छत्तीसगढ़ के बस्तर में स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च करने का दावा सरकार के द्वारा किया जाता है, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है. बस्तर संभाग के सबसे बड़े सरकारी स्व महेंद्र कर्मा अस्पताल में पहले से ही डॉक्टरों की कमी तो बनी हुई है. वहीं पिछले 3 सालों से रेडियोलॉजिस्ट नहीं होने की वजह से करोड़ों रुपए की सीटी स्कैन, एक्सरे मशीन और अल्ट्रासाउंड की मशीन बेकार पड़ी है. जांच के बाद रिपोर्ट नहीं मिल पाने से मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है और प्राइवेट अस्पतालों में मोटी रकम देकर एक्सरे और सीटी स्कैन करवाना पड़ रहा है.
खासकर घायल जवानों के साथ कई बीमारियों से पीड़ित होने वाले नक्सल मोर्चे पर तैनात जवानों को इस अस्पताल में सही इलाज नहीं मिल पा रहा है, जिसके चलते संभाग का सबसे बड़ा अस्पताल रेफर सेंटर बनकर रह गया है, वहीं रेडियोलॉजिस्ट की भर्ती के लिए भी अस्पताल प्रबंधन अपनी तरफ से कोई प्रयास नहीं कर रहा है जिसके चलते अब करोड़ो रूपये की मशीनें केवल शो पीस बनकर रह गयी है.
बीते 3 सालों से बनी हुई है रेडियोलॉजिस्ट की कमी
दरअसल बस्तर वासियों के स्वास्थ सुविधा में विस्तार की बढ़ती मांग को लेकर जगदलपुर से लगे डिमरापाल में करीब 500 करोड़ रुपए की लागत से संभाग का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल तैयार किया गया. लगभग 600 बेड वाले इस अस्पताल में लंबे समय से जरूरी मशीनों की कमी बनी हुई थी, जिसके बाद DMFT फंड से करोड़ों रुपए की लागत से सीटी स्कैन मशीन, x-ray मशीन और अल्ट्रासाउंड मशीन की खरीदी की गई, लेकिन रेडियोलॉजिस्ट की भर्ती के लिए प्रबंधन ने कोई ध्यान नहीं दिया.
बताया जा रहा है कि इस अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट के 8 पद स्वीकृत है लेकिन सभी खाली हैं और इन मशीनों के जरिए जांच के बाद रिपोर्ट तैयार करने के लिए अस्पताल में कोई भी स्पेशलिस्ट नहीं है, हालांकि सीटी स्कैन, एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड जैसी मशीनों में उपचार कर रिपोर्ट नहीं बल्कि केवल फिल्म देखकर डॉक्टर इलाज कर रहे हैं, वह भी भगवान भरोसे है. अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट नहीं होने की वजह से पूरे संभाग भर के मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
रेफर सेंटर बना करोड़ों का अस्पताल
जानकारी के मुताबिक डिमरापाल अस्पताल में रोजाना 70 से 80 मरीजों का सीटी स्कैन किया जाता है. वहीं सोनोग्राफी के लिए 60 से 65 मरीज रोजाना आते हैं, लेकिन यहां पर स्टाफ की कमी की वजह से सिर्फ 20 से 25 मरीजों का ही सोनोग्राफी हो पाता है.
डॉक्टर के नहीं होने की वजह से मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. सबसे ज्यादा हेड इंजुरी के मरीज पहुंचते हैं, जिनके रिपोर्ट की सख्त आवश्यकता होती है. ऐसे में यहां या तो डॉक्टर जांच करते हैं, या फिर मरीज को रेफर कर देते हैं.
इस सरकारी अस्पताल के अधीक्षक डॉ.अनूरुप साहू का कहना है कि रेडियोलॉजिस्ट के नहीं होने से रिपोर्टिंग में दिक्कत हो रही है. संविदा तौर पर नए विशेषज्ञ की नियुक्ति किए जाने का प्रयास किया जा रहा है, फिलहाल सीनियर रेसीडेंट की मदद से चिकित्सक फिल्म के आधार पर मरीज का उपचार कर रहे है. खुद अस्पताल अधीक्षक का मानना है कि उनके यहां 8 पदों की स्वकृति है लेकिन पिछले 3 सालों से एक भी रेडियोलॉजिस्ट नहीं है, ऐसे में मरीजों के साथ-साथ प्रबंधन को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
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