Surajpur Ardhanareshwar Shivling: जिले का ब्लॉक मुख्यालय मंदिरों का गढ कहा जाता है. इसके कुछ ही दूरी पर शिवपुर गांव है. जो प्राचीन समय से धार्मिक आस्था का केंद्र बड़ा केन्द्र रहा है. शिवपुर में भगवान शंकर का अत्यंत प्राचीन शिव लिंग है. जिसे अर्धनारेश्वर औऱ जलेश्वर शिव लिंग कहा जाता है. अर्धनारेश्वर शिव लिंग तो देश में अन्य स्थानों पर भी है. लेकिन इस शिव लिंग को जलेश्वर शिव कहे जाने के अपने अलग मायने हैं. इतना ही नहीं शोधकर्ता ने दावा किया है कि इस तरह का शिवलिंग विश्व में कहीं नहीं है. जिसके चारो ओर 24 घंटे जल परिक्रमा करता हो.


जानें क्या है इस शिवलिंग की खासियत?


इस प्राचीन शिवलिंग के स्थान पर पहले पुराने जमाने का एक छोटा सा मंदिर बना था. जिसके बाद आज स्थानीय लोगों को औऱ प्रशासन की मदद से इसे आधुनिक जमाने के मंदिर का रूप दिया गया है. इस शिवलिंग की खासियत है कि संभवत: यहां के अर्धनारेश्वर-जलेश्वर शिवलिंग विश्व का एकलौता ऐसा "अर्धनारेश्वर शिवलिंग" है. जिसके चारो ओर 24 घंटे प्राकृतिक जल परिक्रमा करता है. वैसे शोधकर्ताओं के मुताबिक ये जल मंदिर के बगल चट्टानों के बीच कहां से निकल रहा है. इस जल का उद्गम कहां से है. फिलहाल इस बात का कोई प्रमाण नहीं हैं. इधर शोधकर्ता शिक्षक अजय चतुर्वेदी ने इन सभी तथ्यों को कई राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में भी प्रस्तुत किया है. इन सेमिनारों में अजय चतुर्वेदी ने इस तथ्य के साथ ये चुनौती भी पेश की है कि बिना रुके 24 घंटे 365 दिन जलमग्न अर्धनारेश्वर-जलेश्वर शिवलिंग विश्व का एकलौता शिवलिंग है.




गंगा नदी की तरह पानी


इधर इस प्राकृतिक और अंजान जल स्त्रोत के बारे में भी आपको जानकर हैरानी होगी. क्योंकि गर्मी के मौसम में जल 24 घंटे ठंडा और ठंड के दिनों में जल 24 घंटे गर्म रहता है. आमतौर पर ये लक्षण प्राकृतिक जल श्रोत में होता है. इतना ही नहीं ये भी दावा किया जाता है कि शिवपुर में छोटी पहाड़ी के चट्टानों से निकलने वाले इस पानी में कभी कीड़े नहीं पड़ते हैं. जैसा गंगा नदी के जल के लिए दावा किया जाता है. इसे धार्मिक मान्यता वाले लोग भगवान की कृपा बताते हैं. तो पढ़े लिखे और शोधकर्ता इसे प्राकृतिक जल और औषधि युक्त शुद्ध जल मानते हैं.


वरिष्ठ साहित्यकार की पुस्तक में उल्लेख


पेशे से शासकीय शिक्षक औऱ रूचि से पुरातत्वात्विक स्थलों की खोज, शोध करने वाले अजय चतुर्वेदी ने इस शिवलिंग के विषय में बहुत ही रोचक जानकारियां दी. जिसमें उन्होंने साइंटिफिक और लोक कथाओं का जिक्र भी किया है. उन्होंने बताया की त्रेता युग में भगवान श्री राम जब वनवास में जीवन व्यतीत कर रहे थे. उसी समय माता सीता और लक्ष्मण के साथ मिलकर इस जगह पर शिवलिंग की स्थापना करके उनकी विधि सवंत पूजा अर्चना किये थे. कालान्तर में ये मन्दिर ज़मीन के अन्दर धंस गया था तथा एक रोज़ यहां के तत्कालिक राजा को स्वप्न में दिखाई दिया कि यहां पर मंदिर और शिवलिंग के अवशेष है. उसके उपरांत तत्कालिक राजा के आदेश पर इस जगह की खुदाई की गई. तब शिवलिंग समेत कुछ पुरातात्विक अवशेष मिले. राजा की इच्छा थी कि इस शिवलिंग को यहां से हटाकर उनके महल के पास जो तालाब है वहां पर स्थित करें.  जिसके बाद उनके आदेश पर जब एक मजदूरों ने शिवलिंग को निकालने के लिए चट्टानों को हटाया और हटाते वक्त जब शिवलिंग पर सब्बल का प्रहार पड़ा तो इस शिवलिंग से रक्त बहने लगा. तभी कुछ पंडित और ब्राह्मणों ने राजा को सलाह दी कि भगवान शिव नाराज हो गए हैं. उन्हें प्रसन्न करने के लिए महा रुद्राभिषेक का आयोजन करना चाहिए. जब ये आयोजन हुआ तो वंहा से दूध और जल का प्रवाह होने लगा तथा वर्तमान में वहां पर केतकी के झाड़ मिलते हैं जो इस घटना की पुष्टि करते हैं. शोधकर्ता शिक्षक ने बताया कि इस घटना का उल्लेख वरिष्ठ साहित्यकार राजा समर बहादुर सिंह की पुस्तक में भी उल्लेख मिलता है.


हर साल लाखों की संख्या में पहुंचते हुए श्रद्धालु


शिवपुर में हर वर्ष समिति औऱ प्रशासन के सहयोग से मकर संक्राति, महाशिवरात्रि और सावन के महीने में भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है. जिसमें की लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. इन श्रद्धालुओं में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड के साथ अन्य प्रदेशों से शिव उपासक शामिल हैं. धार्मिक आस्था रखने वाले लोगों की मानें तो इस स्थान में पहुंचने मात्र से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इसके साथ ही इस मंदिर प्रांगण मे पंचमुखी गुम्बद एक और प्राचीन मंदिर भी है. जिसमें कृष्ण लीलाओं का दर्शन होता है. शोधकर्ता अजय चतुर्वेदी ने ये भी दावा किया है कि इस स्थान के दो चार किलोमीटर के एरिया में अगर खुदाई की जाए तो. लोक कथाए , लोक मान्याताओ से अलग जो अवशेष प्राप्त होंगे. वो धर्म, दर्शन, और इतिहास के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं. बहरहाल छत्तीसगढ़ के बाबाधाम के नाम से मशहूर शिवपुर मे आप भी आकर यहां के बारे मे बेहतर जानकारी ले सकते हैं, जो फिलहाल दावो औऱ इतिहास की गर्भ मे हैं.


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