National Tribal Dance Festival In Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में आदिवासी आरक्षण का विवाद दिनों दिन गहराता जा रहा है. आदिवासी समाज ने राज्य सरकार के बड़े आयोजन का बहिष्कार कर दिया है. एक नवंबर को मनाए जाने वाले राज्य स्थापना दिवस और राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का बहिष्कार कर दिया है. इसके अलावा एक से 3 नवंबर तक जिला स्तर में प्रदर्शन करने का आदिवासी समाज ने निर्णय लिया है. दरअसल हर साल की तरह इस साल भी धूमधाम से राज्य सरकार 1 नवंबर से राज्य स्थापना दिवस मनाने जा रही है. इसके लिए रायपुर के साइंस कॉलेज ग्राउंड में बड़े स्तर पर तैयारी की जा रही है. इसमें राष्ट्रीय स्तर का आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया जाएगा. जिसमें देश विदेश के 1500 से अधिक कलाकार शामिल हो रहे है. ये सभी कलाकार विभिन्न क्षेत्रों के आदिवासी संस्कृति पर आधारित नृत्य प्रस्तुत करेंगे.
इसमें छत्तीसगढ़ के आदिवासी कलाकार भी शामिल होंगे. लेकिन सर्व आदिवास समाज इस आयोजन का बहिष्कार कर दिया है और विधायक, सांसद, मंत्री के निवास के सामने नगाड़ा बजाया जाएगा.
सरकार ने अब तक नहीं उठाया कोई ठोस कदम
सर्व आदिवासी समाज के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बी.एस. रावटे ने कहा कि 25 सितंबर और 8 अक्टूबर को मीटिंग में निर्णय लिया गया है कि आदिवासी नृत्य महोत्सव और राज्य अलंकरण समारोह का विरोध जिला स्तर पर किया जायेगा. 32 प्रतिशत आरक्षण को लेकर राज्य सरकार ने अबतक कोई ठोस कार्यवाही नहीं को गई है. इस दिशा में छत्तीसगढ़ सरकार बहुत पीछे चल रही है. इसलिए आदिवासी समाज के लोग राज्य उत्सव समारोह का बहिष्कार करेंगे.
12 प्रतिशत घट गया आदिवासी आरक्षण
गौरतलब है कि बिलासपुर हाईकोर्ट ने 19 सितंबर को राज्य में 58 प्रतिशत आरक्षण को रद्द करने का फैसला सुनाया था. इसके बाद अब 2011 की स्थिति के आधार पर आरक्षण व्यवस्था बन गई है. जिसके अनुसार एसटी आरक्षण वर्तमान में 32 प्रतिशत था जो अब 12 प्रतिशत घट का 20 प्रतिशत हो गया है. ओबीसी 14 प्रतिशत और एससी का आरक्षण 13 से बढ़कर 16 प्रतिशत हो गया है. इस लिए छत्तीसगढ़ में घमासान मचा हुआ है.
आदिवासी आरक्षण पर सियासत जारी
आदिवासी आरक्षण घटने पर बीजेपी और कांग्रेस आमने सामने आ गए है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टी एक दूसरे इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहे है. बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस सरकार ने मजबूती से कोर्ट में पक्ष रखा नहीं इस लिए आरक्षण घट गया है. वहीं कांग्रेस बीजेपी पर भी यही आरोप लगा रही है की तत्कालीन बीजेपी सरकार ने कोर्ट में पक्ष रखने में लापरवाही बरती इस लिए हाईकोर्ट ने 58 प्रतिशत आरक्षण को रद्द कर दिया है.
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