Chhattisgarh News: आज हम आपको उस मजार के बारे में बताएंगे, कहा जाता है कि यहां हर मुराद पूरी होती है. अम्बिकापुर नगर के उत्तर-पूर्व की ओर तकिया गांव है और इसी गांव में बाबा मुरादशाह वली और बाबा मोहब्बतशाह वली के साथ एक छोटी मजार भी है. जिसे उनके तोते की मजार भी कहा जाता है. इस मजार पर दुआ मांगने के लिए सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग इकठ्ठा होते हैं. मजार पर चादर चढ़ाते हैं, लोग मन्नते मांगते हैं. बाबा मुरादशाह अपने मुरादशाह नाम के मुताबिक मुरादें भी पूरी करते हैं. मजार के पास ही देवी स्थान भी है, जो सांप्रदायिक सौहार्द का जीवंत उदहारण है.


सरगुजा जिले के अम्बिकापुर से महज कुछ दूरी पर तकिया मजार बनी है. जहां हर दुख तकलीफ का इलाज होता है. ये मजार हजरत बाबा मुरादशाह वली और हजरत बाबा मोहब्बतशाह वली का है और 300 साल पुरानी इस मजार पर हर जाति-धर्म के लोग आते हैं.  अम्बिकापुर के तकिया मजार में आने वाले लोग बाबा से दुआ मांगने के साथ-साथ तोते की मजार पर भी चादर चढ़ाकर मन्नत मांगते हैं. ऐसा माना जाता है कि यहां जो भी मन्नत मांगी जाती है वो कुबूल होती हैं. लोग मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और अन्य राज्यों से यहां दर्शन करने आते हैं.


कैसे बना देवी का मंदिर


आज से लगभग 300 साल पहले हजरत बाबा मुराद्शाह वली अम्बिकापुर पहुंचे थे. यहां वो एक गरीब कुम्हार के घर रुके. उस दिन कुम्हार के घर चुल्हा नहीं जला था. हजरत बाबा मुरादशाह वली ने जब कुम्हार से इसका कारण पूछा तो कुम्हार ने बताया कि पहाड़ पर एक राक्षसी रहती है. जो हर दिन गांव के एक बच्चे की बलि लेती है, आज मेरी बेटी की बारी है. ये बात सुनते ही हजरत बाबा मुरादशाह वली ने कहा कि तुम चिंता मत करो, घर में चूल्हा जलाओ. खाना बनाओ और मुझे भी खिलाओ. आज मैं आपके बच्चे की जगह उस पहाड़ पर जाऊंगा. हजरत बाबा मुरादशाह वली ने कुम्हार के घर पर भोजन किया, और पहाड़ की तरफ चल पड़े. जैसे ही बाबा पहाड़ पर पहुंचे. राक्षसी हजरत बाबा मुराद्शाह वली को खाने का प्रयास करने लगी. तब बाबा ने अपने चिमटे से राक्षसी के नाक और कान को पकड़कर दबा दिया और उसकी नाक कट गई. राक्षसी द्वारा पानी मांगने पर बाबा मुरादशाह वली ने अपने चिमटे से पहाड़ खोदकर पानी निकाला. जिसे वर्तमान में बांक नदी के नाम से जाना जाता है. बाबा के चमत्कार से प्रभावित राक्षसी वहीं रहना चाहती थी. उसकी बात मानकर बाबा मुरादशाह ने उसे अपने साथ रख लिया. तभी से बाबा के मजार के पीछे मंदिर बनाया गया. जिसे नक्कटती देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है. 


 बाबा मुरादशाह का बेहद खास उनका तोता


तकिया में हजरत बाबा मुरादशाह के भाई हजरत बाबा मोहब्बतशाह की भी मजार है, और इन दोनों की मजार के ठीक नीचे एक तोते की मजार भी है. जिसे देखने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं. कहा जाता है जब बाबा हजरत मुरादशाह के भाई बाबा मोहब्बत शाह अली अम्बिकापुर आए, तो उनके साथ उनका तोता भी आया. वो उन्हीं के साथ रहता था. ऐसा कहा जाता है की ये तोता दोनों भाइयों के बीच के संवाद का एक बहुत बड़ा जरिया था. जिसे कुरान की आयते भी याद थीं और वो रोजा भी किया करता था. बाबा का तोता उनका बेहद खास और प्रिय था. यही कारण है बाबा हजरत बाबा मुरादशाह और हजरत बाबा मोहब्बत शाह के साथ ही तोते की भी मजार यहां पर बनाई गयी है. यहां दूर-दराज से लोग आते है, चादर चढ़ाकर अपनी मन्नते मांगते है. 


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