The Tiger Boy Story: आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में आदिवासियों की वीर गाथा आज भी सुनाई जाती है. अबूझमाड़ के घनघोर जंगल में आदिवासियों के विभिन्न जनजाति के लोग आज भी मौजूद हैं जो अपनी बहादुरी के किस्से के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध हैं. उनमें से ही एक थे छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के 'द टाइगर बॉय चेंदरू'. चेंदरू की मौत साल 2013 में 78 साल की उम्र में हो गई, लेकिन बाघ और चेंदरू की दोस्ती की कहानी आज भी मशहूर है.
चेंदरू पर हॉलीवुड मूवी भी बनाई गई है. करीब 10 साल की उम्र में रहे चेंदरू और शेर टाइगर की दोस्ती की कहानी पर बनी मूवी का नाम 'द जंगल सागा' है जो आगे जाकर ऑस्कर विनिंग फिल्म बनी. इसमें बस्तर (Bastar) का चेंदरू हीरो था. लगभग 75 मिनट की मूवी 'द जंगल सागा' जब पूरे यूरोपीय देशों के सेल्यूलाइट पर्दे पर चली तो लोग चेंदरू के दीवाने हो गए और चेंदरू रातों-रात हॉलीवुड स्टार हो गया.
बचपन से थी चेंदरू और टाइगर की दोस्ती
बस्तर के जानकार हेमंत कश्यप ने बताया कि छत्तीसगढ़ में मोगली के नाम से चर्चित द टाइगर बॉय चेंदरू पूरी दुनिया के लिए किसी अजूबे से कम नहीं था. आदिवासी युवक चेंदरू मंडावी बचपन में हमेशा बाघ के साथ ही खेला करता था और उसी के साथ ही अपना अधिकतर समय बिताता था. चेंदरू पूरी दुनिया में 60 के दशक में बेहद ही मशहूर था. इनके जीवन का सबसे अच्छा पहलू उसकी टाइगर से दोस्ती थी. हमेशा दोनों एक साथ ही रहते थे. दोनों साथ ही खाना खाते थे और साथ ही खेलते थे. हेमंत कश्यप बताते हैं कि 60 साल पहले चेंदरू ने अपनी ओर पूरी दुनिया का ध्यान खींचा था.
फ्रांस, स्वीडन, ब्रिटेन और दुनिया के कोने कोने से लोग सिर्फ उसकी एक झलक देखने को और उसके एक तस्वीर अपने कैमरे में कैद करने के लिए बस्तर पहुंचते थे. बस्तर का चेंदरू पूरी दुनिया में टाइगर बॉय और मोगली के नाम से प्रसिद्ध हो गया. अबूझमाड़ के रहने वाले ग्रामीण बताते हैं कि चेंदरू मंडावी नारायणपुर जिले के गढ़बेंगाल गांव का रहने वाला एक आदिवासी परिवार से था. उनके पिता और दादा एक शिकारी थे. वे एक दिन जंगल से एक तोहफा लाए. बांस की टोकरी में छुपे तोहफे को देखने चेंदरू बड़ा उत्साहित था. वह तोहफा एक दोस्ती का था जिसने चेंदरू का जीवन बदल दिया.
चेंदरू के सामने जब टोकरी खोली गई तो वह अपने सोच से परे कुछ पाया. टोकरी में शेर का बच्चा था, जिसे देख चेंदरू ने उसे अपने गले से लगा लिया. इस मुलाकात से टाइगर और चेंदरू की अच्छी दोस्ती शुरू हो गई. चेंदरू ने अपने इस दोस्त का नाम टेम्बू रखा था. वह हमेशा टेंबु के साथ गांव के जंगल में घूमते, नदी में मछलियां पकड़ते और जंगल में अन्य जानवरों के साथ भी खेलने लगता था.
