Ambikapur News: छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की नजदीकियों ने राजनीतिक दल के नेताओं की धड़कनें को बढ़ा दिया है. प्रदेश के दोनों प्रमुख दल के साथ ही कुछ अन्य राजनीतिक दल वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए नए नए तरीके अपना रहे हैं. सरगुजा संभाग में आदिवासी समाज के अच्छे खासे वोटर है. जिनके साधने के लिए कांग्रेस और भाजपा ने अपनी-अपनी चाल चलना शुरू कर दी है. 


सरगुजा संभाग आदिवासी बाहुल्य जिला है. यहां के 6 जिलों में 14 विधानसभा सीट है. इन 14 सीटों में 9 सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं, और महज 5 सीट सामान्य वर्ग के लिए है. इन सभी 14 सीट में पिछले चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की थी. जिनमें से तीन विधायक को भूपेश कैबिनेट में जगह मिली थी. जिसमें दो आरक्षित वर्ग की सीट से विधायक बने थे, और एक सामान्य सीट से कैबिनेट मंत्री बने थे. जिनमें फिलहाल आरक्षित वर्ग से अमरजीत भगत ही कैबिनेट मंत्री हैं. जबकि कुछ दिन पहले डॉ प्रेमसाय सिंह को पार्टी हाईकमान के आदेश पर इस्तीफा देना पड़ा था. दरअसल, सरगुजा संभाग की 14 सीट छत्तीसगढ़ के सीएम की कुर्सी तय करती है. जिससे यहां से बढ़त मिली. उसकी सरकार बनना तय माना जाता है. तो ऐसे सभी राजनीतिक दल इन दिनों संभाग में आदिवासी समाज के वोटरों को अपनी तरफ करने की कवायद में जुट गए हैं. 


एक दिन पहले विश्व आदिवासी दिवस के दिन सूबे के सत्तारूढ़ दल कांग्रेस ने संभाग की आरक्षित सीतापुर विधानसभा में आदिवासी सम्मेलन का आयोजन किया. इस सम्मेलन की संभाग में कितनी जरूरत थी, ये तो कहना जल्दबाजी होगी पर सम्मेलन में छत्तीसगढ़ प्रभारी कुमारी सैलजा और सीएम भूपेश बघेल की उपस्थिति ने तय कर दिया कि कांग्रेस के आला नेता अपनी परंपरागत सीतापुर विधानसभा सीट के साथ संभाग की सभी 9 आदिवासी बाहुल सीट पर फिर से जीत देखना चाहते हैं. जिसका चुनावी शंखनाद आदिवासी सम्मेलन के साथ कांग्रेस ने कर दिया है.


कांग्रेस के आदिवासी कार्ड के बदले भाजपा के आदिवासी वोटरों को रिझाने के लिए धर्मांतरण और डिलिस्टिंग जैसे मुद्दे जरूर थे, पर चुनाव के नजदीक आते ही भाजपा उन मुद्दों से भी दूरी बनाती नजर आ रही है. क्योंकि शायद भाजपाइयों को डर इस बात है कि अगर चुनाव के समय इन मुद्दों पर चर्चा हुई तो प्रभावित वर्ग के जो वोटर उनके पक्ष में हैं. वो उनसे खिसक ना जाए. इधर सरगुजा के पूर्व सांसद कमलभान सिंह सरगुजा संभाग में कांग्रेस के आदिवासी कार्ड पर कहते हैं कि आदिवासी सम्मेलन से मुझे लगता है कि भूपेश सरकार के खाने और दिखाने के दांत अलग-अलग हैं. उन्होंने आज तक किसी भी रूप में ना आदिवासियों का सम्मान किया है और ना ही हित किया है. 


कमलभान सिंह ने आरोप लगाया है कि भूपेश सरकार ने आदिवासियों के 32 प्रतिशत आरक्षण के मुद्दे भी साथ नहीं दिया था. आज तक इन्होंने आदिवासी का समर्थन नहीं किया है. अब चुनाव है तो दांव लगा रहे है. उन्होंने अंत में कहा कि भूपेश सरकार आदिवासियों के साथ धोखा और छलावा के अलावा कुछ नहीं किया है.


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