Independence Day 2022 Special: क्रांतिकारी गुंडाधुर का ऐसा था खौफ, गुफा में छिप गए थे अंग्रेज, जानिए- बस्तर के वीर की कहानी
Bastar News: बस्तर के जननायक शहीद गुंडाधुर ने आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भूमकाल आंदोलन की शुरुआत की थी.
Azadi Ka Amrit Mahotsav: देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर पूरे देश में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. अंग्रेजों के गुलामी से देश को आजादी दिलाने के लिए न जाने कितने वीर सपूतों ने अपनी जान की कुर्बानी दे दी. इन वीर सपूतों में से एक छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी जननायक वीर शहीद गुंडाधुर हैं. इन्होंने आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भूमकाल आंदोलन की शुरुआत की थी. उन्होंने अपने दहशत से अंग्रेजों को कई दिनों तक जंगलों और गुफाओं में छुपने के लिए मजबूर कर दिया था. हजारों आदिवासियों के प्रेरणास्त्रोत गुंडाधुर ने बस्तर को अंग्रेजों के हुकूमत से आजादी दिलाने के लिए अपना बलिदान दे दिया. इसलिए आज भी उन्हें बस्तर में देवता की तरह पूजा जाता है. हर साल 10 फरवरी को भूमकाल दिवस के मौके पर उन्हें याद किया जाता है और श्रद्धांजलि दी जाती है.
गुंडाधुर से छिपने के लिए अंग्रेजो ने गुफाओं का सहारा लिया
बस्तर के साहित्यकार और चित्रकार सुभाष पांडे बताते हैं कि एक छोटे से गांव में पले बढ़े गुंडाधुर ने अंग्रेजों को इस कदर परेशान किया था कि कुछ समय के लिए अंग्रेजों को गुफाओं में छिपना पड़ा था. अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाला यह क्रांतिकारी आज भी बस्तर के लोगों में जिंदा है. उन्होंने बताया कि बस्तर जिले के नेतानार गांव में पले बढ़े गुंडाधुर ने आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन के रक्षा के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 10 फरवरी सन 1910 में भूमकाल आंदोलन की शुरुआत की थी. लगातार बस्तर वासियों का शोषण होता देख अंग्रेजो के खिलाफ आवाज उठाने का बीड़ा शहीद गुंडाधुर ने उठाया. भूमकाल आंदोलन में लाल मिर्च क्रांतिकारियों की संदेशवाहक कहलाती थी.
35 साल की उम्र में अंग्रेजो के खिलाफ छेड़ी थी जंग
सुकमा के जमींदार और इस मामले के जानकार कुमार जयदेव ने बताया कि बस्तर में अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाने के लिए गुंडाधुर ने गांव-गांव तक लाल मिर्च, मिट्टी का धनुष बाण और आम की टहनियां लोगों के घर तक पहुंचाई. यह काम इस मकसद से शुरू किया कि लोग बस्तर के अस्मिता को बचाने के लिए अंग्रेजो के खिलाफ आगे आए. अंग्रेजों के खिलाफ उठाई गई इस आवाज में न जाने कितने आदिवासियों ने अपनी जान की कुर्बानी दे दी. बस्तर में शहीद गुंडाधुर को विद्रोहियों का सर्वमान्य नेता माना जाता है. वे सामान्य आदिवासी थे, जिन्होंने बचपन से ही आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन की रक्षा और उनकी जान की रक्षा करने की ठान ली थी.
भूमकाल आंदोलन ने पूरी ब्रिटिश सत्ता को हिला कर रख दिया
यही वजह रही कि 35 साल की उम्र में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ ऐसी लड़ाई छेड़ी कि कुछ समय तक अंग्रेजों को जंगलों में गुफाओं का सहारा लेना पड़ा था. बताया जाता है कि उस जमाने के कई अंग्रेज अफसरों ने अपनी डायरी में भूमकाल आंदोलन को लेकर कई बातें भी लिखी है. जो आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है. बस्तर की संपदा लूट रहे अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हुए भूमकाल आंदोलन ने पूरी ब्रिटिश सत्ता को हिला कर रख दिया. बताया जाता है कि इस आंदोलन के कई वीर सपूतों को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया. जिसका गवाह आज भी जगदलपुर शहर के गोल बाजार चौक पर स्थित इमली का पेड़ है. जहां इस आंदोलन से जुड़े लोगों को मौत की सजा दे दी गई थी.
राज्य सरकार ने दिया है शहीद का दर्जा
अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले वीर शहीद गुंडाधुर को राज्य सरकार ने शहीद की उपाधि दी है. राज्य सरकार खेल प्रतिभाओं को उनके नाम पर पुरस्कृत करती है. साथ ही कई सरकारी भवनों के नाम भी शहीद गुंडाधुर के नाम पर रखा गया है. यही नहीं बस्तर संभाग के नेतानार गांव में संभाग की सबसे बड़ी प्रतिमा स्थापित की गई है. इसके अलावा संभाग के हर जिलों में उनकी प्रतिमा स्थापित कर भूमकाल दिवस पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. इसके अलावा तीरंदाजी प्रतियोगिता में खिलाड़ियों को शहीद गुंडाधुर अवार्ड से सम्मानित किया जाता है.