Sukma News: भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत इन दिनों छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के प्रवास पर पहुंचे हुए हैं, जहां वे यहां के आदिवासी किसानों से मुलाकात कर उनके द्वारा उगाई जा रहे फसलों की जानकारी और उनके भाव की जानकारी ले रहे हैं. सुकमा प्रवास के दौरान राकेश टिकैत को जानकारी मिली कि बीते 5 सितंबर को ताड़मेटला गांव में एक कथित फर्जी मुठभेड़ हुई है. ऐसे में उन्होंने गांव के ग्रामीणों से मुलाकात करने और इस घटना की सच्चाई जानने के लिए सुकमा जिले से ताड़मेटला के लिए निकले, लेकिन गोरगुंडा सीआरपीएफ कैंप में सुरक्षा का हवाला देते हुए राकेश टिकैत को जवानों ने रोक लिया. दरअसल गोलगुंडा के आगे पूरी तरह से नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने की वजह से जवानों ने उन्हें आगे जाने नहीं दिया. राकेश टिकैत ने कहा कि पिछले 4 दशकों से बस्तर नक्सलवाद का दंश झेल रहा है और पुलिस और नक्सलियों के बीच भोले भाले निर्दोष ग्रामीण बेवजह मारे जा रहे हैं. ऐसे में सरकार को जल्द ही नक्सलवाद को समाप्त करने के लिए बातचीत के जरिए ही रास्ता निकाला जाना चाहिए. टिकैत ने कहा कि इस क्षेत्र के किसानों के पास बड़ी मात्रा में खेती किसानी के लिए जमीन होने के बावजूद भी उनकी स्थिति जस की तस बनी हुई है और उनका आर्थिक विकास नहीं हो पा रहा है. साथ ही इनके फसलों को भी सरकार की ओर से सही भाव नहीं मिल पा रहा है जिस वजह से इस क्षेत्र में पिछड़ापन है.


किसानों को नहीं मिल रहा फसलों का सही भाव


राकेश टिकैत ने कहा कि छत्तीसगढ़ प्रदेश काफी खूबसूरत प्रदेश है खासकर बस्तर संभाग पूरी तरह से प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा हुआ है, लेकिन केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रही है. यही वजह है कि इस क्षेत्र के आदिवासी ग्रामीण पिछड़ेपन का मार झेल रहे हैं, राकेश टिकैत ने कहा कि यहां ऑर्गेनिक खेती की पूरी संभावना है और किसानों के पास अच्छी खासी जमीन भी है, लेकिन इन किसानों का आर्थिक विकास नहीं हो पाने की वजह से उनके पास अच्छी फसलों को लगाने के लिए पैसे नहीं है. वही उनके द्वारा उगाए जाने वाले फसलों को सही भाव भी सरकार की ओर से नहीं दिया जा रहा है, जिसके चलते आजादी के 77 साल बाद भी क्षेत्र के आदिवासी किसान पुरानी पद्धति से ही खेती कर अपना गुजारा कर रहे हैं. ऐसे में सरकार को चाहिए कि इनके बेहतर जीवन के लिए उनके फसलों के भाव बढ़ने के साथ हाईटेक पद्धति से खेती के लिए किसानों को जागरूक किया जाना चाहिए.


बातचीत से नक्सलवाद का समाधान निकालने की जरूरत


वहीं उन्होंने कहा कि बस्तर में नक्सलवाद का मुख्य कारण इस क्षेत्र में विकास नहीं पहुंच पाना है. आज भी गांव-गांव में सड़क, बिजली पानी की सुविधा नहीं है. शिक्षा, स्वास्थ्य की सुविधा नहीं है. यहां के आदिवासी किसान और जनता पढ़े-लिखे नहीं होने की वजह से देश के अन्य राज्य और शहरों से काफी पिछड़े हुए हैं. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में फोर्स तैनात है और पिछले लंबे समय से नक्सलवाद से लड़ाई लड़ रहे है, लेकिन नक्सलवाद के समाधान के लिए बातचीत ही एक साधन है, ऐसे में सरकार के प्रतिनिधियों और नक्सलियों को शांति वार्ता कर इसका समाधान निकालने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि यहां नक्सलवाद बढ़ने का कारण  अशिक्षा, बेरोजगारी और गरीबी है. अगर सरकार इस पर ध्यान देती है तो जरूर नक्सलवाद का समाधान होगा और बातचीत से ही सही रास्ता भी निकलेगा.


सीआरपीएफ के जवानों ने ताड़मेटला गांव जाने से रोका


राकेश टिकैत ने कहा कि उन्हें सुकमा पहुंचने के दौरान जानकारी मिली कि बीते 5 सितंबर को ताड़मेटला गांव में पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई, जिसमें 2 नक्सली मारे जाने का दावा पुलिस कर रही है, लेकिन ताड़मेटला गांव के ग्रामीणों का कहना है कि इस मुठभेड़ में मारे गए दोनों नक्सली नहीं बल्कि निर्दोष ग्रामीण है, और घटना के बाद से लगातार ताड़मेटला गांव के ग्रामीण न्याय की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. इसी आंदोलन के समर्थन में वे भी ताड़मेटला गांव जा रहे थे, लेकिन उन्हें गोलकुंडा सीआरपीएफ कैंप में ही पुलिस ने सुरक्षा का हवाला देते हुए रोक लिया. उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि इन ग्रामीणों से और मृतकों के परिवार से मुलाकात कर घटना की सच्चाई जानें लेकिन पुलिस उन्हें ताड़मेटला गांव जाने नहीं दे रही है. टिकैत ने कहा कि इस घटना की जरूर न्यायिक जांच होनी चाहिए.


ये भी पढ़ें: Chhattisgarh News: बस्तर में निभाई गई दशहरा पर्व की 600 साल पुरानी परंपरा, जानें कैसे होता है विश्व प्रसिद्ध रथ का निर्माण