Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के कांकेर ज़िले के पंखाजूर में अपना महंगा मोबाइल फोन डैम से निकालने के लिए एक फ़ूड इंस्पेक्टर ने डैम का सारा पानी बहा दिया था. अभी यह मामला ठंडा हुआ नहीं था कि ऐसा ही एक और मामला छत्तीसगढ़ के जशपुर ज़िले से सामने आया है. जशपुर ज़िले के फारेस्ट सेंचुरी एरिया में भी एक बांध का हज़ारों लीटर पानी बहा दिया गया है. ये बांध सेंचुरी एरिया के जंगली जानवरों की प्यास बुझाने के लिए बनाया गया था. बांध का पानी बहाए जाने से इस फारेस्ट एरिया में न केवल पानी की क़िल्लत होगी बल्कि अपनी प्यास बुझाने के लिए इस बांध पर निर्भर जंगली जानवर अब इंसानी बस्ती की ओर रुख करेंगे जिससे आस-पास की बस्तियों में वन्य प्राणियों के आने का ख़तरा भी मंडराने लगा है. 


इस वजह से बहाया डैम का पानी
छत्तीसगढ़ के कांकेर के पंखाजूर के एक जलाशय में तब हड़कंप मच गया था जब सेल्फ़ी खींचने के दौरान फ़ूड इंस्पेक्टर राजेश विश्वास का महंगा मोबाइल जलाशय के वेस्ट वेयर में गिर गया था. इसके बाद साहब ने अपना मोबाइल पानी से बाहर निकालने के लिए पूरा डैम ही खाली करा दिया था. ठीक ऐसी ही एक घटना जशपुर ज़िले के बादलखोल फ़ारेस्ट सेंचुरी में हुई है. दरअसल इस सेंचुरी में जंगली जानवरों के पानी के लिए एक डैम बनवाया गया था जिस डैम में फ़िलहाल 300 मीटर लंबाई तक 6 फ़ीट तक पानी भरा हुआ था जिसमें अक्सर मवेशी और जंगली जानवर पानी पिया करते थे लेकिन कुछ शरारती तत्वों ने इस महत्वपूर्ण डैम का लाखों लीटर पानी बहा दिया. जानकारी के मुताबिक़ आस पास के गांव के लोग यहां पर मछली मारते थे लेकिन शरारती तत्वों ने एक साथ मछली निकालने के लिए डैम का पूरा पानी ही बहा दिया है जिससे डैम पूरी तरह से सूख गया है. ग़ौरतलब है कि भीषण गर्मी के दौरान भी इस डैम में पानी लबालब था और आस पास प्राकृतिक जल स्रोतों की वजह से पामी समय समय पर ओवर फ्लो भी होता रहता था. 


अब कैसे प्यास बुझाएंगे जंगली जानवर और मवेशी
जशपुर ज़िला झारखंड और उड़ीसा से लगा हुआ है. यहां का बादलखोल अभयारण्य हमेशा से हाथियों और अन्य जंगली संरक्षित वन्य प्राणियों का महफ़ूज़ ठिकाना रहा है. यहां के एक डैम के पानी को पूरी तरह से बहा दिया गया. अब यहां के वन्य जीवों के प्राणियों को पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिल पाएगा, जिससे जंगली पानी की तलाश में इंसानी बस्तियों का रुख करेंगे. इससे लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. गांव वालों ने इस मुसीबत से बचने के लिए वन अधिकारियों से गुहार लगाई है और शरारती तत्वों के खिलाफ ठोस कार्रवाई की मांग की है जिससे भविष्य में ऐसा घटना दोबारा घटित ना हो सके . 


मुख्यालय में नहीं रहते हैं अधिकारी
सरगुजा संभाग के जशपुर का बादलखोल अभ्यारण वन्य प्राणियों के साथ ही वन संपदा के लिहाज़ से भी काफ़ी महत्वपूर्ण है. यहां बेशक़ीमती पेड़ों के साथ ही बहुउपयोगी औषधि पेड़ों की भी संख्या अच्छी ख़ासी है लेकिन आपको जानकर हैरत होगी कि इस अभ्यारण की ज़िम्मेदारी रखने वाला कोई भी अधिकारी ना ही ज़िला मुख्यालय में रहता है और ना ही अभ्यारण मुख्यालय में. जानकारी के मुताबिक़ सभी अधिकारी संभाग मुख्यालय अम्बिकापुर के शासकीय और निजी आवास में रहकर दूरबीन से यहां की देखभाल करते हैं. इस घटना के दौरान भी कोई वन्य अधिकारी वहां मौजूद नहीं था. 


बेफ़िक्र हैं अधिकारी
एबीपी न्यूज ने जब इस घटना की जानकारी सरगुजा वन वृत के सीएफ वाइल्ड लाइफ़ के आर बढ़ई से बात की तो उन्होंने घटना की जानकारी होने से इंकार कर दिया, जब उनसे दोबारा पूछा गया कि सर जंगली जानवरों की प्यास से जुड़ा मामला है तो उन्होंने कहा कि गांव वालों ने ही डैम को खोल दिया होगा. उन्होंने कहा कि पानी पीने के लिए और भी डैम हैं. इतना ही नहीं संभाग के सभी सेंचुरी के सबसे बड़े अधिकारी ने ग़ैर ज़िम्मेदाराना जवाब देते हुए कहा कि आप मुझसे ये सब मत पूछिए वहां के अधीक्षक और रेंजर से पूछिए. मुझे कुछ पता नहीं है. हालांकि जब हमने ज़िम्मेदारी वाला सवाल किया तो उन्होंने एक लाइन में कहा कि रेंजर और अधीक्षक को वहां भेज दिया गया है कुछ ग़लत हुआ होगा तो वैधानिक कार्रवाई करेंगे. जब उनसे पूछा गआ कि इस मामले में क्या वैधानिक कार्यवाही होगी तो उन्होंने हंसकर बात समाप्त कर दी.. मतलब आप समझ सकते हैं कि जिन अधिकारी के ऊपर संभाग के सभी सेंचुरी की ज़िम्मेदारी है उनको ऐसा बड़ी घटनाओं से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता.. इसके अलावा जब वाइल्ड लाइफ़ डीएफ़ओ श्री श्रीनिवास से इस संबंध में जानने का प्रयास किया तो उन्होंने बताया कि वो एक ट्रेनिंग के सिलसिले में बंगलौर में हैं. जानकारी मिलने के बाद उन्होंने एसडीओ को मौक़े पर भेज दिया है.


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