छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के लिए मात्र 15 महीने शेष रह गए हैं, ऐसे में सभी राजनीतिक दलों के नेता अपने-अपने इलाकों में चुनावी बैठकें कर रहे हैं, साथ ही जनता के बीच उनकी समस्याओं को जानने में जुटे हैं. वहीं छत्तीसगढ़ के बस्तर के कोंटा विधानसभा क्षेत्र में CPI नेता मनीष कुंजाम एक बार फिर सक्रिय होते दिखाई दे रहे हैं. कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले कोंटा विधानसभा में हाल ही में सिलेगर कांड के आंदोलनकारियों के साथ पदयात्रा कर मनीष कुंजाम ने अपना शक्ति प्रदर्शन किया, और उनके इस रैली में करीब 8 से 10 हजार ग्रामीण शामिल हुए.
हालांकि इस कोंटा विधानसभा के विधायक और प्रदेश के आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने इस रैली से चुनाव में कोई फर्क नहीं पड़ने की बात कही है.
पदयात्रा के जरिये किया शक्तिप्रदर्शन
बीजापुर जिले के सिलगे में नए पुलिस कैंप के विरोध में ग्रामीणों पर 17 मई 2021 में हुए पुलिस की तरफ से फायरिंग में 5 ग्रामीणों की मौत हो गई थी और एक गर्भवती महिला की भगदड़ में जान चली गई थी. इस घटना के बाद से लगातार न्याय की मांग को लेकर सिलगेर के साथ-साथ आसपास के सैकड़ों ग्रामीण लगातार आंदोलन कर रहे हैं.
इस आंदोलन के समर्थन में सीपीआई नेता मनीष कुंजाम ने भी बीते 20 सितंबर से 26 सितंबर तक सिलगेर से सुकमा तक करीब 100 किलोमीटर की पदयात्रा की और इस पदयात्रा में आंदोलनकारियों के साथ आसपास के ग्रामीणों का जनसैलाब भी उमड़ पड़ा और इस रैली में हजारों की भीड़ भी देखने को मिली.
इस पदयात्रा का नेतृत्व सीपीआई नेता मनीष कुंजाम ने किया और 26 सितंबर को यह रैली सुकमा में खत्म हुई. इस दौरान भी करीब 8 से 10 हजार ग्रामीणों की भीड़ सभा में जुटी. सीपीआई नेता मनीष कुंजाम ने इस घटना को लेकर राज्य सरकार के खिलाफ हुंकार भरी और शक्ति प्रदर्शन भी किया.
हालांकि इस क्षेत्र से विधायक और प्रदेश के आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने कहा कि मनीष कुंजाम के इस पदयात्रा से आने वाले विधानसभा चुनाव में कोई फर्क नहीं पड़ेगा. कोंटा विधानसभा कांग्रेस का गढ़ है. ऐसे में इस पदयात्रा से कुछ खास फर्क नहीं पड़ने वाला है, यहां की जनता कांग्रेस के ही साथ है.
वहीं मनीष कुंजाम ने कहा कि कवासी लखमा भी एक आदिवासी हैं और सिलगेर में जिस तरह से निहत्थे ग्रामीणों पर पुलिस द्वारा हमला किया गया है और पांच ग्रामीणों की मौत हो गई. बावजूद इसके ग्रामीणों को न्याय दिलाने के लिए मंत्री कवासी लखमा ने अब तक कोई पहल नहीं की है. घटना के डेढ़ साल बीतने के बाद भी कवासी लखमा सिलगेर के आंदोलनकारियों को सिर्फ आश्वासन दे रहे हैं.
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