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Chhattisgarh के मैनपाट में आलूबुखारा और आडू-सतालू की खेती किसानों के लिए बन सकती है वरदान, जानिए कैसे
Chhattisgarh के सरगुजा जिले के मैनपाट में आलुबुखारा और आडू-सतालू की खेती कर किसान काफी मुनाफा कमा सकते हैं. लेकिन जागरूकता की कमी की वजह से किसान इन फलों की खेती नहीं कर पा रहे हैं.
Surguja News: छत्तीसगढ के शिमला कहे जाने वाले मैनपाट पहले अपनी खुशनुमा वादियों औऱ हरे भरे पहाडियों के लिए चर्चित था. लेकिन अब यहां पर ठंडे प्रदेशो मे होने वाले फल के पौधो का भी सफल प्रयोग हो चुका है. इसमे लोग आलुबुखारा (Plum) औऱ आडू-सतालू (Peach) जैसे वो फल शामिल हैं जो केवल पहाडी औऱ ठंडे प्रदेशो मे लगाए जाते थे. लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि ऐसे फलों के सफल परीक्षण के बाद भी मैनपाट मे इसकी खेती बडे पैमाने पर नही शुरु हो सकी है, जिससे किसान की ना ही आय मे इजाफा हो रहा है और ना ही अनुसंधान केन्द्र के परीक्षण का कोई परिणाम मिल पा रहा है.
मैनपाट में सेब, काले अंगूर के पौधे लगाने का प्रयोग रहा सफल
छत्तीसगढ का हिल स्टेशन मैनपाट समुद्र तल से 1175 मीटर की ऊंचाई पर बसा है. करीब 40 वर्ग किलोमीटर के इस इलाके मे मौसम प्रदेश के अन्य स्थानो से खुशनुमा रहता है. इसी वजह से कुछ साल पहले यहां के आलू अनुसंधान केन्द्र मे सेब, काले अंगूर के साथ सतालू और आलुबुखारा जैसे पौधो को तैयार कर उनको जमीन मे लगाया गया. नतीजा ये हुआ कि यहां का मौसम इन पौधो के लिए अनूकूल निकला औऱ फिर कुछ ही वर्ष मे ये पौधे फलदार पौधे हो गए और अच्छी पैदावार भी होने लगी. अनुसंधान केन्द्र मे इन सब फलो मे आलुबुखारा (PLUM) औऱ आडू-सतालू (PEACH) की बंपर पैदावार होने लगी. ये दोनो फलो में आलुबुखारा की दो वैरायटी आती है. इनमे एक सतलज परपल औऱ दूसरी काला अमृतसर है. इसके साथ ही आडू-सतालू की पांच वैरायटी आती हैं जिसमे शान-ए-पंजाब, प्रताप, अर्लीग्रांड, फ्लोरिडा प्रिंस, नेक्ट्रिन जैसी वैरायटी शामिल हैं.
तिब्बती परिवार आलूबुखारा और आडू-सतालू के फल बेचकर कमा रहे मुनाफा
आलुबुखारा (PLUM) औऱ आडू-सतालू (PEACH) आज से पहले इन दोनों की सबसे अधिक पैदावार हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड , जम्मू और पंजाब के तराई इलाको मे होती थी. लेकिन छत्तीसगढ के पहाडी इलाके मैनपाट मे मौसम इन प्रदेशो के समतुल्य ही रहता है. लिहाजा इन दोनो फलों की यहां व्यापक पैमाने मे पैदावार की संभावना बढी है. लेकिन उसके बावजूद ये इन फलो के पैदावार का सफल प्रयोग फिलहाल अनुसंधान केन्द्र मे ही दिखाई देता है. जबकि कुछ लोग ही इसकी खेती के प्रति जागरूक हुए हैं. उनमे मैनपाट मे बसाए गए तिब्बती परिवार के लोग ज्यादा संख्या मे शामिल हैं. चीन के हमले के बाद तिब्बतियो को वहां से मिलते जुलते मौसम वाले मैनपाट मे बसाया गया था. इसलिए पहाडी इलाके के फलदार पौधो को लगाने के लिए ये लोग काफी उत्साहित हुए. नतीजा ये हुआ कि यहां के 7 कैंपो मे रहने वाले कुछ तिब्बती परिवार आलुबुखारा (PLUM) औऱ आडू-सतालू (PEACH) दो फलदार पौधे लगाकार, इन फलो को बेच भी रहे है. जिससे उनकी अच्छी आमदनी हो रही है.
आडू-सतालू और आलुबुखारे की खेती बन सकती है किसानों के लिए वरदान
मैनपाट स्थित अनुसंधान केन्द्र के प्रमुख और वैज्ञानिक राठिया के मुताबिक अगर लोग इसकी खेती करें तो उनको अच्छा मुनाफा हो सकता है. जिसके लिए अनुसंधान केन्द्र द्वारा कई किसानो को खेती करने के लिए आलुबुखारा (PLUM) औऱ आडू-सतालू (PEACH) के पौधे दिए गए. उनको इसको लगाने, खाद पानी और कटिंग के लिए बताया भी गया. लेकिन जागरूकता के आभाव और खेतो मे फेसिंग के आभाव मे किसान पौधो को बचा नहीं पाते हैं. इन्होने कहा कि तिब्बती कैंप नंबर 1, 2, 3, 5 जैसे कैंपो मे तिब्बती परिवार ने इसको खेती के रूप मे अपना लिया है.औऱ आलुबुखारा (PLUM) औऱ आडू-सतालू (PEACH) जैसे फलो से अच्छी आमदनी कर रहे हैं.
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प्रफुल्ल सारडा,राजनीतिक विश्लेषक
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