Bastar News: छत्तीसगढ़ के बस्तर में मनाए जाने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की एक और महत्वपूर्ण मावली परघाव की रस्म नवरात्रि के नवमी के दिन मंगलवार को देर रात अदा की गई. मावली माता और दंतेश्वरी देवी के मिलन की इस रस्म को जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर परिसर के कुटरूबाढ़ा में सम्पन्न किया गया. परंपरा अनुसार इस रस्म में दंतेवाड़ा से मावली देवी की छत्र और डोली को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है, जिसका स्वागत बस्तर के राजपरिवार और बस्तरवासियों के द्वारा किया जाता है. कोरोनाकाल के 2 साल बाद इस साल यह रस्म धूमधाम से मनाई गई...नवरात्रि के नवमी के दिन मनाए जाने वाली इस रस्म को देखने इस साल बड़ी संख्या में लोगों का जनसैलाब उमड़ा.
600 सालों से चली आ रही परंपरा
मंगलवार देर रात दंतेवाड़ा से पहुंची मावली माता की डोली और छत्र का बस्तर के राजकुमार ने भारी आतिशबाजी और फूलों से भव्य स्वागत किया. दंतेश्वरी मंदिर के परिसर में मनाए जाने वाली इस रस्म को देखने हजारों की संख्या में हर साल लोग पहुंचते हैं...मान्यता के अनुसार 600 सालों से इस रस्म को धूमधाम से मनाया जाता है. बस्तर के महाराजा रुद्र प्रताप सिंह डोली का भव्य स्वागत करते थे, यह परंपरा आज भी बस्तर में बखूबी निभाई जाती है और अब बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव इस रस्म की अदायगी करते हैं.
बस्तर के राजकुमार करते हैं डोली का स्वागत
बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव ने बताया कि परंपराओं के अनुसार देवी मावली कर्नाटक राज्य के मलवल्य गांव की देवी हैं, जो छिन्दक नागवंशी राजा द्वारा उनके बस्तर के शासनकाल में लाई गई थी... छिंदक नागवंशी राजाओं ने 9वीं और 14वीं शताब्दी तक बस्तर में शासन किया...इसके बाद चालुक्य वंश के राजा अन्नम देव ने जब बस्तर में अपना नया राज्य स्थापित किया, तब उन्होंने मावली देवी को भी अपनी कुलदेवी के रूप में मान्यता दी...
ऐसे शुरू हुई मालवी परघाव रस्म
मावली देवी का बस्तर दशहरा पर्व में यथोचित सम्मान और स्वागत करने के लिए मावली परघाव रस्म शुरू की गई. बस्तर के जानकार हेमंत कश्यप के मुताबिक नवरात्रि के नवमी के दिन दंतेवाड़ा से आई मावली देवी की डोली का स्वागत करने बस्तर राजपरिवार सदस्य, राजगुरु और पुजारी के अलावा स्थानीय जनप्रतिनिधि राजमहल से मंदिर के परिसर कुटरुबाड़ा तक आते हैं. उनकी अगवानी और पूजा-अर्चना के बाद देवी की डोली को बस्तर के राजकुमार कंधों पर उठाकर राजमहल स्थित देवी दंतेश्वरी के मंदिर में लाकर रखते हैं. जिसके बाद इसे दशहरा पर्व समापन होने तक मंदिर के अंदर रखा जाता है.
पूरे सम्मान के साथ होती है माता की विदाई
दशहरा के दौरान होने वाली महत्वपूर्ण रस्म भीतर रैनी और बाहर रैनी, कुटुम जात्रा, काछन जात्रा में माता की डोली और छत्र को शामिल किया जाता है. बस्तर के राजकुमार कमलचंद देव ने बताया कि हर्षोल्लास के साथ पूरे विधि-विधान से दशहरा के रस्मों को सम्पन्न कराया जा रहा है. साथ ही दशहरे के समापन पर इसकी ससम्मान विदाई होती है. बस्तर राजपरिवार सदस्य कमलचंद भंजदेव द्वारा डोली की पूजा-अर्चना की जाती है.
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