Chhattisgarh: आंदोलन की अनुमति पर सियासत तेज, बीजेपी का आरोप अंग्रेज़ों का रॉलेट एक्ट लागू, कांग्रेस ने किया पलटवार
राज्य सरकार ने धरना जुलूस के लिए प्रदर्शनकारियों को गृह विभाग की अनुमति लेकर आयोजन करने का नया आदेश जारी कर दिया है. इसपर सियासत गरमा गई है.
Raipur News: छत्तीसगढ़ में एक नया विवाद खड़ा हो गया है. राज्य सरकार ने धरना जुलूस के लिए प्रदर्शनकारियों को गृह विभाग की अनुमति लेकर आयोजन करने का नया आदेश जारी कर दिया है. इसपर सियासत गरमा गई है बीजेपी ने कांग्रेस सरकार पर हमला बोला है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने कांग्रेस सरकार पर अंग्रेजों के कानून को लागू करने का आरोप लगाया है.
बीजेपी ने कहा अंग्रेजों की तरह लोगों की आवाज दबाई जा रही
दरअसल बीजेपी का आरोप है कि गृह विभाग के आदेश से लोगों की आवाज दबाई जाएगी. इस आदेश को 100 साल पुराने रॉलेट एक्ट की तरह ही नया आदेश जारी किया गया है.बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय ने कहा कि जैसे अंग्रेजो ने भारत के लोगो की आवाज को दबाने रौलट एक्ट लागू किया तब लोगो को इकठ्ठा होने की रोक थी, कोई भी प्रदर्शन करना अपराध था वही हालात कांग्रेस सरकार ने निर्मित कर दिए है.
कांग्रेस ने बीजेपी के आरोपों पर किया पलटवार
बीजेपी के आरोपों पर कांग्रेस ने पलटवार किया है. कांग्रेस नेता आर पी सिंह ने कहा कि धरना प्रदर्शन जुलूस रैली के आयोजन में किसी भी प्रकार से प्रतिबन्ध नही लगाया गया है बल्कि जिला प्रशासन से अनुमति लेने की पूर्व व्यवस्था को सख्ती से पालन करवा रही है. उत्तर प्रदेश में भी ऐसा ही आदेश जारी किया गया है. तो बीजेपी वहां स्वागत कर रही है और यहां विरोध कर रही है. बीजेपी का दोगलापन है इसके लिए जानी जाती वो सिद्ध हो गया. विष्णुदेव साय योगी सरकार के आदेश का विरोध करके दिखाएं. आरपी सिंह ने आगे बताया कि रमन सिंह सरकार में तो हिंदू धर्म में बारात निकालने पर भी अनुमति लेनी पड़ती थी.बीजेपी का यही दोमुंही चाल है.
क्या है गृह विभाग का आदेश
गौरतलब है की दो दिन पहले ही छत्तीसगढ़ गृह विभाग की तरफ से एक आदेश जारी किया गया है. इसमें कहा गया है कि अब सार्वजनिक कार्यक्रमों धरना प्रदर्शन और आंदोलन के लिए अनुमति लेना अनिवार्य है. अनुमति लेने के लिए आवेदन का फॉर्मेट भी जारी किया गया है. प्रदेश के सभी कलेक्टर और एसपी को इस संबंध में पत्र भेज दिया गया है. आदेश में बताया गया है कि संस्थाओं और संगठनों के द्वारा बिना अनुमति के धरना आंदोलन आयोजित किये जा रहे हैं या फिर अनुमति प्राप्त करने के बाद आयोजन का स्वरूप में परिवर्तन कर देते हैं. इससे आम नागरिकों के दैनिक कार्यों में बाधा पहुंच रही है.इसके साथ कानून-व्यवस्था बिगड़ जाने की प्रबल संभावना बनी रहती है.
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