ऑस्कर वीनिंग हुई चेंदरू पर बनी फिल्म
कहा जाता है कि चेंदरू और टाइगर की दोस्ती का यह किस्सा गांव-गांव में फैलने लगा और फिर एक दिन वह विदेश पहुंच गया. स्वीडन के सुप्रसिद्ध फिल्म डायरेक्टर अरेन सक्सडॉर्फ को जब यह किस्सा पता चला तो वह सीधे बस्तर आ पहुंचे. यहां आने के बाद एक ऐसा दृश्य देखा जिसमे एक इंसान और टाइगर एक दूसरे के दोस्त हैं और उन दोनों में कोई दुश्मनी नहीं है. ऐसा दृश्य देखकर डायरेक्टर ने इसे पूरी दुनिया को दिखाने का फैसला कर लिया. टेम्बू और चेंदरू के बीच दोस्ती से प्रभावित होकर 1957 में सुप्रसिद्ध मशहूर स्वीडन फिल्मकार अरेन सक्सडॉर्फ ने चेंदरू और पालतू शेर टेम्बू को लेकर एक फिल्म बनाई जिसका नाम था 'द जंगल सागा'.
यह फिल्म अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब सफल रही. इस फिल्म ने पूरी दुनिया में धूम मचा दी. इस फिल्म में चेंदरू और उसके दोस्त टेम्बू टाइगर के दोस्ती के बारे में दिखाया गया था. इस फिल्म के हीरो का रोल चेंदरू ने ही किया. गांव में रहकर डायरेक्टर ने 1 साल में फिल्म की पूरी शूटिंग की. इस फिल्म ने चेंदरू को दुनिया भर में मशहूर कर दिया. हेमंत कश्यप ने बताया कि अरेन सक्सडॉर्फ चाहते थे कि चेंदरू भी वो जगह देखे जहां से वे आए हैं. वे चेंदरू को स्वीडन अपने साथ ले गए. स्वीडन चेंदरू के लिए अलग ही दुनिया थी. यहां पर डायरेक्टर अरेन ने उसे एक परिवार का माहौल दिया. उन्होंने उसे अपने घर पर ही रखा और उनकी पत्नी अस्त्रिड सक्सडॉर्फ ने चेंदरू को अपने बेटे की तरह देख रेख किया.
'चेंदरू द बॉय एंड द टाइगर' नामक किताब प्रकाशित
अस्त्रिड एक सफल फोटोग्राफर थी. फिल्म शूटिंग के समय उन्होंने चेंदरू की कई तस्वीरें खींची और एक किताब में प्रकाशित की जिसका नाम रखा 'चेंदरू द बॉय एंड द टाइगर'. स्वीडन में चेंदरू करीब 1 साल रहा और इस दौरान उसे काफी पहचान मिली लेकिन एक साल बाद चेंदरू वापस स्वदेश लौटा और मुंबई पहुंच कर उसकी मुलाकात तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से हुई. उन्होंने चेंदरू को पढ़ने के लिए कहा पर चेंदरू के पिता ने उन्हें वापस बुला लिया. जब चेंदरू बस्तर के अपने गांव वापस लौटा तो उसके कुछ दिन बाद टेम्बू टाइगर की मौत हो गयी.
टैंबु के जाने के बाद चेंदरू उदास रहने लगा और वह धीरे-धीरे पुरानी जिंदगी में लौटा और फिर गुमनाम हो गया. गुमनामी की जिंदगी जीते चेंदरू मंडावी ने साल 2013 में 78 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया. उनके चले जाने के बाद राजधानी रायपुर में जंगल सफारी में टेम्बू और चेंदरू की मूर्ति स्थापित की गई. साथ ही नारायणपुर में चेंदरू के नाम पर पार्क भी मौजूद है. भले चेंदरू इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन आज भी उनकी चर्चा बस्तर वासियों के हर जुबान पर होती है. 18 सितंबर को चेंदरू की 9वीं पुण्यतिथि बस्तर में मनाई गई.