Chhattisgarh News Today: छत्तीसगढ़ का आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र कहे जाने वाले बस्तर में स्कूली शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च करने के लाख दावे करे, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करते हैं. 


इन क्षेत्रों में आलम यह है कि छोटे-छोटे बच्चे ईमली के पेड़ के नीचे या झोपड़ी में अपना भविष्य गढ़ने को मजबूर है.  मानसून के मौसम में बच्चे स्कूली शिक्षा से पूरी तरह से वंचित हो जाते हैं. वजह ये है इन क्षेत्रों में स्कूल भवनों का नहीं बन पाना. 


कागजों में हो रहा स्कूल भवन का निर्माण
सुकमा जिले में ही एक दर्जन से ज्यादा ऐसे इलाके हैं, जहां के बच्चे झोपड़ी और पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं. शासन द्वारा इन जगहों पर स्कूल भवन बनाने के लिए लाखों रुपये स्वीकृत करने के बावजूद, स्कूल भवन का निर्माण कार्य केवल कागजों पर चल रहा है. 


पिछले कई सालों से इन इलाकों में यही हाल है. हालांकि जिम्मेदार अधिकारी ठेकेदारों को नोटिस जारी कर जल्द काम पूरा करने की समझाइश देने की बात तो करते हैं, लेकिन बच्चों की परीक्षाएं खत्म होने के बाद एक बार फिर से इस निर्माण कार्य को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है.


पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ने को मजबूर
सबसे बुरा हाल छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों का है, जहां केवल कागजों में ही पिछले कई सालों से स्कूल भवनों का निर्माण कार्य चल रहा है. हर साल स्कूल भवन का काम पूर्ण करने के दावे तो किए जाते हैं, लेकिन आज भी ऐसे दर्जनों स्कूल हैं जो अधूरे पड़े हुए हैं और जिनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. 


इस क्षेत्र के बच्चे मजबूरन झोपड़ी में या फिर पेड़ के नीचे छांव में अपना भविष्य गढ़ने को मजबूर हैं. इन बच्चों के पैरेंट्स और स्थानीय ग्रामीणों के द्वारा कई बार जिला प्रशासन को इस समस्या से अवगत कराने के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है. जिम्मेदार अधिकारी इस मुद्दे पर ध्यान नहीं देते हैं. 


स्कूल भवन को लेकर पैरेंट्स ने क्या कहा?
पैरेंट्स का कहना है कि सबसे ज्यादा परेशानी मानसून के मौसम में होती है. बारिश के समय बच्चे झोपड़ी में लगने वाले स्कूल में नहीं जा पाते हैं और ना ही पेड़ के नीचे पढ़ पाते हैं, ऐसे में बारिश के मौसम तक उनकी शिक्षा प्रभावित हो जाती है. 


शिक्षकों के जरिये कई बार इस परेशानी से अपने उच्च अधिकारियों का अवगत कराने के बावजूद भी समस्या का समाधान नहीं होता. यही वजह है कि बस्तर में स्कूली शिक्षा छत्तीसगढ़ के बाकी जिलों के मुकाबले काफी पीछे हैं. 


स्कूल भवन को लेकर पैरेंट्स का कहना है कि नया शिक्षा सत्र शुरू हो गया है, लेकिन पुरानी समस्याएं बच्चों का पीछा नहीं छोड़ रही हैं. कई सालों से स्कूल भवनो का निर्माण कार्य चल रहा है, समय पूरा होने के बाद भी भवन पूरी तरह से अधूरे पड़े हैं. 


सरकार जिम्मेदारों पर नाराजगी व्यक्त करते हुए पैरेंट्स का कहना है कि यह परिस्थितियों पिछले 4 से 5 साल से बनी हुई है. इसके बावजूद शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारी बच्चों को होने वाली परेशानी के प्रति गंभीर नजर नहीं आते हैं.


कोंटा में अधूरा पड़ा है स्कूल भवन निर्माण
सुकमा जिले के कोंटा ब्लॉक के भेज्जी इलाके में ही 3 ऐसे स्कूल हैं, जिनका संचालन झोपड़ी में और पेड़ के नीचे किया जा रहा है. यह समस्या पिछले 3 सालों से बनी हुई है. गांव के बच्चों को सर्व सुविधायुक्त माहौल मिल सके इसके लिए सरकार ने प्राइमरी स्कूल भवन बनाने के लिए लाखों रुपए की स्वीकृति दी थी. 


आज से 3 साल पहले स्कूल भवन का निर्माण कार्य शुरू किया गया, लेकिन स्कूल भवन का काम पूरा नहीं हुआ. ढलाई के बाद काम बंद कर दिया गया है और बीते 3 साल से इन स्कूल भवनों को कागजों में निर्माणाधीन बताया जा रहा है. खास बात यह है कि यहां नक्सलियों का भी किसी तरह से भय नहीं है. 


ठेकेदार नहीं ले रहे रूचि
आसपास सीआरपीएफ कैंप और पुलिस थाना होने की वजह से स्कूल निर्माण करने वाले ठेकेदारों को किसी तरह की कोई समस्या नहीं है. बावजूद इसके कई अधूरे पड़े स्कूल भवनों को पूरा करने में ठेकेदार रुचि नहीं ले रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि नहीं इन भवनों की स्वीकृत राशि भी जारी कर दी गई है.


एक तरफ जहां छत्तीसगढ़ सरकार डिजीटल और हाईटेक शिक्षा पर जोर दे रही है, लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के नक्सल प्रभावित जिलों में स्कूल शिक्षा की हालत काफी दयनीय है. आज भी प्राइमरी स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने में सरकार नाकाम साबित हो रही है. 


'नोटिस पर भी ठेकेदार नहीं कर रहे काम'
एक तरफ शहरी इलाकों में बच्चे ऑनलाइन शिक्षा का लाभ उठा रहे हैं, दूसरी तरफ बस्तर में आदिवासी बच्चों के बैठने की व्यवस्था तक नहीं हो पा रही है. हालांकि इस मामले में कोंटा ब्लॉक के ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर पी श्रीनिवास राव का कहना है कि उनके क्षेत्र में 19 स्कूल भवनों का निर्माण कार्य प्रगति पर है. 


ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर ने बताया कि नया शिक्षा सत्र शुरू होने से पहले ही ठेकेदारों को काम पूरा करने के लिए नोटिस जारी किया गया था, फिर भी काम पूरा नहीं हुआ है. अब विभाग के जरिये दोबारा ठेकेदारों को नोटिस दिया जाएगा. इसके बावजूद काम पूरा नहीं होने पर ऐसे ठेकेदारों को ब्लैक लिस्ट किया जाएगा. 


गौरतलब है कि यह हाल केवल सुकमा जिले का ही नहीं है, बल्कि दंतेवाड़ा, नारायणपुर, बीजापुर में भी ऐसे कई इलाके हैं जहां झोपड़ी में और पेड़ के नीचे बच्चे बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं. ऐसी हालात में शिक्षा ग्रहण कर रहे इन आदिवासी बच्चों की सुध लेने वाला कोई नहीं है.


ये भी पढ़ें: Bastar News: मलेरिया की चपेट में आ रहे नक्सल मोर्चे पर तैनात जवान, बस्तर में मानसून में बढ़ रहा प्रकोप