबूरी वश समूह चला रहे हैं. दरअसल आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों और गर्भवती महिलाओं को दिया जाने वाला रेडी टू ईट स्व सहायता समूह की तरफ से तैयार किया जाता है. समूह की महिलाओं ने सुपरवाइजर पर प्रतिमाह नफा राशि पर 10 हजार रुपए कमीशनखोरी का आरोप लगाया.


समूह की महिलाओं को 2 वर्षों से नहीं मिल रहा गेहूं


समूह की महिलाओं का कहना है कि प्रशासन की तरफ से मिलने वाला गेहूं पिछले 2 वर्षों से नहीं मिल रहा है. रेडी टू ईट के लिए प्रति माह 20 से 30 हजार रुपए में बाजार से गेहूं खरीदना पड़ रहा है. समूह की महिलाओं को फायदा की बजाए कर्ज का बोझ उठाना पड़ रहा है. सुपरवाइजर की कमीशनखोरी ने समूह की मुसीबतें और भी बढ़ा दी हैं. सुपरवाइजर पर कमीशनखोरी, काली कमाई के साथ ही रेडी टू ईट के लिए आवंटित गेहूं का भी अवैध रूप से कालाबाजारी करने का आरोप है. महिलाओं का कहना है कि जानकारी के अभाव का फायदा सुपरवाइजर उठाता है और हस्ताक्षर के एवज में रसीद का आधा हिस्सा देने की मांग होती है. उनका कहना है कि कमीशनखोरी और अवैध मांग का विरोध करने पर बिल पास नहीं करने की धमकी देते हुए समूह छोड़ देने को कहा जाता है. अधिकारियों से शिकायत करने पर बिल रकम कम करने की भी धमकी मिलती है.


कमीशनखोरी का विरोध करने पर मिलती है धमकी


दरअसल आदर्श ग्राम चिपुरपाल में 3 वर्षो से संचालित इंद्रा महिला स्व सहायता समूह  22 आंगनबाड़ी केंद्रों में रेडी टू ईट उपलब्ध कराती है. गौरतलब है कि सुकमा जिले को सुपोषण की रैंकिंग में प्रदेश का दूसरा स्थान मिला. महिला एवं बाल विकास विभाग ने उपलब्धि पर ढोल पीटने में पीछे नहीं हटा. कागजी आंकड़ों पर प्रशासन की उपलब्धि और जमीनी स्तर में बहुत विरोधाभास है. समूह की महिला सदस्यों का कहना है की पिछले 3 वर्षों से समूह चला रही हैं. समूह से तेल, शक्कर, गेहूं की अवैध मांग सुपरवाइजर के जरिए की जाती है और विरोध करने पर बिल नस्ति में साइन नहीं करने की धमकी मिलती है. पिछले 2 वर्षो से समूह को गेहूं भी नहीं दिया गया है. बाजार से जरूरत के अनुसार 20 से 30 हजार में गेंहू खरीदकर लाना पड़ रहा हैं. विभाग की प्रभारी जिला परियोजना अधिकारी प्रीति दुर्गम ने जांच करने की बात कही है. 


CM चन्नी के रिश्तेदार के घर छापे पर राहुल गांधी ने दी प्रतिक्रिया, जानें-ED और BJP का जिक्र कर क्या कुछ कहा?


UP Election 2022: यूपी चुनाव में PM Modi की वर्चुअल रैली का प्लान तैयार, इन लोगों से करेंगे बात