Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर राज्य में आरक्षण 76 प्रतिशत बढ़ाने का विधेयक पारित कर दिया है. इसमें सबसे खास ये है कि ओबीसी आरक्षण पहले 14 प्रतिशत था, जिसे बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया गया है. एसटी आरक्षण 20 से 32 प्रतिशत किया गया है. वहीं ईडब्ल्यूएस को चार प्रतिशत आरक्षण दिया गया है. ये तो रही आरक्षण बढ़ाने की बात लेकिन इस विधेयक में एक वर्ग का आरक्षण घटाया गया है. वो है एससी वर्ग, इनका आरक्षण 16 प्रतिशत से घटाकर 13 प्रतिशत किया गया है. आखिर सरकार को आनन फानन में इतना बड़ा कदम क्यों उठाना पड़ गया. चलिए जानते है इसकी इनसाइड स्टोरी.


आदिवासियों की नाराजगी ने सत्ता की कुर्सी हिला दी
दरअसल 5 दिसंबर को भानुप्रतापपुर में उपचुनाव होने वाला है, लेकिन हाईकोर्ट ने 19 सितंबर को राज्य में 58 प्रतिशत आरक्षण रद्द कर दिया था. इससे आदिवासी समाज नाराज है, और भानुप्रतापपुर एसटी सीट है. इसका उपचुनाव में जोरदार असर देखने को मिल रहा है. सर्व आदिवासी समाज ने तो खुद का प्रत्याशी तक मैदान में उतर दिया है. कांग्रेस के नेताओं को विरोध का भी सामना करना पड़ा है. आदिवासियों की नाराजगी सरकार के  मिशन 2023 के लिए सबसे बड़ा खतरा हो सकता था. क्योंकि राज्य में 29 विधानसभा सीट आदिवासी समाज के कोटे के है.


विधानसभा चुनाव में ओबीसी वर्ग सबसे ज्यादा वोट शेयर
कांग्रेस आदिवासी समाज को खुश करना तो चाहती ही थी. इसके लिए ठीक समय पर ओबीसी वर्ग की जनसंख्या की रिपोर्ट भी हाथ लग गई. इससे ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के वादे को कांग्रेस ने पूरा करने का ठान लिया. क्योंकि राज्य में सबसे ज्यादा वोट शेयर ओबीसी वर्ग का है. मध्य छत्तीसगढ़ में यानी मैदानी इलाकों में ओबीसी वर्ग दबदबा सबसे ज्यादा है. ओबीसी वर्ग के  इर्द- गिर्द ही छत्तीसगढ़ की राजनीति घूमती है. राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इसी वर्ग से आते हैं. बीजेपी ने भी ओबीसी वर्ग के नेता अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. ऐसे में कांग्रेस ओबीसी को भला क्यों न खुश करती.


आरक्षण घटने से एससी वर्ग हो सकते है नाराज
छत्तीसगढ़ में किंग मेकर की भूमिका में एससी वर्ग को माना जाता है. क्योंकि एक यही वर्ग है जिसका वोट दोनों ही पार्टी में शेयर हो सकता है. यहां कांग्रेस पार्टी को समझौता करना पड़ा है. एससी का आरक्षण 16 से 13 प्रतिशत किया गया है, मतलब 3 प्रतिशत घटाया गया है. इससे अब अनुसूचित जाति के लोग नाराज हो सकते हैं. क्योंकि एससी वर्ग को लंबी लड़ाई के बाद 16 प्रतिशत आरक्षण के लिए हाईकोर्ट से जीत मिली थी.


किंग मेकर किसके पाले में जाएंगे?
अब इसके राजनीतिक नफा - नुकसान की बात करें तो अनुसूचित जाति वर्ग का वोट शेयर 13 प्रतिशत है. इनके लिए विधानसभा में 10 सीट का कोटा रिजर्व है. अनुसूचित जनजाति वर्ग की सात सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है. दो बीजेपी और एक सीट बहुजन समाज पार्टी के खाते में है. फिलहाल देखना होगा कि 2023 के विधानसभा चुनाव में एससी वर्ग किसके पाले में जाता है. फिलहाल कांग्रेस ने आदिवासी समाज को 32 प्रतिशत आरक्षण देने का विधेयक पारित कर दिया है, और राज्यपाल को विधेयक भेज दिया है.


बीजेपी के सपने में पानी फेर गया
छत्तीसगढ़ में बीजेपी 2023 में सत्ता में वापसी की गुंजाइश ढूंढ रही है. वो हर छोटे बड़े मुद्दे पर सरकार को घेरती नजर आ रही है. हाइकोर्ट के आरक्षण रद्द करने के फैसले पर बीजेपी ने कांग्रेस सरकार के खिपाफ मोर्चा खोल दिया था. एक महीने के प्रदर्शन की रणनीति बनाई गई थी. जिला और संभाग स्तर में चक्का जाम किया गया था. आरक्षण के मुद्दे में पार्टी चुनावी मैदान में दमदार कदम रखने की फिराक में थी, लेकिन इस विधेयक से बीजेपी के सपनों पर पानी फिर गया है.


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