Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ का सरगुजा कभी तेंदू और चिरौंजी की वजह से था मशहूर, जानें अब क्यों नहीं दिखते ये फल
कभी छत्तीसगढ़ के सरगुजा की पहचान होने वाले तेंदू और चिरौंजी के पेड़ अब गायब होते जा रहे हैं. इन पेड़ों के विलुप्त होने की वजह वनों की कटाई बताई जा रही है.
Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ प्रदेश में काफी ज्यादा मात्रा में वन हैं, सरगुजा से बस्तर तक के जंगलों में हरे भरे पेड़ भी प्रदेश की पहचान हैं. आदिवासी प्राचीन काल से इन्हीं जंगलों से मिलने वाले वनोपज से अपनी जीविका चलाते रहे हैं. छत्तीसगढ़ के जंगलों में साल-सागौन और विभिन्न प्रकार के दुर्लभ पेड़ हैं. इसके अलावा सरगुजा का तेंदू और चिरौंजी भी खास है. अब से 10 से 15 साल पीछे चले जाएं तो सरगुजा का तेंदू फल काफी मशहूर था. सरगुजा के जंगलों में तेंदू के पेड़ की भरमार थी, यहीं नहीं इस फल का स्वाद भी लाजवाब था. दूसरे राज्यों में जब भी तेंदू फल का जिक्र होता था, तो सरगुजा का नाम हर किसी की जबान पर आता था.
हालांकि अब यह फल विलुप्ति के कगार पर है और इसकी वजह वनों को अंधाधुंध कटाई को माना जाता है. वर्तमान के जिस तरह से जंगलों की कटाई हो रही हैं उसकी चपेट में आकर तेंदू जैसे दुर्लभ फल भी समाप्ति की कगार पर हैं. क्योंकि 10 साल पहले सरगुजा के जंगल काफी घने थे. वनांचल इलाकों में बसे आदिवासी इन्हीं जंगलों पर निर्भर रहते हैं. महुआ फूल, तेंदूपत्ता और तेंदू के फल, चिरौंजी फल आजीविका चलाने में सहायक थे. पहले वनक्षेत्रों में बसे ग्रामीण जंगल से तेंदू के फल शहरों में बेचने के लिए लाते थे. इस फल की मार्केट में काफी डिमांड थी, इसके अलावा चिरौंजी, जिसे स्थानीय भाषा में चार कहा जाता है.
सालों पहले शहर ही नहीं ग्रामीण इलाकों के साप्ताहिक बाजार भी गर्मी के समय तेंदू और चिरौंजी के फल से भरे रहते थे. ये दोनों फल शहरी क्षेत्रों के लोगों में भी पसंदीदा था. ग्रामीण क्षेत्र के लोग टोकरी या बोरे में लेकर गांव गांव, शहर-शहर घूमकर चिरौंजी और तेंदू बेचा करते थे. अब बाजार में बहुत कम ही देखने को मिलते है. पर्यावरण प्रेमी दितेश कुमार रॉय बताते है कि तेंदू का पौधा जब छोटा रहता है तब उसके पत्तों का उपयोग बीड़ी बनाने के लिए किया जाता है. जब पौधा बड़ा हो जाता है इसके बाद उस पेड़ को काट दिया जाता है, ज्यादातर ऐसा ही होता है. इसके अलावा पेड़ो की कटाई भी बहुत ज्यादा हो रही है, उसमें भी तेंदू के बचे कुचे पेड़ कट जाते है. चिरौंजी (चार) के लिए बिचौलिए इतने सक्रिय हो गए कि गांव गांव जाकर चार खरीदने लगे. इसका रेट भी धीरे धीरे कम होता गया तो इसलिए चार भी धीरे धीरे विलुप्त होते गया और जंगलों की अवैध कटाई से भी नुकसान हुआ.
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