Chhattisgarh: आरक्षण पर सियासत फिर तेज, नए राज्यपाल से मिले कांग्रेस नेता कवासी लखमा, बोले- फिर हाथ लगी निराशा
कांग्रेस नेता कवासी लखमा ने नए राज्यपाल विश्व भूषण हरिचंदन से मिलने के बाद कहा कि जैसी उम्मीद थी वैसा कुछ नहीं हुआ. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने कांग्रेस के राजभवन जाने को नौटंकी बताया है.
Chhattisgarh Reservation News: छत्तीसगढ़ में पिछले साल से आरक्षण विधेयक राजभवन में अटका पड़ा है. अब छत्तीसगढ़ को नए राज्यपाल भी मिल गए हैं, तो एक बार आरक्षण के लिए कवायद तेज हो गई है. कांग्रेस दिग्गज आदिवासी नेता और आबकारी मंत्री कवासी लखमा (Kawasi Lakhma) के साथ एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के विधायक के साथ सोमवार को राज्यपाल विश्व भूषण हरिचंदन (Biswabhusan Harichandan) से मिलने गए थे. इस मुलाकात के बाद भी कांग्रेस को निराशा हाथ लगी है. इसलिए कांग्रेस ने नए राज्यपाल पर भी राजनीतिक दबाव का आरोप लगाया है.
दरअसल, सोमवार को दिसंबर 2022 से राजभवन में लटके आरक्षण विधेयक पर मंजूरी की गुहार लेकर कांग्रेस के मंत्री विधायक राजभवन पहुंचे थे. मुलाकात के बाद मंत्री कवासी लखमा ने मीडिया से बातचीत की. इसमें उन्होंने सिलसिलेवार से राज्यपाल के साथ हुई बातचीत की जानकारी दी है. उन्होंने सबसे पहले कहा कि जैसी उम्मीद थी वैसा कुछ नहीं हुआ. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने कांग्रेस के राजभवन जाने को नौटंकी बताया है. इसके बाद एक बार फिर से आरक्षण विवाद पर सियासत शुरू हो गई है.
नहीं मिला ठोस आश्वासन- लखमा
राजभवन से बाहर निकलते ही कवासी लखमा ने मीडिया को बताया कि 'राज्यपाल से मुलाकात तो हुई मगर जैसी उम्मीद थी वैसा आश्वासन नहीं मिला है. उनकी बातचीत से लगा कि वो राजनीतिक के दबाव में हैं. राज्यपाल यही कहते रहे कि देखते हैं, कर रहे हैं, समीक्षा कर रहे हैं. मगर कुछ ठोस बात नहीं हुई. हम गए तो हमें बैठाया हम सभी की बातें तो सुनी मगर आश्वासन नहीं मिला. इसके बाद आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने अपने अंदाज में कहा कि वो ज्यादा इंग्लिश बोलते हैं. मैं तो ज्यादा बात नहीं किया. शिशुपाल सोरी , कलेक्टर कर रहे थे. अंग्रेजी में बात किए तो हमारे पहलवान (UD मिंज) विनय जायसवाल ने ज्यादा बात की. मुझे उनकी बातों में राजनीति के गुण दिखें और दबाव में भी दिखे.'
आरक्षण मामले में 22 तारीख को होगी सुनवाई
इसके आगे कवासी लखमा ने कहा कि राज्यपाल का संवैधानिक पद है. हम सब बोले आदिवासी, पिछड़ा, अनुसूचित जनजाति वर्ग के हमारे संरक्षक हो, भर्तियां रुकी हुई हैं, इसलिए आपका सहयोग चाहिए. वहीं कवासी लखमा ने आगे की रणनीति को लेकर कहा कि 22 तारीख को सुप्रीम कोर्ट में पेशी है. आरक्षण के मामले में कोर्ट की लड़ाई भी जारी रहेगी. हम प्रदेश के आदिवासी, पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जनजाति वर्ग के अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं. हम चाहते हैं कि इस वर्ग को आरक्षण मिले. सड़क, विधानसभा और गांव की लड़ाई लड़ेंगे और अधिकार दिला कर रहेंगे.
बीजेपी ने कांग्रेस के राजभवन जाने को नौटंकी बताया
बीजेपी ने कांग्रेस के राजभवन जाने को नौटंकी बताया है. बीजेपी प्रवक्ता देवलाल ठाकुर ने कांग्रेस सरकार को लापरवाह बताया और कहा है कि सरकार के पास उच्च न्यायालय में फैसले से पहले 22 बार पेशिया हुई सरकार के पास पर्याप्त अवसर था. सरकार अपना पक्ष रख आदिवासियों का आरक्षण बचा सकती थी पर नही बचा सकी. वर्तमान में 76% आरक्षण विधेयक पारित किया गया है जिसमें किसी भी चरण में सरकार ने कार्यपालिका नियम का पालन नहीं किया, विधि विभाग का अभिमत नहीं लिया, क्वांटिफिएबल डाटा प्रस्तुत नहीं किया गया जिसके कारण आज तक आरक्षण का बिल लटका पड़ा है.
पिछले साल से जारी है आरक्षण पर बवाल
गौरतलब है 19 सितंबर को बिलासपुर हाई कोर्ट ने राज्य में 58 प्रतिशत आरक्षण को निरस्त कर दिया था. इसके बाद आदिवासी समाज ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. रोजाना सड़कों पर प्रदर्शन होने लगे तब सरकार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर 2 दिसंबर को राज्य में एसटी ओबीसी और जनरल का आरक्षण बढ़ाने का विधेयक पारित किया. इसके बाद राज्य में आरक्षण का प्रतिशत 76 प्रतिशत हो गया, लेकिन तत्कालीन राज्यपाल अनुसुइया उईके ने इस विधेयक को मंजूरी नहीं दी. इसके बाद सरकार और राजभवन के बीच टकराव जारी हो गया. अब नए राज्यपाल विश्व भूषण हरिचंदन पर भी कांग्रेस राजनीतिक दबाव का आरोप लगा रही है.