Hasdeo Aranya: सरगुजा जिले से कोरबा और सूरजपुर जिले तक पहले हसदेव अरण्य के जंगलों में पिछले एक दशक से जंगल काट कर कोल उत्खन्न किया जा रहा है. इसी इलाके में दो नई खदान खोले जाने की अनुमति मिलने के बाद अब अरण्य क्षेत्र के दो गांव के लोग कोल खदान के विरोध में आ गए हैं. ये लोग अपने जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए पिछले 69 दिनों से धरने पर बैठे हैं. इस दौरान क्षेत्र के लोगों ने उग्र प्रदर्शन भी किया. कई गांववासियों के खिलाफ मामला भी दर्ज हुआ था.
इधर जिस राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड को ये खदान आबंटित की गई है उनके लिए उत्खनन का काम करने वाली कंपनी के लोगों के मुताबिक गांव के लोग सिर्फ विरोध नहीं कर रहे हैं बल्कि रोजगार और व्यापार को लेकर वो कोल ब्लॉक के समर्थन में भी हैं.
दिल्ली तक पहुंचा विरोध
उदयपुर इलाके में परसा कोल ब्लॉक के अलावा हरिहरपुर और फतेहपुर जैसे गावों की जमीन और जंगल के नीचे प्रचुर मात्रा में कोयला है. इस कोयला के उत्खन्न के लिए राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड को पर्यावरणीय अनुमति के साथ राज्य और केन्द्र सरकार से सभी प्रकार की अनुमति मिल गई है. जिसके बाद वन विभाग ने पेड़ काटने की प्रकिया भी शुरू की गई थी. लेकिन ग्रामीणो के विरोध और अधिकारियों को खदेड़ने के बाद से प्रकिया अभी रूकी हुई है.
इस दौरान हसदेव अरण्य के इस क्षेत्र के जंगल को बचाने के लिए गांव से जारी विरोध की आग धीरे-धीरे प्रदेश की राजधानी रायपुर से देश की राजधानी नई दिल्ली तक पहुंच गई है.
लगाए जा रहे ये नारे
पर्यावरण प्रेमी और कुछ एनजीओ के लोग इस क्षेत्र में उत्खन्न रोकने, पेड़ और नदियों को बचाने के लिए चरणबद्ध आंदोलन कर रहे हैं. दरअसल छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने सरगुजा के हर मंच से एक ही बात कह रहे थे. अगर उनकी सरकार आई तो वो यहां के जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए ग्रामीणों के साथ रहेंगे. शायद यही वजह है कि विरोध की आग दिल्ली के कांग्रेस कार्यालय तक पहुंच गई है और 'Save Hasdeo' के नारे को बुलंद किये जा रहे हैं.
बड़े आंदोलन की तैयारी
इधर जल, जंगल और जमीन बचाने वाली आदिवासी समाज की इस लडाई में सर्व आदिवासी समाज के लोग भी जुटने लगे हैं. इतना ही नहीं आगामी कुछ दिनों में बिलासपुर में अनिश्चितकालीन धरना और रायपुर में पैदल मार्च की तैयारी है. प्रभावित क्षेत्र में भी ग्रामीण 20 मई को बड़े आंदोलन की तैयारी में हैं. इससे अलग जिस बीजेपी शासन काल में इलाके में कोल उत्खनन शुरु हुआ था वो फिलहाल प्रदेश में विपक्षी दल के रूप में है. लिहाजा एक-एक करके बड़े नेता राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए ग्रामीणों के धरना स्थल पर पहुंच रहे हैं.
इधर जिस राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड की कोयला खदान में पहले जो कंपनी कोयला उत्खन्न कर रही है. उसके जारी प्रेस नोट में ये कहा गया है कि मात्र 30 फीसदी ग्रामीण खदान के विरोध में है, बल्कि 70 फीसदी ग्रामीण रोजगार और व्यवसाय की आस में कोल खदान खोले जाने के पक्ष में है.
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