Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक बार फिर पुलिस के जवानों पर फर्जी मुठभेड़ करने का आरोप लगा है. दरअसल, 20 दिसंबर को बीजापुर जिले के बुर्जी तिम्मेनार के जंगलों में हथियार के साथ जिस नक्सलियों के मिलिट्री इंटेलिजेंस के सदस्य रंजू मड़कम को मारने का दावा पुलिस ने किया था अब उसके परिजन और गांव के ग्रामीणों ने पुलिस पर सवाल उठाया है.


जगदलपुर में परिजनों ने मीडिया को बताया कि रंजू मड़कम खेत गया था, जहां निहत्थे रंजू की जवानों ने गोली मारकर हत्या कर दी फिर उसे नक्सली बता दिया. इसके बाद रीत-रिवाज के अनुसार शव का अंतिम संस्कार भी करने नहीं दिया.


जवान जानते थे कि उनकी तरफ से गलती हो गई है ऐसे में वे घटना को लेकर कोई सबूत नहीं छोड़ना चाहते थे. इसलिए कहीं इस फर्जी मुठभेड़ का भेद न खुल जाए इसलिए रीत-रिवाज के अनुसार शव को दफनाने नहीं दिया और जल्दबाजी में रिश्तेदारों का इंतजार किए बगैर जबरदस्ती चिता पर लकड़ी और डीजल डालकर शव को जला दिया. इस दौरान समाजिक कार्यकर्ता सोनी सोढ़ी, बुर्जी गांव के मूलआदिवासी बचाओ मंच के लखन पुनेम,बेचापाल मूलआदिवासी बचाओ मंच के राजू हेमला, लक्खे, आशू, राजू, मुन्ना पुनेम, लखमा और रमा समेत परिवार के लोग मौजूद थे.


पहले पैर में गोली लगी थी
रंजू मड़कम के साथ खेत जाने वाले रमेश ने बताया कि वह इस पूरी घटना का जश्मदीद है. 20 दिसंबर को रंजू और रमेश साथ में खेत गए हुए थे, क्योंकि धान खरीदी का समय चल रहा है इसलिए वे अपना धान ले जाने की तैयारी पिछले कुछ दिनों से कर रहे थे. इसी दौरान जंगल में शौच की बात कहकर वह चला गया. इसी दौरान जवानों ने मोर्चा संभाल लिया था, कुछ देर बाद जब वह वापस लौटा और खेत में पहुंचा तो जवानों ने गोली चला दी. शुरू में उसके पैर में गोली लगी और वह ठीक था, लेकिन इसके बाद पुलिस ने और गोली चलाई जिसमें उसकी मौत हो गई. जब वह रंजू की तरफ गया तो पुलिस ने उसे भी पकड़ लिया और अपने साथ पुलिस कैंप ले गए. यहां रंजू को नक्सली बताने को कहा और मुझे गवाह बना दिया. 


जवानों ने दबाव बनाकर करवाया अंतिम संस्कार
सुकमा के बेचापाल मूलनिवासी बचाओं मंच के अध्यक्ष ने कहा कि घटना के बाद शव को पुलिस बीजापुर लेकर गई. उन्होंने इस मामले में एसपी को फोन कर जानकारी ली. पुलिस वालों ने रंजू को नक्सली बताया और शव परिजनों को सौंपने की बात कहीं. 21 दिसंबर को गांव वालों को पुलिस ने शव सौंप दिया, लेकिन पुलिस को शक हो गया था कि उनका भेद खुल सकता है. इसलिए 21 दिसंबर की रात को ही इलाके के एसडीओपी और डीआरजी के जवान गांव पहुंच गए और वे शव के साथ ही रहे. परिवार वालों ने रिश्तेदारों के आने की बात कहते हुए एक दिन बाद अंतिम संस्कार की बात कही, लेकिन वे नहीं माने और रातभर गांव में ही रहे और सुबह से अंतिम संस्कार के लिए जल्दबाजी करने लगे. परिवार वालों ने जब शव को दफनाने की परंपरा बताई तो वे नहीं माने.


एक साल पहले ही हुई थी शादी
इस डर से की कहीं बाद में कब्र खोदने के बाद असलियत बाहर न आ जाए इसलिए शव को जलाने के लिए दबाव बनाया. जंगल से लकड़ी लाने से लेकर चिता तैयार करने तक का काम जवानों ने ही किया और फिर लकड़ी में डीजल डालकर आग लगा दिया. गांव में पहुंचने के बाद जब पुलिस की टीम उनके शव को जलाने के लिए दबाव बना रही थी तब गांव वालों ने इसका वीडियो भी बना लिया था, लेकिन पुलिस वालों ने यह सब देख लिया था और सभी के मोबाइल अपने पास रख लिए और सारे वीडियो डीलिट कर दिए. इधर परिवार वालों का कहना है कि रंजू ने एक साल पहले ही शादी की थी उसकी पत्नी गर्भवती है. गांव वालों की सुरक्षा करने के नाम पर कैंप खोला गया, लेकिन कैंप खुलने के एक महीने के अंदर ही निर्दोष रंजू मड़कम को नक्सली बताकर मार दिया गया.


सोनी सोढ़ी ने लगाया ये आरोप
इधर पीडि़त परिवार के साथ पहुंची सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोढ़ी ने कहा कि कांग्रेस के शासन में भी आदिवासियों पर जुर्म नहीं थम रहा है. उन्होंने बीजापुर के ही बुर्जी इलाके की जानकारी देते हुए कहा कि पुलिस प्रशासन ने करीब 8 दिन तक उन्हें बुर्जी गांव जाने नहीं दिया. इसके बाद जब वह यहां पहुंची तो भी मौके पर पुलिस ग्रामीणों की पिटाई कर रही थी. उनके कड़े विरोध के बाद जवानों ने मारपीट बंद की इतना ही नहीं रंजू की मौत पर भी उन्होंने साफ कहा कि यह बेहद संवेदनशील घटना है. ग्रामीणों में कड़ा आक्रोश है, बस्तर के आदिवासी नेता इस तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं. इसलिए अब इस मामले को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे, क्योंकि ग्रामीणों को वहीं से न्याय की उम्मीद है.



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