Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के बस्तर (Bastar) जिले में आदिवासी महिलाओं के लिए वनोपज संग्रहण-प्रसंस्करण और इससे होने वाली आय को लेकर सरकार के तमाम दावों के बावजूद जमीनी हकीकत कुछ और ही है. केंद्र सरकार की वित्तीय मदद से शुरू किए गए ट्राइफूड पार्क का लोकार्पण हुए तीन साल बीत गए हैं, लेकिन अब भी यह पार्क शुरू नहीं किया गया है. इसके लिए भवन निर्माण में छह करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, लेकिन लोकार्पण के बाद यह यूनिट शुरू ही नहीं की गई.
जानकारी के मुताबिक इस योजना के तहत बस्तर में मिलने वाले वनोपज का इसी ट्राइफूड पार्क में प्रसंस्करण कर उसकी ब्रांडिंग देश और विदेश में करने की बात तही गई थी. साथ ही करीब 20 हजार स्थानीय कर्मचारियों को इसमें रोजगार देने का दावा किया गया था. पार्क तैयार करने में कुल मिलाकर 50 करोड़ रुपये का खर्च होना था, जिसमें भवन निर्माण के लिए छह करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं.
खंडहर हो रहा पार्क
इधर ट्राइफूड के सीनियर कंसल्टेंट और अधिकारी रायपुर कार्यालय में बैठते हैं, जिसकी वजह से यहां इस यूनिट पर सिर्फ ताला लगा हुआ है. अधिकारियों के मुताबिक इस ट्रायफूड पार्क के लिए बजट आवंटन नहीं होने की वजह से प्रोसेसिंग और प्रसंस्करण का काम अटका हुआ है. बताया जा रहा है कि इसमें जगदलपुर वन वृत्त के अंतर्गत आने वाले विभिन्न जिलों से वनोपज एकत्र कर इसकी प्रोसेसिंग की जानी है.
इस ट्राइफूड पार्क के माध्यम से बस्तर में होने वाले 60 से अधिक वनोपज का प्रसंस्करण कर उनके उत्पाद विदेश तक बेचने की योजना है. फिलहाल इस पार्क के लोकार्पण के तीन साल बाद भी अब तक इसका काम आगे नहीं बढ़ पाया है. इस वजह से यह पार्क और भवन धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील हो रहा है.
बजट आवंटन नहीं होने से रुका काम
बस्तर में वनोपज को केंद्र सरकार समर्थन मूल्य के दर पर ट्राइफूड (द ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया) के द्वारा खरीदने के लिए एमओयू साइन किया गया था. बाद में इसकी प्रोसेसिंग कर प्रोडक्ट को ऑनलाइन के साथ देश में अलग-अलग जगहों पर स्टालों के जरिए बिक्री की बात कही गई. इसके लिए ट्राइफूड ने जगदलपुर शहर से लगे बाबू सेमरा में छह करोड़ की लागत से जिला प्रशासन के सहयोग से ट्राइफूड पार्क के लिए भवन का निर्माण कराया.
इसके साथ ही यहां प्रशासनिक भवन, प्रोसेसिंग यूनिट, यूटिलिटी और पैकेजिंग सेंटर लगने की बात कही. साथ ही हर समय बस्तर में मिलने वाले वनोपज जिसमें इमली, महुआ, आंवला, शहद, काजू , टोरा, कोदो, कुटकी, रागी और अन्य प्रकार के वनोपज यहां के आदिवासी संग्राहकों के माध्यम से मिलने की बात कही. इससे महुआ से महुआ लड्डू, इमली से कैंडी, सॉस, काजू और अन्य उत्पादों के साथ ही वनोपज से कई प्रोडक्ट तैयार किए जाने का दावा किया गया.
बजट आवंटन के आधार पर होगा काम
इसके लिए भवन में लगभग 50 करोड़ का सेटअप लगाने, जिसमें सभी वनोपज के अलग-अलग प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित किए जाने की योजना बनाई गई. इधर भवन तैयार हुए तीन साल बीत चुके हैं, लेकिन अब तक एक भी प्रोसेसिंग प्लांट, यूनिट इस भवन में नहीं लग पाया है. वहीं ट्रायफूड पार्क प्रभारी पीएस चक्रवती का कहना कि केंद्र सरकार के बजट के आवंटन के आधार पर आगे काम किया जाएगा. फिलहाल ट्राइफूड पार्क में कब तक काम शुरू हो पाएगा, इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है.
आदिवासी महिलाओं को थी रोजगार मिलने की उम्मीद
इधर इस ट्राइफूड पार्क के खुलने से आसपास के रहने वाले ग्रामीणों को उम्मीद थी कि उनके द्वारा संग्रहण किए जा रहे वनोपज को सही दाम पर इस पार्क में खरीदा जा सकेगा. साथ ही यहां प्रोसेसिंग यूनिट लगने से हजारों आदिवासी ग्रामीण महिलाओं को रोजगार मिल सकेगा, लेकिन भवन के लोकार्पण के तीन साल बीतने के बाद भी अब तक यहां काम शुरू नहीं हो सका है.
यह पार्क एक माली, एक कर्मचारी और दो गार्ड के भरोसे ही चल रहा है. वहीं स्थानीय जिला प्रशासन के अधिकारी भी पार्क के संचालन को लेकर चुप्पी साथ रखे हैं. ऐसे में माना जा सकता है कि आने वाले एक-दो सालों में भी करोड़ों रुपये की लागत से तैयार ट्राइफूड पार्क का संचालन शुरू नहीं हो पाएगा. फिलहाल बस्तर के वनोपज संग्राहक बड़ी मात्रा में वनोपज को बाहरी व्यापारियों को ओने-पोने दामों में बेचने को मजबूर हैं.