Chhattisgarh Bird News: इंसानों की बोली की हूबहू नकल करने वाली छत्तीसगढ़ में राजकीय पक्षी का दर्जा प्राप्त पहाड़ी मैना के वंशवृद्धि, संरक्षण और संवर्धन के लिए पहली बार नई तकनीकी अपनाई जा रही है. इसके तहत पक्षी के पैर पर टैगिंग लगाये जा रहे हैं जो GPS सिस्टम से लैस होगा. इस जीपीएस सिस्टम से पहाड़ी मैना को ट्रैक किया जाएगा और मैना के पीछे एक टीम रहेगी जो उसे जीपीएस से ट्रैक करेगी और दूर से उसकी एक्टिविटी को नोट करेगी.


दरअसल केवल छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के कांगेर वैली नेशनल पार्क के जंगलों में पाई जाने वाली इस राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना की प्रजाति तेजी से विलुप्त हो रही है. ऐसे में वाइल्ड लाइफ और वन विभाग ने इसके लिए चिंता जताते हुए राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना के वंशवृद्धि के लिए नए सिरे से प्रयास शुरू किया है. वन विभाग के अफसरों का दावा है कि इस प्रयास से पहाड़ी मैना के प्रजाति को बचाने और इनके वंशवृद्धि में वन विभाग को जरूर सफलता मिलेगी.


केवल बस्तर के जगंलों में पाई जाती है 


बस्तर वाइल्ड लाइफ के सीसीएफ एके श्रीवास्तव ने बताया कि पहाड़ी मैना की प्रजाति केवल बस्तर के जंगलों में ही पाई जाती है. पिछले चार दशकों से पहाड़ी मैना को बचाने के लिए विभाग द्वारा प्रयास किया जा रहा है. साल 1986 में कांगेर घाटी नेशनल पार्क मैना के लिए सुरक्षित क्षेत्र घोषित हुआ था. छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद मैना की संख्या बढ़ाने के लिए विभाग ने कई प्रयास भी किए.




वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 में पहाड़ी मैना को तेजी से विलुप्त होती प्रजाति की कैटेगरी में रखा गया था. जिसके बाद सन 1990 में मैना को शहर के वन विभाग के पार्क में बनाये गए प्रजनन केंद्र में लाकर रखा गया. हालांकि मैना की मौत तक यह पता नहीं चल पाया कि वह मादा है या पुरुष. इस दौरान प्रजनन के लिए विभाग के द्वारा लाखों रुपए खर्च भी किए गए लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ. 


पक्षी पर पहली बार किया जा रहा ये प्रयास


हालांकि वाईल्ड लाइफ के CCF का कहना है कि छत्तीसगढ़ में पहली बार पक्षी पर टैगिंग लगाने और जीपीएस सिस्टम का प्रयास किया जा  रहा है. इससे वन विभाग को जरूर सफलता मिलेगी, ऐसी उम्मीद भी जताई जा रही है. इसके लिए पहले कांगेर वैली नेशनल पार्क के डायरेक्टर गणवीर धम्मशील गुजरात से इसके लिए ट्रेनिंग भी लेकर आए हैं.


नवंबर के पहले सप्ताह से ही इस पर काम शुरू कर दिया जाएगा और जीपीएस सिस्टम के जरिए पहाड़ी मैना के हर गतिविधियों पर नजर रखी जाएगी. जिसके बाद मैना को जब प्रजनन केंद्र में लाया जाएगा तो इसी रिसर्च की मदद से वंशवृद्धि की प्रक्रिया शुरू की जाएगी.




रिसर्च के लिए कोई टाइम फिक्स नहीं किया गया है यह काम 6 महीने से 1 साल तक भी बढ़ सकता है. फिलहाल विभाग के अधिकारियों ने दावा किया है कि तेजी से विलुप्त होती राजकीय पक्षी के प्रजाति को बचाने टैगिंग सिस्टम का प्रयास कारगर साबित होगा.


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