Bastar News: छत्तीसगढ़ के बस्तर में 50 हजार आदिवासी ग्रामीणों को ट्राईफूड पार्क में रोजगार देने का दावा खोखला साबित होता नजर आ रहा है. 2 साल पहले लगभग 6 करोड़ की लागत से ट्राईफ़ूड पार्क बनकर तो तैयार हो गया है, लेकिन यहां अब तक वनोपज का एक भी प्रोसेसिंग प्लांट नहीं लग पाया है और ना ही यहां वनोंपज से संबंधित कोई काम शुरू हो पाया है. ऐसे में एक माली एक कर्मचारी और दो गार्ड के भरोसे यह ट्राईफ़ूड पार्क चल रहा है और रख रखाव के अभाव में करोड़ों रुपए का भवन भी खराब होता जा रहा है. डेढ़ साल पहले केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने इस फूड पार्क का लोकार्पण किया और लोकार्पण के बाद से बस्तर में वनोपज पर निर्भर ग्रामीणों को रोजगार देने के बड़े-बड़े दावे किए गए, लेकिन आलम यह है कि अब तक इस भवन में एक भी प्रोसेसिंग यूनिट नहीं लग पाया है और ना ही वनोंपज संग्राहकों ने अपना वनोपज बेचना यहां शुरू किया है. हालांकि इसके पीछे ट्राईफेड के अधिकारी बजट नहीं होने की बात कह रहे हैं.
अधिकारी बजट नहीं होने का दे रहे हवाला
दरअसल, बस्तर में वनोपज को केंद्र सरकार समर्थन मूल्य के दर पर ट्राईफेड ( द ट्राईबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया) के द्वारा खरीदने के लिए एमओयू साइन किया गया था, और बाद में इसकी प्रोसेसिंग कर प्रोडक्ट को ऑनलाइन के साथ देश में अलग अलग जगहों पर स्टालों के जरिए बिक्री की बात कही गई. इसके लिए ट्राइफेड ने जगदलपुर शहर से लगे बाबू सेमरा में 6 करोड़ की लागत से जिला प्रशासन के सहयोग से भवन का निर्माण कराया और यहां प्रशासनिक भवन, प्रोसेसिंग यूनिट, यूटिलिटी और पैकेजिंग सेंटर लगने की बात कही और यहां हर समय बस्तर में मिलने वाली वनोपज जिसमें इमली, महुआ, आंवला, शहद, काजू , टोरा, कोदो, कुटकी, रागी और बस्तर में पाए जाने वाली अन्य प्रकार के वनोपज यहां के आदिवासी संग्राहकों के माध्यम से मिलने की बात कही. जिसमें महुआ से महुआ लड्डू, इमली से कैंडी, सॉस, काजू , और अन्य उत्पादों के साथ ही वनोपज से कई प्रोडक्ट तैयार किए जाने का दावा किया गया. इसके लिए भवन में लगभग 50 करोड़ का सेटअप लगने जिसमें सभी वनोपज के अलग-अलग प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित किए जाने की योजना बनाई गई. इधर भवन तैयार हुए 2 साल बीत चुके हैं लेकिन अब तक एक भी प्रोसेसिंग प्लांट, यूनिट इस भवन में नहीं लग पाया है. वहीं ट्राइफेड पार्क प्रभारी पीएस चक्रवर्ती का कहना कि केंद्र सरकार के बजट के आवंटन के आधार पर आगे काम किया जाएगा, फिलहाल ट्राईफूड पार्क में कब तक काम शुरू हो पाएगा, इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है.
हजारों स्थानीय आदिवासी ग्रामीणों को रोजगार मिलने की थी उम्मीद
इधर इस ट्राईफूड पार्क के खुलने से आसपास के रहने वाले ग्रामीणों को उम्मीद थी कि उनके द्वारा संग्रहण किये जा रहे वनोपज को सही दाम पर इस पार्क में खरीदा जा सकेगा. साथ ही यहां प्रोसेसिंग यूनिट लगने से हजारों आदिवासी ग्रामीणों को रोजगार मिल सकेगा. लेकिन भवन के लोकार्पण हुए डेढ़ साल बीतने के बाद भी अब तक यहां काम शुरू नहीं हो सका है और एक माली एक कर्मचारी और दो गार्ड के भरोसे ही पार्क चल रहा है. वहीं स्थानीय जिला प्रशासन के अधिकारी भी पार्क के संचालन को लेकर चुप्पी साथ रखे हैं. ऐसे में माना जा सकता है कि आने वाले एक-दो सालों में भी करोड़ों रुपए की लागत से तैयार ट्राईफूड पार्क का संचालन शुरू नहीं हो पाएगा. फिलहाल बस्तर के वनोपज संग्राहक बड़ी मात्रा में वनोपज को यहां के व्यापारियों को औने पौने दामों में बेचने को मजबूर हैं.
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