Chhattisgarh: हाथियों के भय से स्कूल जाना छोड़ रहे हैं बच्चे, पढ़ाई के लिए कोसों दूर जंगल के बीच से जाता है रास्ता
Elephant Terror: छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में हाथियों की आमद रहती है. ऐसे में गांव के बच्चे इन हाथियों के दहशत के साए में डर-डर कर दूसरे गांवों में पढ़ाई करने स्कूल जाने को मजबूर हैं.
Raigarh News: छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में हर दिन किसी न किसी गांव में हाथियों की आमद रहती है. कब किस ओर से प्रकट हो जाए यह कहा नहीं जा सकता. ऐसे में गांव के बच्चे इन हाथियों के दहशत के साए में डर-डर कर दूसरे गांवों में पढ़ाई करने स्कूल जाने को मजबूर हैं. कारण जिले के पांच आदिवासी ब्लॉकों में केवल 59 हाई स्कूल संचालित है. ऐसे में प्रायमरी स्कूल तक की पढ़ाई तो गांवों में पूरी हो जाती है, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए कोसों दूर का सफर करना पड़ता है. इस दौरान डर बना रहता है कि कहीं आगे से हाथियों का सामना ना हो जाए.
दिलचस्प बात यह है कि इन आदिवासी ब्लाकों में बीते 2010 के बाद से एक भी नया स्कूल नहीं खुला है. इसके कारण इस इलाके के बच्चे कई बार प्रायमरी के बाद स्कूल छोड़ देते हैं. हालांकि सबसे जूदा इन ब्लाकों में चार एकलव्य स्कूल भी संचालित है जहां करीब 900 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. सरकारी स्कूलों की तुलना में एकलव्य में पढ़ाई कहीं बेहतर होती है. प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर जिले के पांच आदिवासी ब्लाकों में शिक्षा के स्तर का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां केवल 59 हाई स्कूल संचालित है. हायर सेकेंडरी की संख्या भी काफी कम है. केवल 82 हायर सेकेंडरी स्कूल संचालित है. शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने बताया कि बीते 2010 से अब तक एक भी नए स्कूल नहीं खुला है.
गांवों में हाथियों की आवाजाही
इन इलाकों में ज्यादा दिक्कत हाथियों की रहती है. इसके कारण कई बच्चे तो पढ़ाई ही छोड़ दे रहे हैं. कारण उच्च शिक्षा के लिए गांव से कई किमी दूर जाना पड़ता है. प्रायमरी स्कूलों की संख्या यहां काफी है. एक हजार 43 प्रायमरी और 458 मिडिल स्कूल संचालित है, लेकिन हाई और हायर सेकेंडरी स्कूलों की संख्या काफी कम है. इसके कारण आगे की पढ़ाई के लिए दिक्कत हो रही है. बड़े गांवों में हाई और हायर सेकेंडरी स्कूल तो है, लेकिन यहां तक आने में जंगल भीतर कई किमी सफर करना पड़ता है. मिडिल स्कूलों की संख्या भी देखा जाए तो कम ही है. कुल मिलाकर यहां के बच्चे गांव में संचालित प्रायमरी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए नहीं सोचते हैं. अधिकांश गांवों में हाथियों की आवाजाही बराबर होती रहती है.
377 ग्राम पंचायत और 643 गांव
जिले के पांच आदिवासी ब्लाक धरमजयगढ़, लैलूंगा, तमनार, खरसिया और घरघोड़ा मिलाकर 377 ग्राम पंचायत है. आश्रित ग्राम मिलाकर इन ब्लाकों में 643 गांव है. ऐसे में देखा जाए तो प्रायमरी स्कूल तो किसी-किसी गांव में दो है, लेकिन मिडिल, हाई और हायर सेकेंडरी की संख्या कम ही है. यह इन क्षेत्रों के बच्चों के लिए परेशानी की बात है. कहा जा रहा है कि अपर प्रायमरी याने मिडिल स्कूल की पढ़ाई के लिए भी दूसरे गांव जाना पड़ रहा है. बीते फरवरी में केंद्रीय बजट में आदिवासी ब्लॉकों में स्कूल खोलने के लिए प्रावधान किया गया था, लेकिन अब तक इसके लिए कोई आदेश निर्देश नहीं आया है. स्कूलों की कमी तो है ही, लेकिन शिक्षकों का भी काफी अभाव है. ग्राम पंचायत और गांवों की संख्या के हिसाब से देखा जाए तो यहां स्कूलों की संख्या काफी कम माना जा रहा है.