Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के दंतेवाड़ा (Dantewada) जिले में देश की नवरत्न कंपनी में से एक NMDC पिछले कई सालों से इस क्षेत्र की पहाड़ियों से लौह खनन कर रही है और इससे NMDC के साथ-साथ सरकार को भी अच्छी आमदनी हो रही है, लेकिन इस क्षेत्र के ग्रामवासी मूलभूत सुविधाओं के लिए पिछले कई सालों से जूझ रहे हैं और इनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं है. भीषण गर्मी से जहां लोग परेशान हैं वही जिले के बैलाडीला लौह खदान के आसपास मौजूद करीब 7 गांव के ग्रामीण अपनी प्यास बुझाने के लिए नाले का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं.
जान के साथ खिलवाड़
गांव के सैकड़ों ग्रामीण पिछले कई सालों से इसी गंदे पानी से अपनी प्यास बुझा रहे हैं. शासन प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से हैंडपंप के लिए कई बार गुहार लगाने के बावजूद भी उनकी एक भी सुनवाई नहीं हुई. लिहाजा सैकड़ों ग्रामीण इस गंदे पानी को पीकर मजबूरी में अपनी जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं.
कोई अधिकारी नहीं पहुंचा
जानकारी के मुताबिक दंतेवाड़ा और बीजापुर जिले के सरहद पर मौजूद बैलाडीला के घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में 7 गांव बसे हुए हैं. इनमें हुर्रेपाल, तिमेंनार, एटेपाल समेत अन्य गांव हैं. इस गांव में पानी की भारी किल्लत है. नक्सल प्रभावित इलाका होने की वजह से आज तक कोई भी प्रशासनिक अधिकारी इन इलाकों के ग्रामीणों की समस्या सुनने नहीं पहुंचा है.
मजबूरी में पीते हैं
यहां के ग्रामीणों ने बताया कि करीब 15 से 20 साल पहले गांव में 2 हैंडपंप लगाए गए थे जो कुछ ही दिन चले और उसके बाद पूरी तरह से खराब हो चुके हैं. पानी लेने गांव से कई किलोमीटर दूर पहाड़ियों से निकलने वाले बरसाती नाले में के पास जाते हैं. ग्रामीणों ने कहा कि इस नाले से गंदा पानी आता है लेकिन जीने के लिए पानी पीना भी मजबूरी है. ग्रामीणों ने बताया कि इसी पानी से मवेशी और जंगली जानवर भी प्यास बुझाते हैं..
झरिया के पानी से काम नहीं चलता
ग्रामीणों ने बताया कि हुर्रेपाल में बरसाती नाले के पास ग्रामीणों ने मिलकर झरिया बनाया है और उसमें दिन भर में सिर्फ दो बार ही पानी ले सकते है, क्योंकि इतना ही पानी इकट्ठा होता है. पानी भरने के लिए आपस में सहमति बनाकर समय निर्धारित कर लिया जाता है और जो ग्रामीण झरिया से सुबह पानी भरते हैं फिर शाम को पानी लेने नहीं आते हैं, क्योंकि इसमें जितना पानी जमा होता है वह कुछ लोगों की पूर्ति के लिए ही होता है.
बहुत दिक्कत होती है
एक परिवार दो बार पानी ले लेगा तो बाकियों को पानी नहीं मिल पाएगा. यह सिलसिला पिछले कई सालों से चल रहा है. हालांकि पास में ही नाले के पानी का भी उपयोग किसी भी वक्त कोई भी ग्रामीण कर सकते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि भीषण गर्मी में पानी के दोनों स्त्रोत पूरी तरह से सूख जाते हैं जिससे प्यास बुझाने के लिए ग्रामीणों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
सिर्फ आश्वासन मिला
ग्रामीणों का कहना है कि हैंडपंप की मांग को लेकर जिम्मेदारों के दफ्तरों के चक्कर काट काट कर थक चुके हैं किसी ने भी समस्या का समाधान करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. हालांकि आश्वासन जरूर मिला लेकिन कई साल बीतने के बाद भी पानी की समस्या से निजात नहीं मिल पाया.
नाला सूखा तो प्यासे रहना पड़ेगा
वहीं हुर्रेपाल गांव के सरपंच राजूराम ओयाम ने बताया कि जिन गांवो में पानी की किल्लत है वहां के ग्रामीणों के साथ साल भर पहले बैठक हुई थी. कुल 27 बोर उत्खनन कर हैंडपंप लगाने का प्रस्ताव बनाया गया था. अधिकारियों को प्रस्ताव देकर हैंडपंप की मांग किए थे. साल भर बीत जाने के बाद भी आज तक कोई भी अधिकारी गांव में आकर हालात नहीं देखे हैं. अधिकारी ग्रामीणों की परेशानियों को दूर करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. अगर अब नाले का पानी सूख जाए तो पूरे ग्रामीणों को प्यासा रहना पड़ जाएगा.
अधिकारी ने क्या कहा
इधर पीएचई विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों का कहना है कि विभाग की टीम द्वारा कोशिश की जा रही है कि जल्द से जल्द इन गांवों में हैंडपंप बनाया जा सके ताकि ग्रामीणों को पेयजल की समस्या से निजात मिल सके. वही अधिकारियों ने जो जो हैंडपंप बिगड़े हुए हैं उन्हें भी ठीक कराने की बात कही है.