Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ में देवी मां की भक्ति का पर्व चैत्र नवरात्रि प्रारंभ हो गया है. श्रद्धालु नवरात्रि में रोजाना देवी मां के दर्शन के लिए मंदिरों तक पहुंच रहे है, लेकिन छत्तीसगढ़ में एक एक मंदिर है जिसकी चर्चा राज्य में ही नहीं बल्कि देशभर में होती है. ये महासमुंद (Mahasamund) के जंगल के बीच स्थित चंडी माता मंदिर का है. इस मंदिर में देवी मां की आरती के समय जंगली भालू आ जाते हैं. ये भालू पूजा के बाद प्रसाद खाते हैं फिर जंगल में लौट जाते हैं. इसे श्रद्धालु देवी मां का चमत्कार मानते हैं, लेकिन इसकी असल सच्चाई क्या है ये आज आपको बताते हैं.


दरअसल, चंडी माता मंदिर राजधानी रायपुर से 100 किलोमीटर की दूरी पर महासमुंद जिले में है. ये मंदिर जंगल के किनारे घूंचापाली गांव में स्थित है. यहां देवी माता के दर्शन करने हजारों श्रद्धालु आते हैं, लेकिन यहां पहली बार आने वाले श्रद्धालु हैरान रह गए जब जंगली जानवर भालू का परिवार मंदिर परिसर में पहुंचा. श्रद्धालु उसे आम जूस पिलाते हुए दिखते हैं. वहीं यह दृश्य मंदिर में श्रद्धालुओं और जानवरों के बीच मित्रता की मिशाल पेश कर रहा है. 


अब तक भालुओं ने किसी को नहीं पहुंचाया नुकसान
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन भी मंदिर में भालुओं का परिवार मंदिर पहुंचा था. श्रद्धालु भालू को प्रसाद खिलाते और आम जूस पिलाते हुए नजर आए. स्थानीय लोगों का मानना है कि ये देवी मां का चमत्कार है. इसके चलते 8-10 साल से भालू इसी तरह मंदिर में देवी मां के दर्शन के लिए आते हैं और प्रसाद खाकर वापस चले जाते है. वहीं ग्रामीणों ने ये भी बताया है कि आज तक किसी को भालुओं ने नुकसान नहीं पहुंचाया है. इन भालुओं से इंसानों को कोई खतरा महसूस नहीं होता है. 


मंदिर परिसर में भालुओं का आना जाना लगा रहता है
वहीं मंदिर समिति की तरफ से भी इन भालुओं के आने जाने के लिए पूरी व्यवस्था मंदिर परिसर में किया गया है. जंगल से आने वाले रास्ते के ठीक सामने एक जालीदार बेरीकेट लगाया गया है. इससे श्रद्धालुओं को भी भालू से किसी भी प्रकार के खतरें को कम करने की कोशिश की गई है. मंदिर के पुजारियों ने बताया है कि मंदिर में 5 भालू आते थे, लेकिन एक भालू की मौत होने के बाद अब 4 भालू ही आते हैं. वो महीने में कुछ ही दिन भालू मंदिर आते हैं. 


बिना पेप्सी भालू के पास जाने पर हो सकता है अटैक
इधर वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट संदीप पौराणिक ने इसे देवी चमत्कार मानने से साफ इंकार कर दिया है. उन्होंने इस गतिविधि को इंसानों के लिए बहुत खतरनाक माना है. एक्सपर्ट ने एबीपी न्यूज से बातचीत करते हुए कहा कि भालू को प्राकृतिक फूड खिलाना चाहिए. उसको पेप्सी कोला पिलाने से स्वास्थ्य को हानि होगी. आगे चल के भालू को मानसिक परेशानी हो सकती है. पेप्सी के बैगर अब श्रद्धालु भालू के पास जाते हैं तो वो उनपर अटैक कर सकते हैं. भालू में देवी से कोई श्रद्धा भाव नहीं है. जंगल में फूड के लिए जंगली जानवरों को बड़ा संघर्ष करना पड़ता है इसलिए मंदिर आते हैं.


मादा भालू के बच्चे के पास जाना बहुत ज्यादा खतरनाक है
संदीप पौराणिक ने इस परंपरा को तुरंत बंद करने की सलाह देते हुए बताया कि मंदिर में मादा भालू अपने अपने बच्चों के साथ आती हैं. श्रद्धालु अगर उसके बच्चे के आस पास जाते है तो मादा भालू श्रद्धालुओं पर अटैक कर सकती हैं. मादा भालू को ये बिलकुल पसंद नहीं होता है कि उनके बच्चे के आस पास कोई आए. जंगल टाइगर को सबसे खतरनाक माना जाता है, लेकिन भालू तो टाइगर और हाथी से भी भिड़ जाता है. टाइगर एक शिकार के बाद रुक जाता है, लेकिन भालू लगातार शिकार कर सकता है. उड़ीसा में एक साथ भालू ने 7 लोगों को मार डाला था. 


टाइगर से भी खतरनाक हो सकते है जंगली भालू
एक्सपर्ट ने उदाहरण के साथ बताया कि अगर टाइगर राइट में चल रहा है और आप लेफ्ट में है तो वो आदमखोर और भूखा नहीं होगा तो आपका शिकार नहीं करेगा. इस कंडीशन में भालू हो तो आपका शिकार कर लेगा. हालाकि, भालू इंसान नहीं खाता, लेकिन बहुत खतरनाक जानवर है. वहीं एक्सपर्ट ने ये भी बताया कि भालू के बड़े-बड़े पंजे होते है.  वहीं अगर भालू अपना नेचुरल फूड खाना भूल जाएगा तो लोगों की मुसीबत बढ़ जाएगी और मानव-भालू संघर्ष बढ़ने का खतरा बढ़ जाएगा.


मंदिर में पहले साधु संत करते थे तंत्र साधना
गौरतलब है कि चंडी माता मंदिर 150 साल पुराना है. मंदिर को लेकर ग्रामीणों का कहना है कि ये यहां चंडी माता की प्रतिमा प्राकृतिक है. माता का ये मंदिर पहले तंत्र साधना के लिए जाना जाता था. यहां कई साधु संतों का डेरा लगा रहता था. इसे तंत्र साधना के लिए गुप्त रखा गया था, लेकिन 1950 के आस पास इस मंदिर को आम नागरिकों के लिए खोला गया है. इस मंदिर में प्राकृतिक रूप से बनी 23 फीट ऊंची दक्षिण मुखी प्रतिमा है.



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