Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने व्यापक स्तर पर तैयारी कर रही है. नए साल से ही सरकार नक्सलियों द्वारा अंजाम दी जा रही वारदातों पर अंकुश लगाने के लिए बड़े-बड़े एंटी नक्सल ऑपरेशन लांच कर रही है. इन ऑपरेशन में नक्सलियों को भारी नुकसान पहुंच रहा है. एक तरफ जहां पहले से बस्तर पुलिस ने नक्सलियों को बाहर से मिलने वाले हथियारों की सप्लाई चेन को कमजोर कर दिया है, दूसरी तरफ ऐसे इलाकों को निसानदेही कर पुलिस कैंप खोला जा रहा है, जहां कुछ साल पहले जवानों का पहुंचना नामुमकिन था.


नक्सलियो की हथियारों की सप्लाई चेन कमजोर पड़ने से नक्सली अपने आसपास और ग्रामीण इलाकों में मौजूद संसाधनों से होममेड ग्रेनेड लांचर और रॉकेट लांचर तैयार कर रहे हैं. पिछले कुछ सालों में बस्तर में हुए नक्सली हमले में नक्सलियों ने होममेड हथियार से कई बार जवानों और पुलिस कैंपों पर हमला किया है. नक्सलियों ने खासकर बीजापुर जिले के टेकलगुड़ेम में और पुलिस कैंप स्थापित करने वाले कई जगहों पर 500 से ज्यादा बीजीएल दागे हैं. हालांकि गनीमत रही कि इनमें से कई बीजीएल (बैरल ग्रेनेड लांचर ) फटे नहीं, जिस वजह से जवानों को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा. आइये जानते हैं आखिर नक्सली इन बैरल ग्रेनेड लांचर और रॉकेट लांचर को किस तरह तैयार करते हैं.


हमले के लिए नक्सली कर रहे बीजीएल का इस्तेमाल
छत्तीसगढ़ का बस्तर पिछले 4 दशकों से नक्सलवाद का दंश झेल रहा है. संभाग के 7 में से 5 जिले घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र हैं. इन जिलों में नक्सली कई बड़ी वारदातों को अंजाम दे चुके हैं. बस्तर पुलिस के अधिकारियों का दावा है कि पिछले कुछ सालों से अंदरूनी क्षेत्रों में नये पुलिस कैंप खुलने से नक्सली बैकफुट पर हैं. इस दौरान पुलिस ने नक्सलियों के बारूदी सप्लाई चेन को ध्वस्त करने में सफलता हासिल की है. यही वजह है कि पिछले कुछ सालों के मुकाबले अब नक्सलियों को उस पैमाने पर दूसरे जगहों से हथियार सप्लाई नहीं हो पा रही है, लेकिन नक्सली अब खुद हथियारों के लिए देसी जुगाड़ कर रहे हैं और बैरल ग्रेनेड लांचर के साथ रॉकेट लांचर तैयार कर रहे हैं.


बीजीएल को लेकर बस्तर आईजी ने किया खुलासा
इस में नक्सलियों के द्वारा अमोनियम नाइट्रेट और पीईटीएन जैसे विस्फोटकों का इस्तेमाल किया जा रहा हैं. बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने बताया कि नक्सलियों द्वारा तैयार की जाने वाली बीजीएल की क्षमता 150 से 300 मीटर तक रेंज है. नक्सलियों ने पहले की अपेक्षा 80 फीसदी बीजीएल की मारक क्षमता बढ़ा दी है. आईजी ने बताया कि नक्सली मुठभेड़ के साथ ही पुलिस कैंप में हमले के दौरान कई बार इन देसी होम मेड हथियारों से हमला किया गया है. जवानों ने नक्सलियों के कई जिंदा बीजीएल और रॉकेट लांचर भी बरामद किए हैं. बीजापुर जिले के टेकलगुड़ेम में भी पुलिस कैम्प स्थापित करने के दौरान नक्सलियो ने 500 से ज्यादा बीजीएल दागे थे, हालांकि इनमें से कई बीजीएल फटे नहीं, वरना जवानों को भारी नुकसान हो सकता था.


