Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बस्तर (Bastar) जिले में अपने दो सूत्रीय मांगों को लेकर पूरे प्रदेश भर में आंदोलन कर रहे मनरेगा के कर्मचारियों के अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाने से मनरेगा मजदूरों को आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ रहा है. खास कर छत्तीसगढ़ के बस्तर के अंदरूनी ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा के तहत काम नहीं होने से ग्रामीण मजदूरों का काफी बुरा हाल है और उन्हें  आर्थिक तंगी से जूझना पड़ रहा है.  मनरेगा अधिकारियों और कर्मचारियों के हड़ताल को 2 महीने पूरे होने को है और बीते साल 2 महीने की तुलना में केवल 5% ही मनरेगा के काम बस्तर जिले में हुए हैं और ऐसे में बस्तर जिले के मनरेगा के मजदूरों को करीब 14 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ है.


हालांकि जिला प्रशासन के अधिकारी  मनरेगा के कार्यों को  संचालन करने अन्य विभाग के कर्मचारी अधिकारियों से पूरा करने की बात कह रह है, लेकिन हड़ताल की वजह से मनरेगा जैसी बड़ी और विस्तृत योजना का क्रियान्वयन कर पाना संभव नहीं हो पा रहा है. जिसके चलते ग्रामीण मजदूरों को सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.


मानसून से बंद हो जाएंगे मनरेगा के काम 


दरअसल रोजगार सहायकों से ग्रामीणों का सीधा संपर्क होता है ग्रामीण विभाग से परिचित होने के कारण रोजगार सहायक उन्हें रोजगार उपलब्ध कराते हैं, गांव में घूम-घूम कर ग्रामीण मजदूरों से संपर्क कर उन्हें मनरेगा के काम में जोड़ते हैं,लेकिन  उनके हड़ताल पर चले जाने से मांग के अनुरूप काम उपलब्ध नहीं हो पा रहा है.


15 जून के बाद मनरेगा के तहत मिट्टी से संबंधित तालाब, डबरी, कुआं, गहरीकरण के कार्य मानसून आने की वजह से बंद हो जाएंगे, जिसमें सबसे अधिक काम मिलता है ऐसे में मजदूरों को आने वाली दिनों की चिंता सताने लगी है.


इधर  जिला मनरेगा प्रभारी अधिकारी डी.पी देवांगन का कहना है कि मनरेगा  कर्मियों के अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाने से वैकल्पिक तौर पर पंचायत सचिवों और अन्य विभाग के अधिकारी कर्मचारियों से काम लिया जा रहा है और कोशिश यही की जा रही है कि शासन के लक्ष्य के मुताबिक  गांव के मजदूरों को मानव दिवस रोजगार उपलब्ध कराया जा सके , लेकिन योजना का सही क्रियान्वयन कर पाना और मजदूरों को रोजगार दिला पाना संभव नहीं हो पा रहा है.


आजीविका के लिए मजदूर हो रहे परेशान


इधर मजदूरों का कहना है कि मनरेगा उनके लिए रोजगार उपलब्ध कराने की दृष्टि से एक  वरदान से कम नहीं है. फसल की कटाई के बाद बस्तर के ग्रामीण अंचलों के ग्रामीणों के पास कोई काम नहीं होता, इस खाली समय में भी अपने आजीविका के लिए केवल इस महत्वकांक्षी योजना पर निर्भर रहते हैं और योजना में कार्यरत समस्त अधिकारी कर्मचारी बीते 3 अप्रैल से 2 सूत्री मांग को लेकर लगातार हड़ताल पर चले गए हैं और उनकी  मांग अब तक पूरी नहीं हो पाई है, जिससे श्रमिकों को आर्थिक संकट से गुजरना पड़ रहा है. रोजगार पाने के लिए मजदूर दर दर भटकने को मजबूर हो रहे हैं. पिछले साल जहां 100% रोजगार मिला था तो वहीं इस साल केवल 5% ही रोजगार मिल पाया है...


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