Bastar News: वन अधिकार पट्टाधारियों के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने काफी बड़ी राहत दी है. दरअसल, अब वन अधिकार पट्टाधारियों के मृत्यु के बाद वारिसान के नाम पर पट्टा नामांतर आसानी से हो पाएगा. बस्तर जिले में इसकी शुरूआत हो चुकी है. बस्तरिया आईडिया के बाद प्रदेश में ये कानून बना और इसे लागू करने वाला बस्तर पहला जिला है.


दरअसल, पहले वन अधिकार पट्टा धारक के मृत्यु के बाद वारिसों के नाम पर नामांतरण नहीं होता था. बस्तर कलेक्टर विजय दयाराम के प्रयास के बाद इस दिशा में सरकार ने प्रयास शुरू कर कानून बनाया और अब इस पर अमल होना भी शुरू हो गया है. आने वाले दिनों में प्रदेश के करीब 5 लाख वनाधिकारी पट्टाधारियों को इसका लाभ मिलेगा.


बस्तर जिले में 3800 ग्रामीणों को मिलेगा इसका लाभ


राज्य शासन के निर्देशानुसार व्यक्तिगत वन अधिकारों के अधिकार अभिलेखीकरण और वन अधिकार पत्रधारकों की मृत्यु के बाद उनके विधिक वारिसानों को अधिकार हस्तांतरण संबंधित कार्यवाही किया जा रहा है. बस्तर कलेक्टर विजय दयाराम के मार्गदर्शन में सभी तहसील में ये कार्यवाही की जा रही है.


कलेक्टर ने जगदलपुर अनुभाग के वन अधिकार पत्रधारक सरगीपाल निवासी जगबंधु की मृत्यु के बाद उनके विधिक वारिसान पत्नी डोमानी जगबंधु को और ग्राम कुम्हली के तुलसी के वरिसान पत्नी राधामनी को वनाधिकार पत्र वितरण किया. इसी तरह सभी तहसील में दो-दो वारिसान को एफआरए पत्रक वितरण किया गया है. खास बात ये है कि जिले में इस प्रकार के लगभग 3800 प्रकरण है और अब सभी को इसका लाभ मिलेगा.


क्या था नियम, कैसे हुआ संशोधन


दरअसल, अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वनवासी अधिनियम, 2006 छत्तीसगढ़ में साल 2008 से लागू है. इस अधिनियम का उद्देश्य वनों में निवास करने वाली अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासियों को काबिज भूमि पर वन अधिकारों की मान्यता प्रदान करना है. ऐसा करने से उनके भूमि का विवरण शासकीय अभिलेखों में दर्ज किया जा सकेगा और इसके साथ ही उन्हें काबिज भूमि के अधिभोग का अधिकार प्रदान किया जा सकेगा, जिससे उनकी खाद्य सुरक्षा और आजीविका सुनिश्चित हो सकेगी. 


कौन-से नियमों के तहत वंशानुगत होगा


स्थानीय समुदाय के माध्यम से वनों की सुरक्षा, संरक्षण और प्रबंधन को मजबूत करते हुए परिस्थितिकीय संतुलन भी बनाए रखना है. वन अधिकार नियम, 2007 और संशोधित नियम 2012 में अधिनियम की धारा 4 की उपधारा 4 (1) के तहत प्रदत्त अधिकार वंशानुगत होगा, लेकिन संक्रमणीय नहीं होगा और विवाहित व्यक्तियों की दिशा में पति-पत्नी दोनों के नाम में संयुक्त रूप से होगा और अगर किसी घर का मुखिया एक ही व्यक्ति है तो एकल मुखिया के नाम में रजिस्ट्रीकृत होगा, और सीधे वारिस की अनुपस्थिति में वंशागत अधिकार अगले करीबी संबंधी को चला जाएगा. 


 सरकार को पत्र लिखने के बाद जारी हुई कार्यवाही


बस्तर कलेक्टर के माध्यम से राज्य सरकार को पत्र लिखा गया, जिसके बाद राज्य में जारी व्यक्तिगत वन अधिकारों के अधिकार अभिलेखीकरण और वन अधिकार पत्रधारकों की मृत्यु के बाद उनके विधिक वारिसानों को अधिकार हस्तांतरण संबंधित कार्यवाही की जा रही है. वहीं, अन्य भूमि संबंधित कार्यवाही के लिए राज्य शासन की समसंख्यक अधिसूचना छत्तीसगढ़ राजपत्र में प्रकाशित की गई है और अब इससे छत्तीसगढ़ के 5 लाख वन अधिकार पट्टाधारियों को लाभ मिल सकेगा.


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