सिर्फ टेकलगुड़ेम में ही नहीं बल्कि नक्सली अब सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर में इसी देसी बीजीएल के साथ कैंप में और जवानों पर हमला कर रहे हैं. हालांकि इन बीजीएल के निर्माण में खामियों की वजह से नक्सलियों द्वारा अलग-अलग मुठभेड़ और पुलिस कैंप में दागे गए 1500 से ज्यादा बीजीएल में विस्फोट नहीं हुआ. अगर यह ब्लास्ट होते तो नतीजे बहुत गंभीर हो सकते थे. आईजी सुंदरराज पी ने बताया कि सुरक्षाबलों से लूटे गए आधुनिक हथियार को छोड़ दें, तो बाहर से मिलने वाले हथियारों और कारतूस की भी पूर्ति नक्सली संगठन को नहीं हो पा रही है. ऐसे में अब खुद नक्सली देसी ग्रेनेड लांचर बना रहे हैं और बस्तर में हुए अलग अलग घटनाओ में नक्सली सुरक्षाबलों पर लगातार इन देसी हथियारो का इस्तेमाल कर हमले कर रहे हैं.


नक्सली कैसे बनाते करते हैं बीजीएल?
हालिया दिनों में देखा जाए तो होम मेड बीजीएल और रॉकेट लांचर नक्सलियों के लिए घातक हथियार बन गए हैं. लो एक्सप्लोजिव गन पाउडर, फ्यूज, गैर-इलेक्ट्रॉनिक डेटोनेटर, स्प्लिंटर्स ,जंग लगे लोहे, अमोनियम नाइट्रेट और कार्डेक्स (पीटीएन) का नक्सली इस्तेमाल कर रहे हैं. नक्सलियो द्वारा बनाए जा रहे देसी जुगाड़ बीजीएल की 300 मीटर तक मारक क्षमता हो गई है और किलिंग जोन 15 मीटर और अफेक्टिंग जोन 30 मीटर तक है. इसका वजन 500 ग्राम से डेढ़ किलो तक होते हैं. वहीं पुलिस ने जांच में पाया कि नक्सली तीन आकार के बीजीएल बना रहे हैं. बीजीएल का वजन 500 ग्राम से डेढ़ किलो तक होता है. इसके अलावा टाइमर आधारित बीजीएल भी नक्सली बना रहे हैं और एक बीजीएल को बम की तरह इस्तेमाल कर रहे है.


इसके अलावा नक्सलियों ने लोहे के पाइप से देसी जुगाड़ कर रॉकेट लांचर भी तैयार किया है. जिसका नक्सलियों पहले बेहतर डिजाइन किया है और इसकी मारक रेंज 300 मीटर तक विकसित कर ली है. इसमें भी दो तरह के रॉकेट लांचर मिले हैं, एक रॉकेट लांचर नक्सली सुरक्षा बलों के कैंप या भंडार में आग लगाने के लिए इस्तेमाल करते हैं और दूसरा ब्लास्ट के लिए जिसमें विस्फोटक और घातक धातु के टुकड़े कहीं ज्यादा मात्रा में होते हैं. कुल मिलाकर नक्सली जवानों को नुकसान पहुंचाने के लिए अपने हाथों से तैयार किए जाने वाले हथियारों की मारक क्षमता को बढ़ाने में लगे हुए हैं. आईजी ने कहा कि नक्सलियों की फायरिंग के साथ इन होममेड हथियारों से भी निपटने के लिए जवान नई रणनीति के तहत नक्सलियों का सामना कर रहे हैं. जवानों के एक्शन से नक्सली अपने मंसूबों में नाकाम रहे हैं.


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