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Chhattisgarh Politics: छत्तीसगढ़ के पंचायती राज मंत्री टीएस सिंहदेव ने दिया इस्तीफा, रेजिगनेशन लैटर में लिखी बड़ी बात
छत्तीसगढ़ की राजनीति से जुड़ी बड़ी खबर ने हलचल मचा दिया है. स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने पंचायत विभाग के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने सीएम बघेल को पत्र लिखकर पीड़ा जाहिर की.
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T. S. Singh Deo Resignation: छत्तीसगढ़ की राजनीति से जुड़ी बड़ी खबर ने हलचल मचा दिया है. स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने पंचायत विभाग के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. हालांकि अपने प्रभार वाले बाकी विभागों में कैबिनेट मंत्री बने रहेंगे. टीएस सिंहदेव के पास लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, चिकित्सा शिक्षा, बीस सूत्रीय कार्यान्वयन, वाणिज्यिक कर (जीएसटी) विभाग का प्रभार है. सिंहदेव के इस्तीफे की वजह सरकार से नाराजगी बताई जा रही है. उन्होंने 4 पन्ने का इस्तीफा पत्र मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भेजा है.
पंचायत मंत्री पद से टीएस सिंहदेव ने क्यों दिया इस्तीफा?
पत्र में इस्तीफा देने के पीछे कई कारणों का जिक्र करते हुए नाराजगी जताई है. टीएस सिंहदेव ने इस्तीफा पत्र अंबिकापुर में गृह निवास तपस्या से मुख्यमंत्री को भेजा है. पत्र में सबसे पहले पीएम आवास योजना का जिक्र किया गया है. उन्होंने लिखा, "पिछले तीन वर्षो से मैं पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग का मंत्री हूं. मेरे मंत्री काल में कुछ ऐसी परिस्थितियां निर्मित हुई हैं, जिससे आपको अवगत कराना चाहता हूं. प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास विहीन लोगों को आवास बनाकर दिया जाना था. मैंने कई बार आपसे चर्चा कर राशि आवंटन का अनुरोध किया लेकिन योजना मद में राशि उपलब्ध नहीं की जा सकी.
इसके चलते प्रदेश के लगभग 8 लाख लोगों का आवास नहीं बन सका. 8 लाख घर बनाने पर करीब 10 हजार करोड़ प्रदेश की अर्थव्यवस्था में सहायक होते. हमारे जन घोषणा पत्र में छत्तीसगढ़ के 36 लक्ष्य अंतर्गत ग्रामीण आवास का अधिकार प्रमुख रूप से लिखा है. प्रदेश की वर्तमान सरकार के कार्यकाल में आवास विहीन लोगों के लिए एक भी घर नहीं बनाया जा सका और योजना की प्रगति रुकी रही. मुझे दुःख है कि योजना का लाभ प्रदेश के आवास विहीन लोगों को नहीं मिल सका. किसी भी विभाग के अधीन कार्यों की स्वीकृति का अनुमोदन भारसाधक मंत्री का अधिकार है. लेकिन मुख्यमंत्री समग्र ग्रामीण विकास योजना के अंतर्गत कार्यों की अंतिम स्वीकृति के लिए Rules of Business के विपरीत मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सचिवों की एक समिति गठित की गयी.
कार्यों की स्वीकृति के लिये मंत्री के अनुमोदन बाद अंतिम निर्णय मुख्य सचिव की समिति द्वारा लिये जाने की प्रक्रिया बनाना प्रोटोकाल के विपरीत और सर्वथा अनुचित है. मेरे जरिए समय-समय पर लिखित रूप से आपत्ति दर्ज करायी गयी लेकिन आज तक व्यवस्था को सुधारा नहीं जा सका है. इसके चलते 500 करोड़ से ज्यादा की राशि का उपयोग मंत्री / विधायक/ जनप्रतिनिधि के सुझाव अनुसार विकास कार्यों में नहीं किया जा सका. वर्तमान में पंचायतों में अनके विकास कार्य प्रारंभ ही नहीं हो पाये. पेसा अधिनियम आदिवासी भाई-बहनों के अधिकारों की सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण कदम है. प्रदेश में लागू करने का जनघोषणा-पत्र में भी वादा किया था और काफी मेहनत से नियम बनाये गये थे.
मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर बताया नाराजगी का कारण
दिनांक 13 जून, 2020 से प्रदेश के आदिवासी ब्लॉकों में स्थानीय लोगों, जनप्रतिनिधियों से निरंतर 2 वर्षों तक संवाद स्थापित कर प्रारूप तैयार किया गया लेकिन विभाग की तरफ से कैबिनेट कमेटी को भेजे गए प्रारूप को प्रेसिका में शायद पहली बार बदल दिया गया. प्रारूप में जल, जंगल जमीन से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदुओं को शामिल किया गया था. भारसाधक मंत्री को विश्वास में नहीं लिया जाना अस्वस्थ्य परंपरा को स्थापित करेगा. इस विषय पर अलग से मैंने व्यक्तिगत पत्र भी आपको लिखा है. जनघोषणा पत्र में पंचायत प्रतिनिधियों के अधिकारों को पूर्ण रूप से लागू करना भी शामिल है. मैंने आपसे कई बार चर्चा और विभागीय तौर पर भी पहल की लेकिन मुझे निराश मन से कहना पड़ रहा है कि आज तक कोई भी सहमति/सकारात्मक पहल नहीं हो पायी.
कोरोना काल में लोगों को रोजगार की सबसे ज्यादा जरूरत थी. महात्मा गांधी नरेगा योजना के सफल क्रियान्वयन में छत्तीसगढ़ पूरे भारत में अग्रणी रहा. 20 हजार से अधिक कोविड कंबर सैटर्स का सफलतापूर्वक संचालन पंचायतों ने किया. प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में योजना के माध्यम से ज्यादा लोगों को रोजगार देने में सफल रहे. अधिक से अधिक रोजगार मिलने की प्रशंसा देश के सभी हिस्सों में हुई. मनरेगा का कार्य करने वाले रोजगार सहायकों की मेहनत को देखते हुए वेतन वृद्धि का प्रस्ताव पंचायत विभाग ने वित्त विभाग को प्रेषित किया. मगर विभाग की सहमति न मिलने के कारण आज तक लंबित है. इस विषय पर व्यक्तिगत तौर पर आपसे कई बार चर्चा हुई. साजिश के तहत रोजगार सहायकों से हड़ताल करवाकर मनरेगा कार्यों को प्रभावित किया गया.
सहायक परियोजना अधिकारियों (संविदा) की भूमिका स्पष्ट रूप से निकल कर आयी. खुद आपने हड़ताली कर्मचारियों की मांगों को पूरा करने के लिए एक कमेटी गठित की. इसके बाद भी हड़ताल वापस नहीं ली गई. हड़ताल के कारण लगभग 1250 करोड़ का मजदूरी भुगतान प्रभावित हुआ और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नहीं पहुंच सका. समन्वय के माध्यम से आपसे अनुमोदन लेकर सहायक परियोजना अधिकारियों (संविदा) के स्थान पर रेगुलर सहायक परियोजना अधिकारियों की पदस्थापना भी कर दी गयी थी ताकि मनरेगा का कार्य सुचारू रूप से चल सके और रोजगार की तालाश कर रहे नागरिकों को रोजगार से वंचित न होना पड़े.
जब हमारे प्रदेश को रोजगार की सबसे ज्यादा जरूरत थीं तो सहायक परियोजना अधिकारियों के जरिए कार्य को प्रभावित रखा गया,जबकि रोजगार सहायक अपने काम पर आपस आना चाह रहे थे. जब मुझे जानकारी मिली कि हटाये गये सहायक परियोजना अधिकारी (संविदा) की पुनर्नियुक्ति की कार्यवाही चलने लगी, तब दूरभाष पर मैंने आपसे चर्चा कर अपना मत दिया था कि उन्हें उसी पद पर फिर से नियुक्ति न दी जाये और अगर रखना ही है तो समकक्ष वेतन के आधार पर विभाग में अन्य पद पर रखा जा सकता है. उसी पद पर फिर से रखना अनुचित रहेगा और भविष्य में आंदोलन की प्रवृत्ति मजहूत होगी और अच्छा संदेश नहीं जायेगा.
ऐसी परिस्थिति में जनहित और राज्यहित के विपरीत कार्य कर रहे कर्मचारी की फिर से नियुक्ति अनुचित है. लेकिन इन सब के बावजूद कल फिर से पदस्थापना मेरे बगैर अनुमोदन के कर दी गयी, जो कि मुझे स्वीकार्य नहीं है. जनघोषणा पत्र की विचारधारा के अनुरूप उपरोक्त महत्वपूर्ण विषयों को ध्यान में रखते हुए, मेरा मत है कि विभाग के सभी लक्ष्यों को संपूर्ण भाव से पूरा करने में वर्तमान परिस्थितियों में स्वयं को असमर्थ पा रहा हूं. इसलिए पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के भार से मैं अपने आप को अलग कर रहा हूं. आपने मुझे बाकी जिन विभागों की जिम्मेदारी दी उन्हें अपनी पूरी क्षमता और निष्ठा से निभाता रहूंगा.
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