Janjgir-Champa News: छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले की रहने वाली चित्रलेखा का बचपन कठिनाइयों में गुजरा. एक दुर्घटना में उनकी एक आंख में चोट लगी और धीरे-धीरे आंख से दिखना बंद हो गया. इसके बावजूद इस कमजोरी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया, बल्कि मजबूत बनते हुए पूरा फोकस अपनी पढ़ाई पर किया. स्नात्कोत्तर एवं डीएड की पढ़ाई पूरी करने के बाद एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका बन गई और गांव के विकास में योगदान देने के लिए महात्मा गांधी नरेगा से जुड़कर मेट का काम भी देखने लगी.


जांजगीर-चांपा जिले के जनपद पंचायत नवागढ़ अंतर्गत ग्राम पंचायत सरखों की रहने वाली चित्रलेखा बरेठ पिता बेदराम बरेठ, अपने माता-पिता की जिम्मेदारी को एक बेटा बनकर उठा रही है. उनकी देखभाल के साथ ही वह महात्मा गांधी नरेगा में मेट की भूमिका भी बखूबी निभा रही हैं. इससे उन्हें जो राशि मिलती है, उसका उपयोग वह अपने परिवार के पालन पोषण पर खर्च करती हैं.


कुशाग्र बुद्धि की चित्रलेखा बताती हैं कि महात्मा गांधी नरेगा में उनके माता-पिता काम करते थे, उन्हें काम करते हुए देखा है. मनरेगा के प्रति एक अपनापन हमेशा से रहा है. इसलिए एक दिन उनको मनरेगा के रोजगार सहायक ने पूछा की आप जब इतनी पढ़ी लिखी हैं तो महिला मेट का काम आसानी से देख सकती हैं. उन्होंने रोजगार सहायक की इस बात को समझा और मई 2020 से ही मेट का काम करना शुरू किया.


चित्रलेखा मनरेगा में अलसुबह अपने कार्यस्थल पर पहुंचकर सभी श्रमिकों की हाजिरी लेती हैं. सहयोगी (मेट) के रूप में मनरेगा में काम कर रहे मजदूरों जब श्रमिक गोदी खोद लेते हैं तो उसे माप पुस्तिका में दर्ज करती हैं. वह बताती है कि मेट बनने के बाद पूछा तालाब गहरीकरण एवं पचरी पिचिंग निर्माण कार्य, दुर्गा राठौर के घर से सतिदाई पुल तक पहुंच मार्ग, चारागाह के पास डबरी निर्माण कार्य, मुख्य मार्ग से बुचुवा खदान की ओर कच्ची नाली निर्माण कार्य कराया. उन्होंने गुड गवर्नेस एनिशिएटिव के तहत 7 पंजी संधारण नागरिक सूचना पटल वर्क फाइल संधारण के साथ जॉब कार्ड को भरने की ट्रेनिंग ली उसका बेहतर क्रियान्वयन कर रही हैं.


करोना काल में किया रोजगार गारंटी में काम


चित्रलेखा का कहना है कि मनरेगा ने उन्हें न केवल मेट के रूप में एक पहचान दी, बल्कि निर्माण कार्यों का इंजीनियर भी बनाया. कोरोना काल में गांव में ही बेहतर रोजगार भी दिया, जिससे अपने माता-पिता एवं परिवार का बेहतर तरीके से पालन पोषण कर पा रही हैं. वह गांव के विकास में कंधे से कंधे मिलाकर कार्य कर रही हैं.


बीमारी के चलते आंख की रोशनी खो दी


चित्रलेखा के पिता ने बताया कि बचपन चित्रलेखा को चिकन पॉक्स की बीमारी हो गयी थी. गांव में रहने की वजह से समय में बीमारी के इलाज नहीं हो पाया. जिसके चलते बचपन से अपनी आंख की रोशनी खो बैठी, तबसे चित्रलेखा को आंख से अच्छे से दिखाई नहीं देता, बावजूद वह अपनी माता-पिता की परवरिश करती है. मनरेगा में मेट का काम करके जो भी मेहनताना मिलता है उससे अपना घर चलाती है. 


तीन भाइयों में चित्रलेखा है सबसे छोटी बहन


चित्रलेखा के परिवार में उनके माता-पिता है जो बुजुर्ग हो गए हैं. वहीं परिवार में उनके 3 भाई है, लेकिन चित्रलेखा सबसे छोटी है. तीनों भाइयों का विवाह होने के चलते अपने परिवार अलग दूसरी जगह बसा लिया है. इसलिए वह घर से सभी अलग रहते हैं, जिसके चलते माता-पिता का भार चित्रलेखा के ऊपर ही है. अभी चित्रलेखा की शादी नहीं हुई है, जिसके चलते वह अपने मां-बाप के साथ रहती है.


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