Chhattisgarh News: 'यहां साल में सिर्फ दो ही दिन खुलता है स्कूल', बाकी दिन कहां जाते हैं बच्चे?
Sukma School News: प्राथमिक शाला में करीब 40 बच्चे हैं. स्कूल नहीं आने के आरोपों का शिक्षक लखाराम नागेश ने खंडन किया है.
Sukma: छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र सुकमा जिले अंदरूनी गांव में शिक्षा की क्या स्थिति है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इलाके में मौजूद एक प्राथमिक शाला साल में केवल दो बार ही खुलता है. बाकी के दिनों में इस स्कूल में ताला लटका रहता है. स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे अपने घर के मवेशी चराते हैं या फिर महुआ बीनने जाते हैं. यह स्कूल राज्य सरकार की बस्तर में शिक्षा व्यवस्था पर करोड़ों रुपए खर्च करने के दावों की पोल भी खोल रहा है.
शिक्षकों की कमी से जूझ रहे इस प्राथमिक शाला को केवल 26 जनवरी और स्वतंत्रा दिवस के दिन ही खोला जाता है और ध्वजारोहण करने के बाद फिर से इस स्कूल में ताला लगा दिया जाता है. यहां पढ़ने वाले इन बच्चों को शाला प्रवेश उत्सव में गणवेश तो जरूर मिलता है.
लेकिन, बच्चे स्कूल ड्रेस पहनकर स्कूल नहीं आते. वे अपने मवेशियों को चराने और महुआ बीनने के साथ ही अन्य कामों में इस ड्रेस का उपयोग करते हैं. ग्रामीणों के लगातार मांग करने के बावजूद भी इस प्राथमिक शाला में नये शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की जा रही है. यहां पदस्थ शिक्षक पर स्कूल नहीं पहुंचने के लिए कोई कार्रवाई भी नहीं की जाती है. इस कारण पिछले दो साल से इस गांव के प्राथमिक शाला का यही हाल बना हुआ है.
दो साल से नहीं हुई शिक्षकों की नियुक्ति
सुकमा जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आश्रित गांव मनकापाल के परिया में यह प्राथमिक शाला है. इस प्राथमिक शाला में लखाराम नागेश नाम के एक ही शिक्षक हैं. इससे पहले एक और शिक्षक की नियुक्ति जरूर की गई थी, लेकिन उन्होंने अपना तबादला करवा लिया. इस कारण इस प्राथमिक शाला में एक ही शिक्षक रह गये हैं. यह शिक्षक भी साल में केवल दो बार ही स्कूल पहुंचते हैं. वह भी 26 जनवरी और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर. इसके अलावा वे कभी स्कूल नहीं आते हैं.
प्राथमिक शाला में हैं करीब 40 बच्चे
प्राथमिक शाला में करीब 40 बच्चे हैं. सभी बच्चे शाला प्रवेश उत्सव के दौरान उन्हें मिले कॉपी, पुस्तक और स्कूल ड्रेस का बच्चे अपने हिसाब से उपयोग कर लेते हैं. यहां के अधिकतर बच्चे मवेशी चराने जाते हैं या फिर महुआ बीनने.
बच्चों के पालकों का कहना है कि करीब दो साल से इस प्राथमिक शाला का यही हाल बना हुआ है. इसके लिए ग्रामीणों ने कलेक्टर से लेकर जिला शिक्षा अधिकारी तक से इसकी शिकायत भी की, लेकिन इसके बाद भी यहां न तो दूसरे शिक्षक की नियुक्ति की जाती है और न ही यहां नियुक्त शिक्षक पर कोई कार्रवाई. कई बार ग्रामीणों के कहने पर यहां के शिक्षक लखाराम नागेश दूसरे दिन स्कूल खोलने का वादा जरूर करते हैं. लेकिन, स्कूल में हमेशा ताला लटका रहता है. पालकों का कहना है कि हम अपने बच्चों को स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं. अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं, लेकिन स्कूल में ताला लगा रहता है.
बच्चा बीमार होने की शिक्षक ने बताई वजह
स्कूल नहीं आने के मामले को लेकर शिक्षक लखाराम नागेश का कहना है कि ग्रामीण झूठ बोल रहे हैं. पिछले कई महीनों से स्कूल नहीं आने के सवाल पर शिक्षक का कहना है कि उनके बच्चे की तबीयत खराब है. इसलिए कुछ महीनों से वह स्कूल नहीं जा रहे हैं. इस मामले में विकास खंड शिक्षा अधिकारी का कहना है कि कई बार शिक्षक को नोटिस दिया गया है और हर दिन स्कूल में उपस्थित रहने को कहा गया है.
ग्रामीणों से शिकायत मिली है और इसकी जांच की जा रही है. शिक्षा अधिकारी का कहना है कि प्राथमिक शाला में दो शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी, लेकिन एक शिक्षक का तबादला हो गया है. मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर अंदर गांव में स्कूल होने की वजह से यहां कोई शिक्षक आना नहीं चाहता.
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